अपने आपको भारतीय पत्रकारिता का दशावतार मानने वाले और फिलहाल अरुण पुरी के फ्रीजर में ठंडे हो रहे प्रभु चावला के बारे में काफी लोगों को पता है कि वे एक जमाने में रामलीला में दशरथ बना करते थे। अभी उन्हें इंडिया टुडे की भारतीय भाषाओं की पत्रिकाओं का प्रभारी बना कर बैठा दिया गया है और उनमें भी काम चलाऊ हिंदी को छोड़ कर दूसरी भाषा उन्हें आती नहीं हैं और पंजाबी में इंडिया टुडे निकलती नहीं है।
मगर यह कहानी सिर्फ प्रभु चावला के बारे में नहीं है। उनके मामले में तो एक प्रसिद्व फिल्म का नाम इस्तेमाल किया ही जा सकता है कि बाप नंबरी तो बेटा दस नंबरी। पद्म भूषण आदि से सम्मानित हो चुके और भाजपा में उनके दोस्तों की चली तो राज्यसभा तक पहुंच सकने वाले प्रभु चावला की क्यारी में जो अंकुर उगा है वह उनका बेटा और उसका नाम भी अंकुर चावला है। कहानी अंकुर चावला के बारे में है।
अंकुर चावला की गिनती अब बड़े वकीलों में होने लगी है। एक मामले में पकड़े गए मगर जाहिर है कि रिश्वत खिला कर अपने लोगों के पक्ष में फैसले करवाना उनकी पुरानी शैली रही है। जब वे पकड़े गए थे तो मामला एक बहुत बड़े हिंदी दैनिक अमर उजाला का था जिसमें झगड़ा चल रहा है और कंपनी लॉ बोर्ड के कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर आर बासुदेवन को रिश्वत खिला कर फैसला अपने हक में करवाने के सिलसिले में जो लोग रंगे हाथों पकड़े गए थे उनमें अंकुर चावला भी एक हैं।
वासुदेवन को जेल जाना पड़ा लेकिन अंकुर चावला अपने पिता के प्रताप से बच गए। रिश्वत अमर उजाला के कंपनी सेक्रेटरी मनोज बाठिया के जरिए दिलवाई गई थी और उन्होंने तय दस लाख रुपए में से तीन लाख रुपए खुद हजम कर लिए थे। आजकल चोरों का भी दीन ईमान नहीं होता। मामले की एफआईआर में अंकुर चावला को दलाल दर्ज किया गया है।
अचानक अंकुर चावला पर सीबीआई की इतनी विकट कृपा हुई कि सीबीआई ने खुद आवेदन दे कर अंकुर चावला को अपना जांच सहयोगी घोषित कर दिया यानी अपने ही खिलाफ जांच में खुद अभियुक्त ही मदद देगा और जांच की शर्ते भी शायद तय करेगा। अंकुर चावला ने उस समय झूठ बोला था कि वे देश से बाहर थे इसलिए इस मामले में उनका कोई हाथ नहीं माना जा सकता। कितने बड़े ढक्कन वकील है कि ढंग का तर्क भी नहीं खोज सकते। मगर जब अभियोजन पक्ष की मदद कर रहा हो तो ढक्कनों को डिब्बा बनने में कितनी देर लगती है। सीबीआई की प्रेस विज्ञप्ति तक में उनका नाम नहीं है। फिर भी अखबारों में अंकुर चावला का नाम साजिश करने वालों के तौर पर छपा और सीबीआई के हवाले से छपा। आखिर कंपनी सेक्रेटरी मनोज बाठिया ने भी कहा था कि सौदा चावला साहब ने तय किया था।
