महिलाओं की वेणी की शोभा और तमिल संस्कृति का प्रतीक श्वेत चमेली के फूलों का गजरा पश्चिमी संस्कृति की आंधी में अपना स्थान खोता जा रहा है।


महिलाओं की वेणी की शोभा और तमिल संस्कृति का प्रतीक श्वेत चमेली के फूलों का गजरा पश्चिमी संस्कृति की आंधी में अपना स्थान खोता जा रहा है।

पहनावे पर पश्चिमी रंग चढ़ने से महिलाओं में आज चमेली के फूलों की लोकप्रियता घटती जा रही है और महिलाएं श्रृंगार में चमेली के गजरे का स्थान कम होता जा रहा है। शहरी महिलाओं में अब पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव में लंबी चोटियों के बजाय छोटे बालों का फैशन चल पड़ा है। वे साड़ी और सलवार कमीज और साड़ी के बजाय आज पैंट और टी शर्ट पहनाना पसंद करती हैं। यहां संस्कृति और परंपरा के क्षेत्र में काम कर रहे एक कार्यकर्ता का कहना है कि नई पीढ़ी की महिलाओं में चमेली के फूल की लोकप्रियता कम होती जा रही है।

उसका कहना है कि मालियों को ऐसे डिजाइन के गजरे ओर मालाएं बनानी चाहिए जो नए दौर के फैशन का हिस्सा बन सकें। उसकी राय में इससे पश्चिमी संस्कृति की मार से चमेली के आकर्षण और गौरव को बचाया जा सकेगा।
चमेली के गजरे और मालों का कारोबार करने वाले मदुरै के माली के अस्तित्व को बचाने के लिए यहां इंडियन नेशनल ट्रस्ट फार आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज [इन्टैक] की ओर से एक कार्यशाला का आयोजन किया गया।

कार्यशाला में नए-नए प्रकार की मालाओं तथा परंपरागत फूलों से बनाए जाने वाले उत्पादों के क्षेत्र में नई संभावनाओं पर विचार हुआ। कार्यशाला में पैकिंग के डिजाइन के क्षेत्र में भी कुछ नया करने की बात उभरी ताकि नई पीढ़ी को इसकी ओर आकर्षित किया जा सके। अनुकूल जलवायु की मदुरै में चमेली के फूल का उद्योग फलफूल रहा है। यहां फूलों का कारोबार कुटीर उद्योग के रूप में चल रहा है। ज्यादातर कारीगर खासकर अपने घर से फूलों का कारोबार करती हैं।

चमेली के फूलों को पिरोने और गुथने में बड़े सब्र की जरूरत होती है। यहां से चमेली का फूल मुंबई, बेंगलूर और दिल्ली भी भेजा जाता है। साथ ही इसका निर्यात म्यांमार, मलयेशिया, सिंगापुर और श्रीलंका जैसे देशों को भी किया जाता है। इन देशों की तमिल आबादी में इस फूल की काफी मांग होती है। सीजन और मांग के हिसाब से चमेली का के फूल के दाम 100 रुपये प्रति किलो से 1,200 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच तक चढ़ते उतरते रहते हैं। यहां से सालाना तीस क्विंटल चमेली का निर्यात किया जाता है।

इन्टैक की कार्यकारी सदस्य उमा कन्नन ने कहा कि कार्यशाला के आयोजन का मकसद बदलाव के अनुरूप नए विचार पेश करना है। जिससे आधुनिक महिलाओं के बीच भी परंपरागत फूलों की लोकप्रियता कायम रह सके। कन्नन ने कहा कि फूलों का इस्तेमाल सदियों से हो रहा है और यह आगे भी जारी रहेगा। कार्यशाला का मकसद चमेली के फूलों को बांधने की कला अगली पीढ़ी तक पहुंचाना है। साथ ही संस्कृति पर पश्चिमी हमले से इसके बचाना है।

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