चैत्र नवरात्र माँ ज्वालामुखी पर विशेष
ज्वालामुखी 3 अप्रैल (बिजेन्दर शर्मा) । रोशनी की देवी के रूप में विख्यात माता ज्वालामुखी का मंदिर शिवालिक पर्वत श्रृंखला की तलहटी में कालीधर की पहाड़ी पर स्थित है। देश के 52 शक्ति पिठों मे एक इस स्थान पर चट्टान का सीना चीर कर बाहर निकल रही माता ज्वालामुखी के साक्षात दर्शन ज्योति रूप में होते हैं। जिसके चलते देश व प्रदेंश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लोगों की अटूट आस्था का स्थान है। नवराात्रों को यहां उत्सव के रूप में मनाया जाता है मान्यता है कि यहां दर्शन कर सच्चे मन से मांगी हर मुराद पूरी होती हैं।
जानकारी के अनुसार पूर्व काल में मुनियों ने एक यज्ञ का आयोजन किया जिसमें ब्रह़्मा, विष्णू व अन्य देवता अपने परिवारों सहित शामिल हुए। लेकिन शिव को नहीं बुलाया गया था,लेकिन जिद कर पार्वती वहां चली गई, वहां पर सभी ऋृषिमूनि, देवताओं को अपना अपना स्थान दिया गया था,लेकिन शिव के लिये कोई स्थान नहीं था,अपने पिता द्वारा पति का अपमान देख कर सति ने यज्ञ में छलांग लगा दी, यह देख सभी भयभीत हो गए, क्रोधित भगवान शिव ने धरती पर अपनी जटा मार कर महाकाली व वीरभद्र महाकाल पैदा कर प्रजापति दक्ष का वध करने का आदेश दिया । उन्होंने यज्ञ को नष्ट कर दिया और क्रोधित होकर सति के शरीर को लेकर वहां से चले गए, इस घटना से चारों लोकों में हाहाकार मच गई। भगवान शिव को शांत करनें का जिम्मा भगवान विष्णू को सोंपा गया। विष्णू ने अपने चक्र से सति के शव को काट दिया, सति के 52 टुकडे हुए और 52 अलग अलग स्थानों पर गिरे जो देश के प्रसिद्घ 52 शक्तिपिठ बनें। इस स्थान पर माता की जिहाा गिरी थी और यह स्थान एक बड़ा ज्र्योतिपुंज बन गया यहां राजा ाूमिचंद ने मंदिर का निर्माण करवाया।
दंतकथाओं के मुताबिक मुगल सम्राठ अकबर ने माँ ज्वालामुखी की महिमा सुन कर इसे चुनौती देने का प्रयास किया, माता की आलोकिक ज्योति बुझाने के लिए नहर का निर्माण कर ज्योति पर पानी डाला, लेकिन ज्योति पानी से बंद नही हुई। इसके पश्चात अकबर ने बहुत मोटे लोहे का तवा आलोकिक ज्योति को बन्द करने के लिए लगवा दिया लेकिन माता ज्वालामुखी की आलोकिक ज्योति तवे को तोड
बाहर आ गई। इस आलोकिक ज्योति के चात्कार से प्रभावित होकर अकबर ने यहां सोने का छत्तर चढ़ाया जिसे मां ने अस्विकार कर दिया और यह भी कौन से धातू का बन गया किसे पता नहॠीं है। यह आज भी मंदिर में भक्तों के दर्शनों के लिए मौजूद हैं।
विशवास किया जाता है कि मंदिर परिसर में ही गुरू गोरख नाथ की डिब्बी में भी माँ के दर्शन प्रत्यक्ष रूप में होते हैं। कहते है कि गुरू गोरख नाथ ने माँ की उपासना की थी, जब गुरू गोरख नाथ को भूख लगी तो उन्होंने अपनी माँ कों दो वर्तन दिए और कहा कि मैं दाल चावल लेकर आता हूं आप पानी उबालिए लेकिन गुरू गोरा नाथ नहॠीं आए और पानी आज भी उबलता है। नवराात्रों को यहां उत्सव के रूप में मनाया जाता है और प्रदेश सरकार द्वारा श्रद्घालुओं की सुविधा, सुरक्षा, स्वास्थय जैसी सुविधाओं के विशेष इंतजाम किए जाते हैं।