जब सीबीआई की बारी आई तो उसने अदालत से कहा कि अंकुर चावला जांच में आज से शामिल हो गए हैं। इसी दिन अदालत ने मनोज बाठियां को जेल भेज दिया। सच यह है कि सीबीआई के अधिकारी अंकुर चावला से पूछताछ करना चाहते थे और बाठियां ने जो तथ्य दिए थे उनकी पुष्टि करना चाहते थे। मगर बाठिया को तो हिरासत में रखा गया और अभियुक्त चावला को जांच टीम में शामिल और सहयोगी मान लिया गया। इकॉनामिक टाइम्स में तो सीबीआई के हवाले से कहा गया है कि अंकुर चावला के यहां छापा पड़ा तो इस मामले के सारे दस्तावेज मिले। आश्चर्य की बात यह है कि अमर उजाला के झगड़ा कर रहे मालिकों में से एक और रिश्वत के असली सूत्रधार अतुल माहेश्वरी को तो पुलिस ने छुआ ही नहीं।
मजेदार बात यह है कि जिस समय यह सब हुआ, प्रभु चावला इंडिया टुडे समूह के प्रधान संपादक थे। लेकिन इसी समूह के दैनिक मेल टुडे ने जहां प्रभु चावला का साप्ताहिक स्तंभ आज भी छपता है, सबसे विस्तार से इस घटना के बारे में लिखा। हो सकता है कि ग्रुप चेयरमैन अरुण पुरी से पूछ लिया गया होगा और प्रभु चावला के अंत की शुरूआत वहीं से हुई हो। मेल टुडे ने लिखा था कि जिस वकील ने रिश्वत देने का इंतजाम किया था उसके घर पर पड़े छापे में अमर उजाला के सारे दस्तावेज बरामद हुए थे। छापा सफदरजंग एक्सटेंशन में पड़ा और अंकुर चावला का ऑफिस डिफेंस कॉलोनी में ज्यादा दूर नहीं है। मामला भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत दर्ज किया गया है जहां रहम की ज्यादा गुंजाइश होती नहीं हैं मगर जिस पर प्रभु कृपा हो उस अंकुर का आप क्या बिगाड़ सकते हैं?
प्रभु चावला के बारे में भी मीडिया वेबसाइट भड़ास4मीडिया पर जाने माने फोटोग्राफर और खरा खरा बोलने के लिए कुख्यात विजेंद्र त्यागी ने प्रभु चावला के बारे में कुछ सनसनीखेज रहस्योद्धाटन किए हैं। इनमे प्रभु चावला द्वारा फॉर्म हाउस की खरीद से ले कर एक सम्मानित संपादक को श्री त्यागी के पास मौजूद दस्तावेजों के आधार पर ब्लैकमेल करने का खुलासा किया गया। जिन्हें ब्लैकमेल किया गया था वे संपादक राजदूत भी रह चुके हैं और फिलहाल राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा में मनोनीत है।
विजेंद्र त्यागी ने लिखा है कि- एक दिन सीधी बात वाले टेढ़े आदमी ने मुझे टेलीफोन किया। श्त्यागी जी मुझे आपसे एक व्यक्तिगत काम है। मैंने पूछा- चावला जी, मुझसे ऐसा कौन सा काम आ पड़ा। आप तो पत्रिका के संपादक हैं और पत्रकारिता के स्टार यानी सितारे। उनका जवाब था - मजाक छोडिये, मेरी आज मदद कीजिए। आपने पत्रकारों के सरकारी मकान जो खाली कराने का अभियान चलाया है उससे सभी संबंधित कागजात ले आएं साथ ही प्रभु चावला ने यह भी कहा- आपने 12 पेज का एक व्हाइट पेपर भी निकाला है और दूरदर्शन पर इससे रिलेटेड जो प्रोग्राम दिखाया है श्न्यूज वाच, उसका कैसेट भी ले आएं ''। मैंने जवाब दिया - कब तक। उन्होंने कहा- अभी एक घंटे में''। मैंने कहा- अच्छा देखता हूं। खैर, मैं प्रभु चावला जी के पास उस सभी सामग्री को लेकर पहुंच गया। चावला जी ने मुझे धन्यवाद कहा और मैं वहां से चला आया। मुझे उनके खेल का पता नहीं था।
