पूरे देश में काम करने वाले न्यूज़ चैनल जिनके भरोसे चलते हैं उनके हितों के लिए लड़ने वाला कोई भी नहीं है. जब चाहा हमे काम पर रख लिया, जब चाहा हमे काम से निकाल दिया. इन न्यूज़ चैनलों को टीआरपी दिलाने वाले, जिन्हें ये कभी संवाददाता, कभी रिपोर्टर या कभी स्ट्रिंगर के नाम से बुलाते हैं किन्तु हम इनके लिए मात्र बंधुआ मजदूर से अधिक की हैसियत नहीं रखते हैं.
खबरों को निकालते समय या बनाते समय हम इस बात का ध्यान भी नहीं रखते कि हम जिस परिवेश में रहते हैं उस में ही हमे रहना है. हमे उन्हीं राजनीतिक और प्रशासनिक लोगों के बीच में अपना जीवन यापन करना है, जिनकी खबरें हम बना रहे हैं. चैनलों को तो खबरों से मतलब होता है. खबर चल गयी चैनल ने हमे उसका भुगतान कर दिया किन्तु हमने जिनके खिलाफ खबर चलाई थी, वो तो हमे अपना दुश्मन मान लेता है और मौके की तलाश में रहता है. जब भी उसे मौका मिलता है वो हम पर वार कर देता है. उस समय ये न्यूज़ चैनल वाले कहते है कि ये हमारा निजी मामला है. अरे भाई ये रिलेटेड तो खबर से ही है ना.
खैर ये सब तो चलता ही आ रहा है और भी बहुत से मामले हैं जिनका उल्लेख करना यहां जरूरी नहीं है. मेरा मुख्य उदेश्य यह है कि ये तो हमे काम पर रखने के पहले जो एग्रीमेंट करते हैं, उसमे सिर्फ वे क्लाज़ डालते हैं जिन में ये अपने आपको सुरक्षित रख सकें. हमारी सुरक्षा या परिवार की सुरक्षा के साथ साथ हमारे सुरक्षित भविष्य की ये कोई गारंटी नहीं लेते हैं. जब इनकी मर्ज़ी हुई हमे काम पर रख लिया, जब इनकी मर्ज़ी हुई हमे काम पर से निकाल दिया.
मेरे पास ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं जिन्हें देख सुनकर मन विचलित हो जाता है. जहां तक पत्रकारों के हित में काम करने वाले संगठनों के बारे में सोचे तो ये सिर्फ अपनी दुकानें चला रहे हैं. हमे अपने अधिकारों की रक्षा के लिए स्वयं लड़ना होगा और आगे भी आना होगा. मैं पूरे देश में काम करने वाले भाइयों से आह्वान करना चाहता हूँ कि हम सभी आगे आयें और एक ऐसा संगठन बनायें, जो हमारे अधिकारों के लिए हमारे भविष्य के लिए हमारे साथ खड़े होकर लड़ सके. मुझे आप सब की राय और मदद की आवश्यकता है. मार्गदर्शन देवें ताकि हम अपने इस अभियान को शीघ्र ही मूर्त रूप दे सकें.
राजेश स्थापक
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