बगलामुखी जयंती पर श्रद्धा व उल्लास में डूबे श्रद्धालु
-पांडवों ने एक रात में बनाया था यह मंदिर
बगलामुखी 09 मई (विजयेन्दर शर्मा ) । बगलामुखी जयंती के अवसर पर आज जिला कांगड़ा के बगलामुखी मंदिर में हजारों की तादाद में श्रद्धालुओं ने दर्शन कर पूजा अर्चना की। वैशाख शुक्ल अष्टमी के दिन यहां सुबह से ही यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। जिससे यहां माहौल भक्तिमय बना हुआ है। पूरा इलाका श्रद्धा व उल्लास में डूबा हुआ है। श्रद्धालु यहां माता के जयकारे लगा रहे हैं। मां की महिमा का गुणगान किया जा रहा है। व यहां लगातार हवन यज्ञ भी हो रहे हैं।
-पांडवों ने एक रात में बनाया था यह मंदिर
बगलामुखी 09 मई (विजयेन्दर शर्मा ) । बगलामुखी जयंती के अवसर पर आज जिला कांगड़ा के बगलामुखी मंदिर में हजारों की तादाद में श्रद्धालुओं ने दर्शन कर पूजा अर्चना की। वैशाख शुक्ल अष्टमी के दिन यहां सुबह से ही यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। जिससे यहां माहौल भक्तिमय बना हुआ है। पूरा इलाका श्रद्धा व उल्लास में डूबा हुआ है। श्रद्धालु यहां माता के जयकारे लगा रहे हैं। मां की महिमा का गुणगान किया जा रहा है। व यहां लगातार हवन यज्ञ भी हो रहे हैं।
कांगड़ा जिला के रानीताल-ऊना-चंडीगढ़ राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर देहरा के पास बनखंडी में स्थित मां बगलामुखी मंदिर में आज उत्सव जैसा बना हुआ है, जिसमें प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों के अतिरिक्त पंजाब, हरियाणा और दिल्ली से हजारों की तादाद में आए श्रद्धालुओं ने मंदिर में दर्शन कर पूजा अर्चना कर रहे हैं। आज के दिन यहां अनुष्ठान कराने का भी विशेष महत्व है।
मंदिर के वरिष्ठ पुजारी मनोहर लाल ने बताया कि इस मंदिर की स्थापना द्वापर युग में पांडवों द्वारा अज्ञातवास के दौरान एक रात में की गई थी जिसमें सर्वप्रथम अर्जुन एवं भीम द्वारा युद्ध में शक्ति प्राप्त करने तथा माता बगलामुखी की कृपा पाने के लिए विशेष पूजा की गई थी और कालांतर से ही यह मंदिर लोगों की आस्था व श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है तथा साल भर असंख्य श्रद्धालु जो श्री ज्वालामुखी, माता चिंतपूर्णी, नगरकोट इत्यादि दर्शन के लिए आते हैं, वह सभी श्रद्धालु इस मंदिर में भी आकर माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इसके अतिरिक्त मंदिर के साथ प्राचीन शिवालय में आदमकद शिवलिंग स्थापित है जहां पर लोग माता के दर्शन के उपरांत शिवलिंग पर अभिषेक करते हैं। महंत रजत गिरि ने बताया कि मंदिर प्रबंधन समिति द्वारा श्रद्धालुओं के लिए व्यापक सुविधाएं उपलब्ध करवाई गई हैं। लंगर के अतिरिक्त मंदिर परिसर में पेयजल, शौचालय, ठहरने की व्यवस्था तथा हवन इत्यादि करवाने की विशेष प्रबंध किया गया है।
पंडित दिनेश रत्न ने बताया कि माता बगलामुखी का दस महाविद्याओं में 8 वां स्थान है तथा इस देवी की आराधना विशेषकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिये की जाती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार माता बगलामुखी की आराधना सर्वप्रथम ब्रह्मा एवं विष्णु भगवान ने की थी। इसके उपरांत भगवान परशुराम ने माता बगलामुखी की आराधना करके अनेक युद्धों में शत्रुओं को परास्त करके विजय पाई थी।