दरअसल, प्रभु चावला और एचके दुआ दोनों ने ही इंडियन एक्सप्रेस समाचार पत्र के संपादक पद के लिए अप्लाई कर रखा था। दोनों का इंटरव्यू था। एचके दुआ ने सरकारी मकान पर कब्जा कर रखा था। यह एक ऐसा प्वाइंट था जो एचके दुआ के खिलाफ था। इन दस्तावेजों के आधार पर प्रभु चावला और एचके दुआ में समझौता हो गया। इस समझौते के कारण एक को इंडियन एक्सप्रेस और दूसरे को फाइनेंशियल एक्सप्रेस में संपादक की हैसियत से नौकरी मिली। दोनों खिलाड़ी संतुष्ट हो गए।
सवाल उठता है कि यह पत्रकारिता के स्rEभ कहे जाने वाले लोग अपने स्वार्थ के लिए कैसे-कैसे लोगों का प्रयोग करते हैं। एक दिन मेरे एक मित्र जेएन शर्मा ने बुलाया और कहा- त्यागी जी हमने एक फार्म हाउस खरीदा है। मैं चाहता हूं, उस पर मकान बनाना है, आप उसकी बुनियाद रखें। मैं शर्मा जी के निमंत्रण को मना नहीं कर सका। गाजियाबाद से पहले डाबर फैक्टरी के समीप नहर के किनारे उस फार्म हाउस पर कार्यक्रम आयोजित हुआ। मैंने उस बिल्डिंग का शिलान्यास किया। उसी समय सत्ता की वैशाखियों पर चढ़े मशहूर फोटोग्राफर रघु राय भी अपनी बेटी के साथ आ गए थे। उन्होंने कहा- चलिए त्यागी जी। मैं भी अपना फार्म हाउस दिखाता हूं।
फिर हम सब लोग उनका फार्म हाउस देखने चले गए। उनके फार्म हाउस पर टयूबवेल चल रहा था। सिंचाई हो रही थी। मैंने उसी जगह से मिट्टी उठाई। उसे उठाकर देखा तो उसमें रेत की मात्रा ज्यादा थी। मैंने कहा- श्श्रघुराय जी, इस मिट्टी में धान और गन्ना, कपास जैसी फसल अच्छी नहीं होगी। इसमें रेत ज्यादा हैश्श्। वह कहने लगे- इसमें पानी ज्यादा लगाना पड़ता है। मैने कहा- मक्का, बाजरा, गेहूं आदि के लिए ठीक है। रेत वाली जमीन में पानी की ज्यादा जरूरत होती है। मैंने पूछा किसने फार्म हाउस दिलवाया। दोनों ने बताया- प्रभु चावला ने। आपको भी चाहिए तो प्रभु चावला आपको भी दिलवा देंगे। यहां उन्होंने औरों को भी दिलवाये हैं। सवाल उठता है बड़े पत्रकार जब प्रॉपर्टी खरीदने-बेचने का धंधा करते हो तो कैसी पत्रकारिता।
उधर प्रभु चावला ने दिल्ली के बिल्डरों के विरुध्द एक कम्पेन चलाया। बिल्डरों के समूह में से एक ने प्रभु चावला से समझौता कर लिया। उन्हें बिल्डर ने एक बड़ा प्लाट दे दिया। निर्धारित रकम न होने के कारण उन्होंने रघु राय से सम्पर्क किया। रघु राय ने प्रभु चावला को पैसा दे दिया और जमीन अपने नाम लिखवा ली।
थोड़े दिन के पश्चात जमीन के दाम बढ़ गए तो प्रभु चावला ने रघु राय से कहा कि आप अपना पैसा वापस ले लें और जमीन वापस कर दें। इस पर रघु राय ने कहा- मैंने तो जमीन आपसे खरीदी है, मैं तो जमीन आपको नहीं लौटाऊंगा। फिर आपस में कहा-सुनी हुई। परन्तु रघु राय ने प्लाट वापस करने से स्i"ट इनकार कर दिया। सवाल यह उठता है कि इन लोगों के पास फार्म हाउस खरीदने, बिल्डिंगें बनाने के लिए इतना-इतना धन कहां से आ रहा है।
पत्रकारिता की यह बगुले भगत क्या-क्या धंधे कर रहे हैं। बड़े समाचार पत्रों के नाम पर ब्लैकमेलिंग, धोखाधड़ी करके संपत्तिा अर्जित कर रहे हैं। कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि प्रभु चावला ने पेट्रोलियम मिनिस्ट्री से पेट्रोल पम्प भी अपने और रिश्तेदारों के नाम पर अलाट कराये हैं। 1991 में चन्द्रशेखर जब देश के प्रधानमंत्री थे तब शायद बंगलौर या नागपुर से प्रधानमंत्री के वायु सेना के विमान में कहीं से चढ़े थे। उसी प्लेन में हरियाणा के मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला भी प्रधानमंत्री के साथ सफर कर रहे थे।
