अनुष्ठान के फल प्राप्ति में बाधक-- मोबाइल
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जप,पूजा, पाठ, अनुष्ठान, यज्ञ यानि देवकार्य हो या पितृकार्य दोनों बड़ी ही सावधानी एवं संयम व शान्तचित्त होकर सम्पन्न करना चाहिए। लेकिन आज एक विकृति चल पड़ी है कि बिना मोबाइल के कोई अनुष्ठानादि नहीं हो रहे।नहीं हो रहे,सो बड़ी बात नहीं है।हो सकता है कि मोबाइल में ही उनकी पूजा पद्धति संग्रहित हो।लेकिन, फिर भी यह दोषपूर्ण है।
ज्योतिष के अनुसार पूजा, पाठादि,अनुष्ठान वगैरह के अधिपति गुरु बृहस्पति हैं। जबकि मोबाइल के अधिपति राहु हैं। गुरु और राहु की युति होने से गुरु बृहस्पति में चाण्डालत्व दोष आ जाता है यानि गुरु बृहस्पति चाण्डाल स्वरूप हो जाते हैं, जिससे गुरु बृहस्पति अनुष्ठानादि का फल नहीं दे पाते।
दूसरी बात यह है कि पाठ एवं जपादि के मध्य में जप पाठ करते आसन पर या आसन से उठकर बाहर जाकर मोबाइल से बीच-बीच में कई बार बातें करना फल के लिए एकदम बाधक है। या फिर आपस में गपशप करना। यहाँ संकल्प खण्डित हो रहा है।फल नहीं नहीं मिल पाता है।
अत्रि स्मृति में स्पष्ट लिखा हुआ है,
लोकवार्ता प्रसंगेन यः कुर्यात् देवतार्चनम्।
कुम्भीपाके महाघोरे पच्यते नरकाग्निना।।
अर्थात् देवताओं की पूजा अर्चना के बीच में यदि लोकवार्ता यानि सांसारिक बातचीत जो करते हैं, वे सभी महाघोर कुम्भीपाक नरक की अग्नि में पकाये जाते हैं।
क्या हम अनुष्ठान में दो-चार घण्टे के लिए बातचीत नहीं रोक सकते ? यदि नहीं रोक सकते,तो हम जीवन एवं धन का दुरुपयोग कर रहे हैं।
और भी दुर्दशा है,मैंने कई अनुष्ठानों में यह भी देखा है कि पाठकर्ता, जपकर्ता मुँह में खैनी,पान पराग, गुटखा,लौंग, इलायची आदि रख लेते हैं।यह अनुष्ठान की शुद्धता कैसे रही?
यह विकृति विकराल - काल रूप बनकर अनुष्ठान के फल को खा जा रहा है। अनुष्ठानादि के फल की सम्यक् प्राप्ति के लिए इन विकृतियों को दूर कर अनुष्ठान के नियमों का पालन करना आवश्यक है, तभी फल की प्राप्ति और कल्याण होगा। अन्यथा भगवान ही मालिक।
कृपया इस पर कुतर्क न करें। अनुभव करें, चिन्तन करें, विचार करें,अध्ययन करें, साधनात्मक सोच रखें,मनोरंजनात्मक नहीं।
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जप,पूजा, पाठ, अनुष्ठान, यज्ञ यानि देवकार्य हो या पितृकार्य दोनों बड़ी ही सावधानी एवं संयम व शान्तचित्त होकर सम्पन्न करना चाहिए। लेकिन आज एक विकृति चल पड़ी है कि बिना मोबाइल के कोई अनुष्ठानादि नहीं हो रहे।नहीं हो रहे,सो बड़ी बात नहीं है।हो सकता है कि मोबाइल में ही उनकी पूजा पद्धति संग्रहित हो।लेकिन, फिर भी यह दोषपूर्ण है।
ज्योतिष के अनुसार पूजा, पाठादि,अनुष्ठान वगैरह के अधिपति गुरु बृहस्पति हैं। जबकि मोबाइल के अधिपति राहु हैं। गुरु और राहु की युति होने से गुरु बृहस्पति में चाण्डालत्व दोष आ जाता है यानि गुरु बृहस्पति चाण्डाल स्वरूप हो जाते हैं, जिससे गुरु बृहस्पति अनुष्ठानादि का फल नहीं दे पाते।
दूसरी बात यह है कि पाठ एवं जपादि के मध्य में जप पाठ करते आसन पर या आसन से उठकर बाहर जाकर मोबाइल से बीच-बीच में कई बार बातें करना फल के लिए एकदम बाधक है। या फिर आपस में गपशप करना। यहाँ संकल्प खण्डित हो रहा है।फल नहीं नहीं मिल पाता है।
अत्रि स्मृति में स्पष्ट लिखा हुआ है,
लोकवार्ता प्रसंगेन यः कुर्यात् देवतार्चनम्।
कुम्भीपाके महाघोरे पच्यते नरकाग्निना।।
अर्थात् देवताओं की पूजा अर्चना के बीच में यदि लोकवार्ता यानि सांसारिक बातचीत जो करते हैं, वे सभी महाघोर कुम्भीपाक नरक की अग्नि में पकाये जाते हैं।
क्या हम अनुष्ठान में दो-चार घण्टे के लिए बातचीत नहीं रोक सकते ? यदि नहीं रोक सकते,तो हम जीवन एवं धन का दुरुपयोग कर रहे हैं।
और भी दुर्दशा है,मैंने कई अनुष्ठानों में यह भी देखा है कि पाठकर्ता, जपकर्ता मुँह में खैनी,पान पराग, गुटखा,लौंग, इलायची आदि रख लेते हैं।यह अनुष्ठान की शुद्धता कैसे रही?
यह विकृति विकराल - काल रूप बनकर अनुष्ठान के फल को खा जा रहा है। अनुष्ठानादि के फल की सम्यक् प्राप्ति के लिए इन विकृतियों को दूर कर अनुष्ठान के नियमों का पालन करना आवश्यक है, तभी फल की प्राप्ति और कल्याण होगा। अन्यथा भगवान ही मालिक।
कृपया इस पर कुतर्क न करें। अनुभव करें, चिन्तन करें, विचार करें,अध्ययन करें, साधनात्मक सोच रखें,मनोरंजनात्मक नहीं।
Bijender Sharma*, Press Correspondent Bohan Dehra Road JAWALAMUKHI-176031, Kangra HP(INDIA)*
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