प्राचीन वाद्य यंत्रों को सहेजने के लिए संगीत संग्रहालय
इलाहाबाद, 14 अक्टूबर )। भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रचार-प्रसार के लिए दुनियाभर में मशहूर प्रयाग संगीत समिति अब संगीत का संग्रहालय स्थापित कर संगीत की धरोहर भी बनेगी।
उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद स्थित प्रयाग संगीत समिति ने संगीत का संग्रहालय बनाने का फैसला किया जिसमें उन प्राचीन वाद्य यंत्रों को रखा जाएगा, जो धीरे-धीरे लुप्त हो रहे हैं। प्रयाग संगीत समिति के सचिव अरुण कुमार ने आईएएनएस को बताया कि आज लोगों की रुचि प्राचीन वाद्य यंत्रों से समाप्त होती जा रही है, जिससे वे धीरे-धीरे गायब होते जा रहे हैं।
कुमार ने कहा कि संग्रहालय बनाने का मकसद लुप्त हो रहे वाद्य यंत्रों को संरक्षित कर आने वाले पीढ़ियों को अपने देश के समृद्ध वाद्य यंत्रों और संगीत से अवगत कराना है। समिति के पदाधिकारियों के मुताबिक संग्रहालय के लिए देश के कोने-कोने से वाद्य यंत्रों को जुटाया जाएगा।
कुमार ने कहा, "हमने संस्थान के पुस्तकालय के एक हिस्से में संगीत का संग्रहालय खोलने का फैसला किया है। हम इसमें इसराज, जलतरंग, वीणा, वायलिन, सितार, पखावज जैसे लुप्त हो रहे पुराने वाद्य यंत्रों को इकट्ठा करके उन्हें सहेज कर रखेंगे।"
साल 1926 में स्थापित प्रयाग संगीत समिति में प्रभाकर और प्रवीण-संगीत की स्नातक व परास्नातक डिग्रियां दी जाती हैं।
कुमार ने कहा, "हमें उम्मीद है कि सालभर के अंदर संग्रहालय बनाने का काम पूरा कर लिया जाएगा। हमें आशा है कि हमारे इस प्रयास से आने वाली पीढ़ी में लुप्त हो रहे वाद्य यंत्रों के बारे में रुचि बढ़ेगी और साथ ही इससे संगीत के विद्यार्थियों व शोधार्थियों को भी फायदा मिल सकेगा।"
पदाधिकारियों के मुताबिक संग्रहालय खोलने में जो भी व्यय होगा, उसे बिना किसी सरकारी अनुदान के समिति अपने संसाधनों से वहन करेगी। संग्रहालय में प्राचीन वाद्य यंत्रों के अलावा संगीत से जुड़ी नामचीन हस्तियों की प्रस्तुतियों की रिकॉर्डिग्स भी सहेज कर रखी जाएंगी।
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