अब कोई दूसरा आलोक तोमर नहीं दिखता


ये सवाल मैंने आलोक तोमर से किया था, उनसे पहली मुलाकात के दौरान, और वो मुलाकात भी इसलिए हुई थी क्योंकि मुझे उनका इंटरव्यू करना था, भड़ास4मीडिया के लिए. अब कोई दूसरा आलोक तोमर नहीं दिखता, ऐसा क्यों? इस सवाल के जवाब में आलोकजी ने जो कुछ कहा था- वो इस प्रकार है-

''आलोक तोमर इसलिए मिले क्योंकि प्रभाष जोशी थे। अच्छा गहना बनाने के लिए शिल्पी चाहिए। दिल्ली प्रेस में भर्ती हो जाता तो वहीं रह जाता। अगर प्रभाष जी नहीं मिले होते तो ये आलोक तोमर नहीं होता। नाम मेरा जनसत्ता से हुआ। टीवी में संप्रेषण और अभिव्यक्ति की सीमा है। आपके और आपके दर्शक के बीच में तकनीक है। फुटेज, इनजस्ट, साउंड क्वालिटी, विजुअल क्वालिटी ये सब ज्यादा प्रभावी हो जा रहे हैं। पुण्य प्रसून में जिस तरह का रचनात्मक अहंकार और दर्प है, वो अब बाकी लोगों में गायब होता दिख रहा है। लोग जहां जाते हैं, वहां वैसा लिखने लगते हैं। टीवी सुरसा है जो सबको निगल रही है। आज के जमाने में अगर गणेश शंकर विद्यार्थी, पराड़कर होते और उनका नवभारत व हिंदुस्तान के लिए टेस्ट करा दिया जाता तो वे फेल कर दिए जाते। आज की जो हिंदी पत्रकारिता है, उसे सुधारना है तो दूसरा प्रभाष जोशी चाहिए। महात्मा गांधी से बड़ा पत्रकार कौन है। उनके एक संपादकीय पर आंदोलन रुक जाया करते थे। मैं हरिवंश का प्रभात खबर सब्सक्राइव कर मंगाता हूं। वर्तमान में यह एक ऐसा अखबार है जिसमें सरोकार बाकी है। आजकल पत्रकारों से ज्यादा समाज के बारे में निरक्षर कोई दूसरा नहीं है। अगर भारत में भूख के बारे में लिखना है और नेट पर सर्च करेंगे तो विदेश के पेज खुलेंगे। कालाहांडी में भूख से मौत के बारे में मेरे पास सूचना विदेश से आती है।''

आलोक की बेबाकी, साहस, साफगोई उनके इंटरव्यू से झलकता है, जिसे मैंने बहुत मन से किया और प्रकाशित किया. आलोक के दो पार्ट के ये इंटरव्यू भड़ास4मीडिया के सबसे पापुलर इंटरव्यूज में से हैं जिसे करीब एक लाख बार पढ़ा जा चुका है. इस इंटरव्यू में आलोक ने अपने जीवन के सारे पन्ने खोल दिए. दोनों पार्ट को आज के दिन फिर से पढ़ने पर लगता है कि हम लोगों ने अपने समय का एक शेर, एक हीरा, एक अदभुत और अद्वितीय पत्रकार खो दिया है. हो सके तो आप लोग भी इन दोनों पार्ट को एक बार फिर पढ़ें और आलोक को महसूस करें--

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