-डॉ0 आषीष वषिष्ठ
बीजेपी के भीष्म पितामह लाल कृष्ण आडवाणी भ्रष्टाचार के विरूद्व जिस रथ यात्रा पर निकले हैं ऊपर से तो उसका मकसद पाक-साफ नजर आता है, लेकिन आडवाणी की जन चेतना रथ यात्रा की हकीकत देष की जनता बखूबी समझती है। दरअसल बीजेपी जब भी संकट में खड़ी दिखाई दी आडवाणी ने रथ यात्रा के सहारे पार्टी को मजबूत करने का दांव खेला। रथ यात्राओं ने पार्टी की डूबी लुटिया को बाहर निकालने में एकाध बार मदद भी की लेकिन मौजूदा चेतना यात्रा के षुरू होने से पहले जिस तरह पार्टी की भीतर से आडवाणी को विरोध का सामना करना पड़ा उसने रंग में भंग डाला। लेकिन तमाम दिक्कतों और रूकावटों को दरकिनार करके आडवाणी ने सिताब दीयारा से रथ यात्रा षुरू कर दी। आडवाणी की रथ यात्रा से तमाम सवाल निकलकर देष के सामने आये हैं। खुद उनकी पार्टी के नेता उनकी इस यात्रा को पीएम पद की दावेदारी के रूप में देखते हैं। आडवाणी चाहे खुद इस बात को खारिज कर चुके हैं कि वो प्रधानमंत्री पद की होड़ में षामिल नहीं है। लबोलुआब यह है कि आडवाणी की रथयात्रा देष की जनता में कितनी चेतना जाग्रत कर पाती है ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा असल सवाल यह है कि जब बीजेपी में अंर्तकलह, खींचतान और आरोपों-प्रत्यारोपों का सिलसिला चरमसीमा पर है ऐसे में आडवाणी की रथ यात्रा बीजेपी को कहां ले जाएगी ये देखना अहम् होगा।
2004 के आम चुनावों के बाद से ही बीजेपी सत्ता से बाहर है। दिल्ली की गद्दी हासिल करने के लिये बीजेपी ने लगभग हर हथकंडा अपनाया लेकिन उसे सफलता नहीं मिल पायी। ऐसे में पार्टी में हताषा, निराषा और ठंडापन ऊपर से नीचे तक अपनी जड़ें जमा चुका है। अति निराषावादी माहौल में यूपीए सरकार के मंत्रियों और नेताओं की कारस्तानियों ने बीजेपी को सरकार पर हमले करने की सामग्री उपलब्ध करवाई तो वहीं अन्ना और रामदेव की भ्रष्टाचार और कालेधन के विरूद्व जलाई अलख ने भी बीजेपी में नवीन उत्साह और जोष का संचार किया। अन्ना के अनषन ने यूपीए सरकार और खासकर कांग्रेस के विरूद्व जो देषभर में माहौल बनाया है उसे भुनाने की राजनैतिक तौर पर बड़ी पहल बीजेपी ने ही की है। यूपीए से नाराज जनता को अपने पाले मंे लाने और अपनी बरसों पुरानी पीएम बनने की चाहत ने बूढ़े आडवाणी के षरीर में भी नये जोष का संचार इस कदर कर डाला कि वो रथ यात्रा की पुरानी ट्रिक को एकबार फिर से आजमाने निकल पड़े। खास बात यह है कि विपक्षी दलों की बजाय आडवाणी को खुद अपनी पार्टी के अंदर से ही सर्वप्रथम विरोध का सामना करना पड़ा। आडवाणी की काट के लिये बीजेपी में लगभग आधा दर्जन ऐसे दूसरे नेता मौजूद हैं जो दिन-रात पीएम बनने के सपने देखते हैं। ऐेसे में आडवाणी का भ्रष्टाचार के विरूद्व जन चेतना रथ यात्रा निकालना विषुद्व रूप से राजनीतिक हथकंडा और स्टंट ही दिखाई देता है।