जैसे ही चौटाला प्रधानमंत्री के पास से उठकर अधिकारियों और पत्रकारों की ओर आए तो प्रभु चावला ने अखबार से अपना मुंह ढंक लिया। पता नहीं ओम प्रकाश चौटाला की निगाह प्रभु चावला पर पड़ी की नहीं। चौटाला तो आगे निकल गए। मैं भी उसी वायुयान में मौजूद था। मैंने प्रभु चावला से उनके द्वारा अखबार द्वारा अपना मुंह ढंकने के बारे में पूछा, तो उनका उत्तर था- त्यागी जी जरा अभी शांत रहो, इसके चले जाने दो। आपको पता है महम कांड के बाद इसने हमारे इंडिया टुडे के फरीदाबाद की प्रेस पर क्या करवाया था। अभी थोड़े देर शांत रहें। इस चौटाला का कुछ पता नहीं चलता, कहीं भी प्लेन रुकवाकर मुझे प्लेन से उतरवा देगा। मेरे लिए आज दिल्ली पहुंचना जरूरी है।
चौटाला लौट आए। उन्होंने मुझसे दूर से ही राजी खुशी का हाल पूछा और फिर प्रधानमंत्री के पास जाकर बैठ गए। उनके जाने पर प्रभु चावला ने मुंह से अखबार हटा लिया। चावला जी ने संतोष की सांस ली। तो इस प्रकार, इंडिया टुडे और आज तक जैसे चौनल का प्रधान संपादक कहलाने वाला प्रभु चावला कैसे अखबार में मुंह छिपा लिया था।
मगर यह कहानी सिर्फ प्रभु चावला के बारे में नहीं है। उनके मामले में तो एक प्रसिद्व फिल्म का नाम इस्तेमाल किया ही जा सकता है कि बाप नंबरी तो बेटा दस नंबरी। पद्म भूषण आदि से सम्मानित हो चुके और भाजपा में उनके दोस्तों की चली तो राज्यसभा तक पहुंच सकने वाले प्रभु चावला की क्यारी में जो अंकुर उगा है वह उनका बेटा और उसका नाम भी अंकुर चावला है। कहानी अंकुर चावला के बारे में है।
अंकुर चावला की गिनती अब बड़े वकीलों में होने लगी है। एक मामले में पकड़े गए मगर जाहिर है कि रिश्वत खिला कर अपने लोगों के पक्ष में फैसले करवाना उनकी पुरानी शैली रही है। जब वे पकड़े गए थे तो मामला एक बहुत बड़े हिंदी दैनिक अमर उजाला का था जिसमें झगड़ा चल रहा है और कंपनी लॉ बोर्ड के कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर आर बासुदेवन को रिश्वत खिला कर फैसला अपने हक में करवाने के सिलसिले में जो लोग रंगे हाथों पकड़े गए थे उनमें अंकुर चावला भी एक हैं।
वासुदेवन को जेल जाना पड़ा लेकिन अंकुर चावला अपने पिता के प्रताप से बच गए। रिश्वत अमर उजाला के कंपनी सेक्रेटरी मनोज बाठिया के जरिए दिलवाई गई थी और उन्होंने तय दस लाख रुपए में से तीन लाख रुपए खुद हजम कर लिए थे। आजकल चोरों का भी दीन ईमान नहीं होता। मामले की एफआईआर में अंकुर चावला को दलाल दर्ज किया गया है।
