वाणिज्य मंत्री द्वारा उच्चतम न्यायालय के अधिकार पर सवाल उठानादुर्भाग्यपूर्ण


वाणिज्य मंत्री द्वारा उच्चतम न्यायालय के अधिकार पर सवाल उठानादुर्भाग्यपूर्ण

गत दो दिन पहले रिटेल व्यापार में ऍफ़ डी आई को लेकर उच्चतम न्यायलय द्वारा केंद्र सरकार सेकिये गए सवाल की सरकार इस इस नीति में छोटे व्यापारियों के हितों को संरक्षित करने के लिएक्या कदम उठाये गए हैंपर केंद्रीय वाणिज्य मंत्री श्री आनंद शर्मा द्वारा कल दावोस में एक भारतीयटीवी चैनल को दिए गए इंटरव्यू में उच्चतम न्यायलय के अधिकार क्षेत्र पर प्रशन खड़ा करना बेहददुर्भाग्यपूर्ण है ! 

व्यापारियों के शीर्ष संगठन कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट)  के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री बी.सी.भर्तिया एवं राष्ट्रीय महामंत्री श्री प्रवीन खंडेलवाल ने इस पर टिपण्णी करते हुए कहा की निश्चित रूपसे संविधान में सरकार और न्यायालय के अधिकार क्षेत्र निर्धारित किये हुए हैं लेकिन सरकार काएक ऐसा निर्णय जो शुरू से- ही विवाद और संदेह के घेरे में हैं और जिस पर लगातार सरकार द्वारागलत और बिना आधार के तथ्य और आंकड़े दिए जा रहे हैंजिस पर निर्णय लेते हुए सरकार नेविधायी प्रक्रिया को ध्यान में नहीं रखाजिस पर संसद के स्थायी समिति की रिपोर्ट और उसकीसिफारिशों पर सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया और जिस पर सरकार द्वारा जारी चर्चा प्रपत्र पर प्राप्तजवाब जिनमे बहुमत ने सरकार की इस नीति का विरोध कियाजिस पर सरकार ने रिटेल व्यापारसे जुड़े प्रभावित वर्ग से कोई सलाह मशविरा तक नहीं कियाजिस पर देश की लगभग सभीराजनैतिक पार्टियों ने अपना विरोध दर्ज करायाजिस पर देश के अधिकाँश राज्यों के मुख्यमंत्रियों नेअभी तक सहमति नहीं दीको दरकिनार करते हुए सरकार ने एकतरफा निर्णय लेकर विदेशीकम्पनियों को भारत के बाज़ार में प्रवेश करने का मौका दे दियाक्या ऐसे विषय पर उच्चतमन्यायालय का सरकार से सवाल करना उचित नहीं है ?

कैट नेताओं कहा की श्री आनंद शर्मा ने 25 नवम्बर 2011 केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा स्वीकृत ऍफ़ डी आईके नीति दस्तावेजों को संसद के पटल पर रखा था लेकिन सरकार द्वारा 20 सितम्बर, 2012 को जारीअधिसूचना सरकार के उस नीति दस्तावेज़ से बिलकुल अलग है !अधिसूचना में व्यापक फेर बदलकरते हुए विदेशी कम्पनियों को व्यापक अधिकार दिए गए हैं जिनसे सीधे रूप से किसानो,व्यापारियोंमजदूरोंलघु उद्योगों को और अन्य वर्गों के हितों पर सीढ़ी चोट पहुँचती है -क्या ऐसे मेंउच्चतम न्यायालय द्वारा इन हितों के विषय में जानना उचित नहीं है ?

BIJENDER SHARMA

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