असल में आज बीजेपी को एक साथ कई मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। अपने ऊपर लगे हिंदुत्व के ठप्पे को पार्टी मिटाना चाहती है और ये साबित करना चाहती है कि वो सांप्रदायिक नहीं है। आडवाणी ने जिन्ना की मजार पर जाकर इसकी कोषिष भी की थी जिसका खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ा। वहीं पिछले सात सालों में पार्टी को दो बार आम चुनावों में हार का सामना करना पड़ा है। सत्ता पाने की बैचेनी और छटपटाहट पार्टी नेताओं में साफ तौर पर दिखाई देती है। आडवाणी पार्टी में इस समय सबसे सीनियर लीडर हैं ऐसे में आडवाणी को ऐसा लगता है कि बीजेपी उन्हीं के मजबूत कंधों पर टिकी हुयी है। पिछले आम चुनावों में बीजेपी ने आडवाणी के व्यक्तित्व को ध्यान में रखकर ही पीएम पद के लिये उनको प्रचारित किया था। लेकिन देष की जनता ने आडवाणी के साथ ही साथ बीजेपी के नकार कर साफ संदेष दे दिया था। पिछले दो सालों में पार्टी की लोकप्रियता का ग्राफ बड़ी तेजी से गिरा है। पार्टी चाहकर भी यूपीए सरकार को घेर पाने में सफल नहीं हो पायी थी। सुषमा स्वराज को नेता विपक्ष की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंप कर पार्टी ने साफ कर दिया था कि पुरानी पीढ़ी के नेता केवल मार्गदर्षन दे हस्तक्षेप न करें। आडवाणी भी इस इषारे को समझ गये थे लेकिन रामदेव और अन्ना के आंदोलन ने देष की जनता को जगाने और यूपीए सरकार के खिलाफ माहौल तैयार करके सुप्त पड़े आडवाणी के मन में पीएम बनने की चाहत को पुनः जगाने का काम कर डाला है। आज पार्टी में उठापटक, अंर्तविरोध और खींचतान का माहौल चरम पर है। भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते बीजेपी को अपने दो-दो मुख्यमंत्रियों को बदलना पड़ा ऐसे में आडवाणी का भ्रष्टाचार के विरूद्व जन चेतना रथ यात्रा निकालने का तुक समझ से परे है। सच तो यह है कि रथ यात्रा की आड़ मेें आडवाणी एक बार फिर देष की जनता और पार्टी के भीतर ये मैसेज देना चाहते हैं कि उनमें पीएम बनने के गुण और षक्ति की कोई कमी नहीं है।
लेकिन इन तमाम सवालों और चर्चााओं के बीच जो सबसे बड़ी बात ये है कि व्यक्तिगत तौर पर आडवाणी को जो नफा नुकसान होगा वो तो आडवाणी जाने लेकिन आडवाणी की रथ यात्रा बीजेपी को कहां लेकर जाएगी ये बात सोचने वाली है। खुद को पाक साफ बताने वाली बीजेपी के दामन पर भी भ्रष्टाचार के दाग लगे हुये हैं। ऐसे में आडवाणी की रथ यात्रा से देष की जनता में क्या संदेष जाएगा ये बात कोई छुपी हुयी नहीं है। असल में इस बात को पार्टी के नेता भी बख्ूाबी समझते हैं और सोची समझी नीति के तहत ही वो खुलकर आडवाणी की रथ यात्रा का विरोध नहीं कर रहे हैं। पार्टी के दूसरे नेताओं को लगता है कि आडवाणी को घूम घूम कर खुद ही अपनी हैसियत का अंदाजा लग जाएगा। अभी तक आडवाणी की रथ यात्रा देष की जनता और मीडिया का ध्यान अपनी और खींचने में कामयाब नहीं हो पायी है। वहीं पार्टी के भीतर गुटबाजी के चलते छोटे बड़े नेता नफे नुकसान का हिसाब लगाकर ही आडवाणी के हमराही बन रहे हैं। असलियत आडवाणी से भी छुपी हुयी नहीं है। आज पार्टी के भीतर से लगभग आधा