अचानक अंकुर चावला पर सीबीआई की इतनी विकट कृपा हुई कि सीबीआई ने खुद आवेदन दे कर अंकुर चावला को अपना जांच सहयोगी घोषित कर दिया यानी अपने ही खिलाफ जांच में खुद अभियुक्त ही मदद देगा और जांच की शर्ते भी शायद तय करेगा। अंकुर चावला ने उस समय झूठ बोला था कि वे देश से बाहर थे इसलिए इस मामले में उनका कोई हाथ नहीं माना जा सकता। कितने बड़े ढक्कन वकील है कि ढंग का तर्क भी नहीं खोज सकते। मगर जब अभियोजन पक्ष की मदद कर रहा हो तो ढक्कनों को डिब्बा बनने में कितनी देर लगती है। सीबीआई की प्रेस विज्ञप्ति तक में उनका नाम नहीं है। फिर भी अखबारों में अंकुर चावला का नाम साजिश करने वालों के तौर पर छपा और सीबीआई के हवाले से छपा। आखिर कंपनी सेक्रेटरी मनोज बाठिया ने भी कहा था कि सौदा चावला साहब ने तय किया था।
जब सीबीआई की बारी आई तो उसने अदालत से कहा कि अंकुर चावला जांच में आज से शामिल हो गए हैं। इसी दिन अदालत ने मनोज बाठियां को जेल भेज दिया। सच यह है कि सीबीआई के अधिकारी अंकुर चावला से पूछताछ करना चाहते थे और बाठियां ने जो तथ्य दिए थे उनकी पुष्टि करना चाहते थे। मगर बाठिया को तो हिरासत में रखा गया और अभियुक्त चावला को जांच टीम में शामिल और सहयोगी मान लिया गया। इकॉनामिक टाइम्स में तो सीबीआई के हवाले से कहा गया है कि अंकुर चावला के यहां छापा पड़ा तो इस मामले के सारे दस्तावेज मिले। आश्चर्य की बात यह है कि अमर उजाला के झगड़ा कर रहे मालिकों में से एक और रिश्वत के असली सूत्रधार अतुल माहेश्वरी को तो पुलिस ने छुआ ही नहीं।
मजेदार बात यह है कि जिस समय यह सब हुआ, प्रभु चावला इंडिया टुडे समूह के प्रधान संपादक थे। लेकिन इसी समूह के दैनिक मेल टुडे ने जहां प्रभु चावला का साप्ताहिक स्तंभ आज भी छपता है, सबसे विस्तार से इस घटना के बारे में लिखा। हो सकता है कि ग्रुप चेयरमैन अरुण पुरी से पूछ लिया गया होगा और प्रभु चावला के अंत की शुरूआत वहीं से हुई हो। मेल टुडे ने लिखा था कि जिस वकील ने रिश्वत देने का इंतजाम किया था उसके घर पर पड़े छापे में अमर उजाला के सारे दस्तावेज बरामद हुए थे। छापा सफदरजंग एक्सटेंशन में पड़ा और अंकुर चावला का ऑफिस डिफेंस कॉलोनी में ज्यादा दूर नहीं है। मामला भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत दर्ज किया गया है जहां रहम की ज्यादा गुंजाइश होती नहीं हैं मगर जिस पर प्रभु कृपा हो उस अंकुर का आप क्या बिगाड़ सकते हैं?
प्रभु चावला के बारे में भी मीडिया वेबसाइट भड़ास4मीडिया पर जाने माने फोटोग्राफर और खरा खरा बोलने के लिए कुख्यात विजेंद्र त्यागी ने प्रभु चावला के बारे में कुछ सनसनीखेज रहस्योद्धाटन किए हैं। इनमे प्रभु चावला द्वारा फॉर्म हाउस की खरीद से ले कर एक सम्मानित संपादक को श्री त्यागी के पास मौजूद दस्तावेजों के आधार पर ब्लैकमेल करने का खुलासा किया गया। जिन्हें ब्लैकमेल किया गया था वे संपादक राजदूत भी रह चुके हैं और फिलहाल राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा में मनोनीत है।