श्री दिनेश ने बताया कि द्रोणाचार्य, रावण, मेघनाथ इत्यादि सभी महान योद्धाओं द्वारा माता बगलामुखी की आराधना करके अनेक युद्ध लड़े गये। उन्होंने बताया कि नगरकोट के महाराजा संसार चंद कटोच भी प्राय: इस मंदिर में आकर माता बगलामुखी की आराधना किया करते थे, जिसके आर्शीवाद से उन्होंने कई युद्धों में विजय पाई थी और तभी से इस मंदिर में श्रद्धालुओं का अपने कष्टों के निवारण के लिये निरंतर आना आरम्भ हुआ और श्रद्धालु नवग्रह शांति, ऋद्धि-सिद्धि प्राप्ति सर्व कष्टों के निवारण के लिए मंदिर में हवन-पाठ करवाते हैं।
उन्होंने बताया कि माता बगलामुखी के सम्पूर्ण भारत में केवल दो सिद्ध शक्तिपीठ विद्यमान हैं, जिसमें से बनखण्डी एक है। यहां पर लोग अपने कष्टों के निवारण के लिये हवन एवं पूजा करवाते हैं और लोगों का अटूट विश्वास है कि माता अपने दरबार से किसी को निराश नहीं भेजती। केवल सच्ची श्रद्धा एवं सद्विचार की आवश्यकता है।
उन्होंने बताया कि वैशाख शुक्ल अष्टमी को देवी बगलामुखी का अवतरण दिवस कहा जाता है जिस कारण इसे मां बगलामुखी जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन व्रत एवं पूजा उपासना कि जाती है साधक को माता बगलामुखी की निमित्त पूजा अर्चना एवं व्रत करना चाहिए। बगलामुखी जयंती पर्व देश भर में हर्षोल्लास व धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर जगह-जगह अनुष्ठान के साथ भजन संध्या एवं विश्व कल्याणार्थ महायज्ञ का आयोजन किया जाता है तथा महोत्सव के दिन शत्रु नाशिनी बगलामुखी माता का विशेष पूजन किया जाता है और रातभर भगवती जागरण होता है। माँ बगलामुखी स्तंभन शक्ति की अधिष्ठात्री हैं अर्थात यह अपने भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और उनके बुरी शक्तियों का नाश करती हैं. माँ बगलामुखी का एक नाम पीताम्बरा भी है।
श्री दिनेश ने बताया कि द्रोणाचार्य, रावण, मेघनाथ इत्यादि सभी महान योद्धाओं द्वारा माता बगलामुखी की आराधना करके अनेक युद्ध लड़े गये। उन्होंने बताया कि नगरकोट के महाराजा संसार चंद कटोच भी प्राय: इस मंदिर में आकर माता बगलामुखी की आराधना किया करते थे, जिसके आर्शीवाद से उन्होंने कई युद्धों में विजय पाई थी और तभी से इस मंदिर में श्रद्धालुओं का अपने कष्टों के निवारण के लिये निरंतर आना आरम्भ हुआ और श्रद्धालु नवग्रह शांति, ऋद्धि-सिद्धि प्राप्ति सर्व कष्टों के निवारण के लिए मंदिर में हवन-पाठ करवाते हैं।
उन्होंने बताया कि माता बगलामुखी के सम्पूर्ण भारत में केवल दो सिद्ध शक्तिपीठ विद्यमान हैं, जिसमें से बनखण्डी एक है। यहां पर लोग अपने कष्टों के निवारण के लिये हवन एवं पूजा करवाते हैं और लोगों का अटूट विश्वास है कि माता अपने दरबार से किसी को निराश नहीं भेजती। केवल सच्ची श्रद्धा एवं सद्विचार की आवश्यकता है।
उन्होंने बताया कि वैशाख शुक्ल अष्टमी को देवी बगलामुखी का अवतरण दिवस कहा जाता है जिस कारण इसे मां बगलामुखी जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन व्रत एवं पूजा उपासना कि जाती है साधक को माता बगलामुखी की निमित्त पूजा अर्चना एवं व्रत करना चाहिए। बगलामुखी जयंती पर्व देश भर में हर्षोल्लास व धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर जगह-जगह अनुष्ठान के साथ भजन संध्या एवं विश्व कल्याणार्थ महायज्ञ का आयोजन किया जाता है तथा महोत्सव के दिन शत्रु नाशिनी बगलामुखी माता का विशेष पूजन किया जाता है और रातभर भगवती जागरण होता है। माँ बगलामुखी स्तंभन शक्ति की अधिष्ठात्री हैं अर्थात यह अपने भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और उनके बुरी शक्तियों का नाश करती हैं. माँ बगलामुखी का एक नाम पीताम्बरा भी है।