दर्जन नेता उनको खुली चुनौती और टक्कर दे रहे हैं। गडकरी का अध्यक्षता भी उनकी सेहत के लिये खतरनाक साबित हो रही है तो वहीं मोदी का बढ़ता कद और लोकप्रियता आडवाणी की राजनीतिक सेहत को दिनों दिन बिगाड़ने में खास भूमिका निभा रही है। तमाम दिक्कतों और परेषानियों के बावजूद आडवाणी खुद को पीएम की रेस में बनाए रखना चाहते हैं। उन्हें पता है कि अगर वो थक हार कर घर बैठ गये तो उनका हश्र वही होगा जो अटल बिहारी वाजपेयी या दूसरे कदावर नेताओं का हुआ है।
आडवाणी की रथ यात्रा से बीजेपी को राजनीतिक तौर पर कहीं कोई नफा होता दिखाई नहीं देता है। अगर अन्ना और रामदेव की बोई फसल काटने की आडवाणी कोषिष कर भी रहे हैं तो देष की जनता इसकी असलियत बखूबी जानती है। भाजपा ने सत्ता में रहकर क्या गुल खिलाये हैं ये किसी से छिपा नहीं है। राम मंदिर के लिए जब आडवाणी ने रथयात्रा की थी तो रथ यात्रा की पूरे देष में धूम और उत्साह था। अब माहौल बदल चुका है अगर मीडिया न बताए तो जनता को यह पता ही नहीं है कि आडवाणी का रथ किस सड़क पर दौड़ रहा है। आडवाणी की रथ यात्रा से पहले मोदी का सदभावना उपवास भी पीएम की दौड़ का मोदी का पहला कदम था। मोदी के उपवास ने आडवाणी की रथयात्रा का रंग फीका तो किया ही वहीं आडवाणी को खुली और सषक्त चुनौती भी दी है। आडवाणी ने ख्वाब तो बहुत ऊंचे और दूर के हैं लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि जनहित से जुड़े मुद्दों की बजाय अन्ना और रामदेव की बोयी फसल काटने को बीजेपी अधिक उत्सुक नजर आ रही है। मंहगाई ने पिछले कई सालों से आम आदमी का जीना दूभर कर रखा है लेकिन बीजेपी ने एक बार भी दमदार तरीके से मंहगाई का विरोध नहीं किया। बीजेपी की कार्यषैली से ऐसा आभास ही नहीं होता है कि देष में कोई दमदार विपक्षी दल भी है। यूपीए सरकार की पहली और दूसरी पाली में बीजेपी सरकार के सुर में सुर मिलाती ही दिखायी दी। ऐसे में आडवाणी की रथ यात्रा से बीजेपी की राजनीतिक दुकान कतई चमकने वाली नहीं है। जनता को इस बात का बख्ूाबी एहसास है कि हमाम में सभी नंगे हैं और अगर सत्ता बीजेपी के हाथ में आ भी जाएगी तो स्थिति में कोई ज्यादा फर्क आने वाला नहीं है। आडवाणी आज रथ लेकर देष भर में घूम रहे हैं ऐसे में जनता के बीच उनकी पैठ या साख बनने की बजाय पार्टी की पोजीषन खराब ही हो रही है। जिस पार्टी ने हाल ही में अपने दो मुख्यमंत्रियों को भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते हटाया हो, दक्षिण में जिसका कदावर नेता करप्षन के आरोपों में जेल में बंद हो, दिल्ली की तिहाड़ में जिस दल के सांसद हवा खा रहे हो उस दल का सीनियर नेता भ्रष्टाचार के विरूद्व जन चेतना यात्रा कर रहा हो तो जनता के बीच उस नेता और दल की कैसी छवि बनेगी ये सहज ही समझा जा सकता है। लबोलुआब यह है कि आडवाणी की रथ यात्रा से बीजेपी को नफा कम और नुकसान ही ज्यादा होगा, क्योंकि आज बीजेपी जिन हालातों से गुजर रही है उसे रथ यात्रा नहीं आत्मचिंतन की अधिक जरूरत है।
