पालमपुर , 9 अप्रैल। ( विजयेन्दर शर्मा) । - हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री शांता कुमार ने कहा कि भारत के सामाजिक जीवन से सम्बन्धित एक अत्यन्त महत्वपूर्ण विषय समलैंगिक विवाह की अनुमति सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन हैं। एक विशेष पीठ का गठन किया गया है। इसी महीने सर्वोच्च न्यायालय में इस पर विचार सुने जाएगें।
उन्होंने कहा विष्व के बहुत से देशों में समलैंगिक विवाह एक अपराध हैं। कुछ देशो में इस पर मौत की सजा है। बहुत से देशो में यह अपराध नही है। भारत में समलैंगिकता पहले अपराध था परन्तु अब अपराध नहीं है।
शांता कुमार ने कहा यह प्रसन्नता का विषय है कि भारत सरकार ने समलैंगिक विवाह को स्वीकृति न देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में कहा है। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ ने भी इसका घोर विरोध किया है। परन्तु भारत में बहुत से लोग समलैंगिक विवाह को स्वीकृति प्रदान करवाना चाहते है।
उन्होंने कहा इस ब्रह्माण्ड की रचना करने वाले ने पुरुष और नारी में परस्पर आकर्षण पैदा किया है। इस आकर्षण के कारण ही पुरुष और नारी का मिलन होता है और उससे सृष्टि होती है। यदि मिलन का यह आकर्षण न होता तो सृष्टि ही नही हो सकती थी। मनुष्य समाज के समझदार लोगों ने इस आकर्षण को मर्यादत करने के लिए विवाह की संस्था का निर्माण किया। आकर्षण के कारण उच्चश्रखलता आये चरित्र हीनता न बढ़े इसके लिए विवाह की संस्था का निर्माण किया गया। विवाह वह जिससे नया सृजन हो। समलैंगिक मिलन को विवाह नही कहा जा सकता।
शांता कुमार ने कहा पुरुष और नारी का मिलन एक प्राकृतिक अवस्था है उसी से सृष्टि होती है। आदिकाल से प्रकृति के साथ कहीं कही कुछ विकृति भी रही है। यह विकृति भी हमेशा रही है। पुरुष और नारी में कहीं कहीं समलैंगिक सम्बन्ध समाज में रहे। उसे समाज ने विकृति समझ कर नकार दिया। यह विकार थोड़ा बहुत सब जगह रहा परन्तु इस विकृति को समाज ने कभी मान्यता नही दी। यह एक विकृति अर्थात एक बीमारी है। बीमारी का इलाज किया जाता है उसे सम्मान ओर मान्यता नहीं दी जा सकती। भारत में ऐसे पांच प्रतिशत से भी कम बीमारों को कानूनी मान्यता भारत की सांस्कृतिक परम्परा पर कुठाराघात होगा। दुर्भाग्य से आधुनिकता के नाम पर इस विकृति को मान्यता देने का प्रयत्न किया जा रहा है।
समलैंगिक विवाह को मान्यता के बाद यदि कुछ युवा लड़के बरात लेकर एक लड़के से विवाह करके लाना चाहेंगे तो क्या बेहूदा नजारा बनेगा। जो समलैंगिक बिना किसी शर्म के खुलेआम जलूस निकालते हैं उन्हें बरात लेकर विवाह रचने से कौन रोकेगा।
उन्होंने कहा भारत जैसे धर्म और संस्कृति प्रधान देश में इस प्रकार की विकृति को सम्मान देना और समलैंगिक विवाह को मान्यता देना एक बहुत बड़ा सकंट होगा। भारत की पूरी सास्कृतिक और धार्मिक चेतना को बहुत बड़ी चोट लगेगी। देश के सभी विद्वानों और संगठनों को इस विशय पर गम्भीरता से सोचना चाहिए और प्रमुख संगठनों को सर्वोच्च न्यायालय के सामने अपना मत प्रकट करना चाहिए।
शांता कुमार ने कहा यह प्रसन्नता का विषय है कि भारत सरकार ने समलैंगिक विवाह को स्वीकृति न देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में कहा है। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ ने भी इसका घोर विरोध किया है। परन्तु भारत में बहुत से लोग समलैंगिक विवाह को स्वीकृति प्रदान करवाना चाहते है।
उन्होंने कहा इस ब्रह्माण्ड की रचना करने वाले ने पुरुष और नारी में परस्पर आकर्षण पैदा किया है। इस आकर्षण के कारण ही पुरुष और नारी का मिलन होता है और उससे सृष्टि होती है। यदि मिलन का यह आकर्षण न होता तो सृष्टि ही नही हो सकती थी। मनुष्य समाज के समझदार लोगों ने इस आकर्षण को मर्यादत करने के लिए विवाह की संस्था का निर्माण किया। आकर्षण के कारण उच्चश्रखलता आये चरित्र हीनता न बढ़े इसके लिए विवाह की संस्था का निर्माण किया गया। विवाह वह जिससे नया सृजन हो। समलैंगिक मिलन को विवाह नही कहा जा सकता।
शांता कुमार ने कहा पुरुष और नारी का मिलन एक प्राकृतिक अवस्था है उसी से सृष्टि होती है। आदिकाल से प्रकृति के साथ कहीं कही कुछ विकृति भी रही है। यह विकृति भी हमेशा रही है। पुरुष और नारी में कहीं कहीं समलैंगिक सम्बन्ध समाज में रहे। उसे समाज ने विकृति समझ कर नकार दिया। यह विकार थोड़ा बहुत सब जगह रहा परन्तु इस विकृति को समाज ने कभी मान्यता नही दी। यह एक विकृति अर्थात एक बीमारी है। बीमारी का इलाज किया जाता है उसे सम्मान ओर मान्यता नहीं दी जा सकती। भारत में ऐसे पांच प्रतिशत से भी कम बीमारों को कानूनी मान्यता भारत की सांस्कृतिक परम्परा पर कुठाराघात होगा। दुर्भाग्य से आधुनिकता के नाम पर इस विकृति को मान्यता देने का प्रयत्न किया जा रहा है।
समलैंगिक विवाह को मान्यता के बाद यदि कुछ युवा लड़के बरात लेकर एक लड़के से विवाह करके लाना चाहेंगे तो क्या बेहूदा नजारा बनेगा। जो समलैंगिक बिना किसी शर्म के खुलेआम जलूस निकालते हैं उन्हें बरात लेकर विवाह रचने से कौन रोकेगा।
उन्होंने कहा भारत जैसे धर्म और संस्कृति प्रधान देश में इस प्रकार की विकृति को सम्मान देना और समलैंगिक विवाह को मान्यता देना एक बहुत बड़ा सकंट होगा। भारत की पूरी सास्कृतिक और धार्मिक चेतना को बहुत बड़ी चोट लगेगी। देश के सभी विद्वानों और संगठनों को इस विशय पर गम्भीरता से सोचना चाहिए और प्रमुख संगठनों को सर्वोच्च न्यायालय के सामने अपना मत प्रकट करना चाहिए।