दलाई लामा ने आज राजनीति को अलविदा कह दिया


धर्मशाला। तिब्बत में बौद्धों के छह दशक लंबे संघर्ष का नेतृत्व करने वाले दलाई लामा ने आज राजनीति को अलविदा कह दिया लेकिन वह आध्यात्मिक गुरु बने रहेंगे और तिब्बत के लिए ‘अर्थपूर्ण स्वायत्तता’ की वकालत करना जारी रखेंगे।
नोबल पुरस्कार विजेता 75 वर्षीय दलाई लामा ने निर्वासित तिब्बत सरकार के राजनीतिक प्रमुख के पद से सेवानिवृत्ति की घोषणा की और कहा कि वह ‘स्वतंत्र रूप से निर्वाचित’ नेता को अपना ‘औपचारिक अधिकार’ सौंप देंगे लेकिन आध्यात्मिक नेता की महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की बात स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि वह तिब्बत के ‘न्यायोचित हक’ के लिए अपनी भूमिका निभाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। नयी तिब्बती संसद का गठन 20 मार्च को विश्वभर के तिब्बतियों के मतदान से होगा। दलाई लामा ने तिब्बती विद्रोह दिवस की 52वीं वर्षगांठ के मौके पर अपने भाषण में यह घोषणा की। नोबल शांति पुरस्कार विजेता नेता ने कहा कि वह सोमवार को औपचारिक रूप से तिब्बत की निर्वासित संसद में एक प्रस्ताव पेश करेेंगे ताकि निर्वासित तिब्बती चार्टर में आवश्यक संशोधन किए जा सकें और एक निर्वाचित नेता को ‘औपचारिक सत्ता’ सौंपने के उनके फैसले को समाहित किया जा सके।
निर्वासित तिब्बतियों से दलाई लामा ने कहा,’अब हम स्पष्ट रूप से वक्त की उस दहलीज पर पहुंच गए हैं जहां राजनीति को अलविदा कहने की उनकी योजना को अमली जामा पहनाना जरूरी है।’ चीनी शासन के खिलाफ विफल बगावत का बिगुल बजाने के बाद दलाई लामा भारत आ गए थे। दलाई लामा ने कहा कि जब से उन्होंने सक्रिय राजनीति से सेवानिवृत्त होने की घोषणा की है, उन्हें तिब्बत के भीतर और बाहर से अपील की जा रही है कि वे नेतृत्व प्रदान करते रहें। दलाई लामा ने कहा,’सत्ता हस्तांतरण की मेरी इच्छा का जिम्मेदारियों से पीछे हटने से कोई संबंध नहीं है। इससे दीर्घकाल में तिब्बतियों को फायदा होगा। यह इसलिए नहीं है कि मैं निराश महसूस करता हूं।’ तिब्बती भाषा में दिए गए अपने 15 मिनट के भाषण में उन्होंने कहा,’तिब्बतियों ने मुझमें इतनी आस्था और विश्वास जाहिर किया है कि उन्हीं में से एक होने के नाते मैं तिब्बत के न्यायोचित हित में अपनी भूमिका निभाने को प्रतिबद्ध हूं।’
दलाई लामा के इस वार्षिक भाषण को सुनने के लिए महिलाओं और बच्चों समेत सैकड़ों लोग मंदिर में उपस्थित हुए थे। आध्यात्मिक नेता ने कहा कि वह यह मानते हैं कि अंतत: लोग उनकी मंशा को समझेंगे और समर्थन देंगे। सेवानिवृति के बावजूद वह तिब्बती बौद्धों के आध्यात्मिक प्रमुख बने रहेंगे।
दलाई लामा ने इससे पूर्व भी राजनीतिक प्रमुख का पद छोडऩे की इच्छा जाहिर की थी लेकिन यह पहली बार है कि उन्होंने सार्वजनिक रूप से अपनी मंशा जाहिर की है और तिब्बती लोगों से अपने फैसले को स्वीकार करने को कहा है।
दलाई लामा के बयान पर प्रतिक्रिया में निर्वासित तिब्बती सरकार के प्रधानमंत्री सामधोंग रिनपोछे ने कहा कि आध्यात्मिक नेता जो राजनीतिक सत्ता हस्तांतरण चाहते हैं, वह तत्काल होने की संभावना नहीं है। यह पूछे जाने पर कि क्या दलाई लामा सत्ता छोडऩे के बाद भी धार्मिक गुरु बने रहेंगे, रिनपोछे ने कहा कि धार्मिक गुरु को चुनाव से नहीं चुना जा सकता। वे जन्म और तिब्बती संस्कृति से धर्मगुरु हैं और वे इस पद पर बने रहेंगे और विदेशों में उनका अपने शिष्यों के पास जाना जारी रहेगा। इस मौके पर अमेरिका सहित अन्य देशों के राजनयिक भी उपस्थित

एक टिप्पणी भेजें

Thanks For Your Visit

और नया पुराने