बीजेपी के भीष्म पितामह लाल कृष्ण आडवाणी भ्रष्टाचार के विरूद्व जिस रथ यात्रा पर निकले हैं ऊपर से तो उसका मकसद पाक-साफ नजर आता है, लेकिन आडवाणी की जन चेतना रथ यात्रा की हकीकत देष की जनता बखूबी समझती है। दरअसल बीजेपी जब भी संकट में खड़ी दिखाई दी आडवाणी ने रथ यात्रा के सहारे पार्टी को मजबूत करने का दांव खेला। रथ यात्राओं ने पार्टी की डूबी लुटिया को बाहर निकालने में एकाध बार मदद भी की लेकिन मौजूदा चेतना यात्रा के षुरू होने से पहले जिस तरह पार्टी की भीतर से आडवाणी को विरोध का सामना करना पड़ा उसने रंग में भंग डाला। लेकिन तमाम दिक्कतों और रूकावटों को दरकिनार करके आडवाणी ने सिताब दीयारा से रथ यात्रा षुरू कर दी। आडवाणी की रथ यात्रा से तमाम सवाल निकलकर देष के सामने आये हैं। खुद उनकी पार्टी के नेता उनकी इस यात्रा को पीएम पद की दावेदारी के रूप में देखते हैं। आडवाणी चाहे खुद इस बात को खारिज कर चुके हैं कि वो प्रधानमंत्री पद की होड़ में षामिल नहीं है। लबोलुआब यह है कि आडवाणी की रथयात्रा देष की जनता में कितनी चेतना जाग्रत कर पाती है ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा असल सवाल यह है कि जब बीजेपी में अंर्तकलह, खींचतान और आरोपों-प्रत्यारोपों का सिलसिला चरमसीमा पर है ऐसे में आडवाणी की रथ यात्रा बीजेपी को कहां ले जाएगी ये देखना अहम् होगा।
2004 के आम चुनावों के बाद से ही बीजेपी सत्ता से बाहर है। दिल्ली की गद्दी हासिल करने के लिये बीजेपी ने लगभग हर हथकंडा अपनाया लेकिन उसे सफलता नहीं मिल पायी। ऐसे में पार्टी में हताषा, निराषा और ठंडापन ऊपर से नीचे तक अपनी जड़ें जमा चुका है। अति निराषावादी माहौल में यूपीए सरकार के मंत्रियों और नेताओं की कारस्तानियों ने बीजेपी को सरकार पर हमले करने की सामग्री उपलब्ध करवाई तो वहीं अन्ना और रामदेव की भ्रष्टाचार और कालेधन के विरूद्व जलाई अलख ने भी बीजेपी में नवीन उत्साह और जोष का संचार किया। अन्ना के अनषन ने यूपीए सरकार और खासकर कांग्रेस के विरूद्व जो देषभर में माहौल बनाया है उसे भुनाने की राजनैतिक तौर पर बड़ी पहल बीजेपी ने ही की है। यूपीए से नाराज जनता को अपने पाले मंे लाने और अपनी बरसों पुरानी पीएम बनने की चाहत ने बूढ़े आडवाणी के षरीर में भी नये जोष का संचार इस कदर कर डाला कि वो रथ यात्रा की पुरानी ट्रिक को एकबार फिर से आजमाने निकल पड़े। खास बात यह है कि विपक्षी दलों की बजाय आडवाणी को खुद अपनी पार्टी के अंदर से ही सर्वप्रथम विरोध का सामना करना पड़ा। आडवाणी की काट के लिये बीजेपी में लगभग आधा दर्जन ऐसे दूसरे नेता मौजूद हैं जो दिन-रात पीएम बनने के सपने देखते हैं। ऐेसे में आडवाणी का भ्रष्टाचार के विरूद्व जन चेतना रथ यात्रा निकालना विषुद्व रूप से राजनीतिक हथकंडा और स्टंट ही दिखाई देता है।
असल में आज बीजेपी को एक साथ कई मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। अपने ऊपर लगे हिंदुत्व के ठप्पे को पार्टी मिटाना चाहती है और ये साबित करना चाहती है कि वो सांप्रदायिक नहीं है। आडवाणी ने जिन्ना की मजार पर जाकर इसकी कोषिष भी की थी जिसका खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ा। वहीं पिछले सात सालों में पार्टी को दो बार आम चुनावों में हार का सामना करना पड़ा है। सत्ता पाने की बैचेनी और छटपटाहट पार्टी नेताओं में साफ तौर पर दिखाई देती है। आडवाणी पार्टी में इस समय सबसे सीनियर लीडर हैं ऐसे में आडवाणी को ऐसा लगता है कि बीजेपी उन्हीं के मजबूत कंधों पर टिकी हुयी है। पिछले आम चुनावों में बीजेपी ने आडवाणी के व्यक्तित्व को ध्यान में रखकर ही पीएम पद के लिये उनको प्रचारित किया था। लेकिन देष की जनता ने आडवाणी के साथ ही साथ बीजेपी के नकार कर साफ संदेष दे दिया था। पिछले दो सालों में पार्टी की लोकप्रियता का ग्राफ बड़ी तेजी से गिरा है। पार्टी चाहकर भी यूपीए सरकार को घेर पाने में सफल नहीं हो पायी थी। सुषमा स्वराज को नेता विपक्ष की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंप कर पार्टी ने साफ कर दिया था कि पुरानी पीढ़ी के नेता केवल मार्गदर्षन दे हस्तक्षेप न करें। आडवाणी भी इस इषारे को समझ गये थे लेकिन रामदेव और अन्ना के आंदोलन ने देष की जनता को जगाने और यूपीए सरकार के खिलाफ माहौल तैयार करके सुप्त पड़े आडवाणी के मन में पीएम बनने की चाहत को पुनः जगाने का काम कर डाला है। आज पार्टी में उठापटक, अंर्तविरोध और खींचतान का माहौल चरम पर है। भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते बीजेपी को अपने दो-दो मुख्यमंत्रियों को बदलना पड़ा ऐसे में आडवाणी का भ्रष्टाचार के विरूद्व जन चेतना रथ यात्रा निकालने का तुक समझ से परे है। सच तो यह है कि रथ यात्रा की आड़ मेें आडवाणी एक बार फिर देष की जनता और पार्टी के भीतर ये मैसेज देना चाहते हैं कि उनमें पीएम बनने के गुण और षक्ति की कोई कमी नहीं है।
लेकिन इन तमाम सवालों और चर्चााओं के बीच जो सबसे बड़ी बात ये है कि व्यक्तिगत तौर पर आडवाणी को जो नफा नुकसान होगा वो तो आडवाणी जाने लेकिन आडवाणी की रथ यात्रा बीजेपी को कहां लेकर जाएगी ये बात सोचने वाली है। खुद को पाक साफ बताने वाली बीजेपी के दामन पर भी भ्रष्टाचार के दाग लगे हुये हैं। ऐसे में आडवाणी की रथ यात्रा से देष की जनता में क्या संदेष जाएगा ये बात कोई छुपी हुयी नहीं है। असल में इस बात को पार्टी के नेता भी बख्ूाबी समझते हैं और सोची समझी नीति के तहत ही वो खुलकर आडवाणी की रथ यात्रा का विरोध नहीं कर रहे हैं। पार्टी के दूसरे नेताओं को लगता है कि आडवाणी को घूम घूम कर खुद ही अपनी हैसियत का अंदाजा लग जाएगा। अभी तक आडवाणी की रथ यात्रा देष की जनता और मीडिया का ध्यान अपनी और खींचने में कामयाब नहीं हो पायी है। वहीं पार्टी के भीतर गुटबाजी के चलते छोटे बड़े नेता नफे नुकसान का हिसाब लगाकर ही आडवाणी के हमराही बन रहे हैं। असलियत आडवाणी से भी छुपी हुयी नहीं है। आज पार्टी के भीतर से लगभग आधा दर्जन नेता उनको खुली चुनौती और टक्कर दे रहे हैं। गडकरी का अध्यक्षता भी उनकी सेहत के लिये खतरनाक साबित हो रही है तो वहीं मोदी का बढ़ता कद और लोकप्रियता आडवाणी की राजनीतिक सेहत को दिनों दिन बिगाड़ने में खास भूमिका निभा रही है। तमाम दिक्कतों और परेषानियों के बावजूद आडवाणी खुद को पीएम की रेस में बनाए रखना चाहते हैं। उन्हें पता है कि अगर वो थक हार कर घर बैठ गये तो उनका हश्र वही होगा जो अटल बिहारी वाजपेयी या दूसरे कदावर नेताओं का हुआ है।
आडवाणी की रथ यात्रा से बीजेपी को राजनीतिक तौर पर कहीं कोई नफा होता दिखाई नहीं देता है। अगर अन्ना और रामदेव की बोई फसल काटने की आडवाणी कोषिष कर भी रहे हैं तो देष की जनता इसकी असलियत बखूबी जानती है। भाजपा ने सत्ता में रहकर क्या गुल खिलाये हैं ये किसी से छिपा नहीं है। राम मंदिर के लिए जब आडवाणी ने रथयात्रा की थी तो रथ यात्रा की पूरे देष में धूम और उत्साह था। अब माहौल बदल चुका है अगर मीडिया न बताए तो जनता को यह पता ही नहीं है कि आडवाणी का रथ किस सड़क पर दौड़ रहा है। आडवाणी की रथ यात्रा से पहले मोदी का सदभावना उपवास भी पीएम की दौड़ का मोदी का पहला कदम था। मोदी के उपवास ने आडवाणी की रथयात्रा का रंग फीका तो किया ही वहीं आडवाणी को खुली और सषक्त चुनौती भी दी है। आडवाणी ने ख्वाब तो बहुत ऊंचे और दूर के हैं लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि जनहित से जुड़े मुद्दों की बजाय अन्ना और रामदेव की बोयी फसल काटने को बीजेपी अधिक उत्सुक नजर आ रही है। मंहगाई ने पिछले कई सालों से आम आदमी का जीना दूभर कर रखा है लेकिन बीजेपी ने एक बार भी दमदार तरीके से मंहगाई का विरोध नहीं किया। बीजेपी की कार्यषैली से ऐसा आभास ही नहीं होता है कि देष में कोई दमदार विपक्षी दल भी है। यूपीए सरकार की पहली और दूसरी पाली में बीजेपी सरकार के सुर में सुर मिलाती ही दिखायी दी। ऐसे में आडवाणी की रथ यात्रा से बीजेपी की राजनीतिक दुकान कतई चमकने वाली नहीं है। जनता को इस बात का बख्ूाबी एहसास है कि हमाम में सभी नंगे हैं और अगर सत्ता बीजेपी के हाथ में आ भी जाएगी तो स्थिति में कोई ज्यादा फर्क आने वाला नहीं है। आडवाणी आज रथ लेकर देष भर में घूम रहे हैं ऐसे में जनता के बीच उनकी पैठ या साख बनने की बजाय पार्टी की पोजीषन खराब ही हो रही है। जिस पार्टी ने हाल ही में अपने दो मुख्यमंत्रियों को भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते हटाया हो, दक्षिण में जिसका कदावर नेता करप्षन के आरोपों में जेल में बंद हो, दिल्ली की तिहाड़ में जिस दल के सांसद हवा खा रहे हो उस दल का सीनियर नेता भ्रष्टाचार के विरूद्व जन चेतना यात्रा कर रहा हो तो जनता के बीच उस नेता और दल की कैसी छवि बनेगी ये सहज ही समझा जा सकता है। लबोलुआब यह है कि आडवाणी की रथ यात्रा से बीजेपी को नफा कम और नुकसान ही ज्यादा होगा, क्योंकि आज बीजेपी जिन हालातों से गुजर रही है उसे रथ यात्रा नहीं आत्मचिंतन की अधिक जरूरत है।