विजेंद्र त्यागी ने लिखा है कि- एक दिन सीधी बात वाले टेढ़े आदमी ने मुझे टेलीफोन किया। श्त्यागी जी मुझे आपसे एक व्यक्तिगत काम है। मैंने पूछा- चावला जी, मुझसे ऐसा कौन सा काम आ पड़ा। आप तो पत्रिका के संपादक हैं और पत्रकारिता के स्टार यानी सितारे। उनका जवाब था - मजाक छोडिये, मेरी आज मदद कीजिए। आपने पत्रकारों के सरकारी मकान जो खाली कराने का अभियान चलाया है उससे सभी संबंधित कागजात ले आएं साथ ही प्रभु चावला ने यह भी कहा- आपने 12 पेज का एक व्हाइट पेपर भी निकाला है और दूरदर्शन पर इससे रिलेटेड जो प्रोग्राम दिखाया है श्न्यूज वाच, उसका कैसेट भी ले आएं ''। मैंने जवाब दिया - कब तक। उन्होंने कहा- अभी एक घंटे में''। मैंने कहा- अच्छा देखता हूं। खैर, मैं प्रभु चावला जी के पास उस सभी सामग्री को लेकर पहुंच गया। चावला जी ने मुझे धन्यवाद कहा और मैं वहां से चला आया। मुझे उनके खेल का पता नहीं था।
दरअसल, प्रभु चावला और एचके दुआ दोनों ने ही इंडियन एक्सप्रेस समाचार पत्र के संपादक पद के लिए अप्लाई कर रखा था। दोनों का इंटरव्यू था। एचके दुआ ने सरकारी मकान पर कब्जा कर रखा था। यह एक ऐसा प्वाइंट था जो एचके दुआ के खिलाफ था। इन दस्तावेजों के आधार पर प्रभु चावला और एचके दुआ में समझौता हो गया। इस समझौते के कारण एक को इंडियन एक्सप्रेस और दूसरे को फाइनेंशियल एक्सप्रेस में संपादक की हैसियत से नौकरी मिली। दोनों खिलाड़ी संतुष्ट हो गए।
सवाल उठता है कि यह पत्रकारिता के स्rEभ कहे जाने वाले लोग अपने स्वार्थ के लिए कैसे-कैसे लोगों का प्रयोग करते हैं। एक दिन मेरे एक मित्र जेएन शर्मा ने बुलाया और कहा- त्यागी जी हमने एक फार्म हाउस खरीदा है। मैं चाहता हूं, उस पर मकान बनाना है, आप उसकी बुनियाद रखें। मैं शर्मा जी के निमंत्रण को मना नहीं कर सका। गाजियाबाद से पहले डाबर फैक्टरी के समीप नहर के किनारे उस फार्म हाउस पर कार्यक्रम आयोजित हुआ। मैंने उस बिल्डिंग का शिलान्यास किया। उसी समय सत्ता की वैशाखियों पर चढ़े मशहूर फोटोग्राफर रघु राय भी अपनी बेटी के साथ आ गए थे। उन्होंने कहा- चलिए त्यागी जी। मैं भी अपना फार्म हाउस दिखाता हूं।
फिर हम सब लोग उनका फार्म हाउस देखने चले गए। उनके फार्म हाउस पर टयूबवेल चल रहा था। सिंचाई हो रही थी। मैंने उसी जगह से मिट्टी उठाई। उसे उठाकर देखा तो उसमें रेत की मात्रा ज्यादा थी। मैंने कहा- श्श्रघुराय जी, इस मिट्टी में धान और गन्ना, कपास जैसी फसल अच्छी नहीं होगी। इसमें रेत ज्यादा हैश्श्। वह कहने लगे- इसमें पानी ज्यादा लगाना पड़ता है। मैने कहा- मक्का, बाजरा, गेहूं आदि के लिए ठीक है। रेत वाली जमीन में पानी की ज्यादा जरूरत होती है। मैंने पूछा किसने फार्म हाउस दिलवाया। दोनों ने बताया- प्रभु चावला ने। आपको भी चाहिए तो प्रभु चावला आपको भी दिलवा देंगे। यहां उन्होंने औरों को भी दिलवाये हैं। सवाल उठता है बड़े पत्रकार जब प्रॉपर्टी खरीदने-बेचने का धंधा करते हो तो कैसी पत्रकारिता।
उधर प्रभु चावला ने दिल्ली के बिल्डरों के विरुध्द एक कम्पेन चलाया। बिल्डरों के समूह में से एक ने प्रभु चावला से समझौता कर लिया। उन्हें बिल्डर ने एक बड़ा प्लाट दे दिया। निर्धारित रकम न होने के कारण उन्होंने रघु राय से सम्पर्क किया। रघु राय ने प्रभु चावला को पैसा दे दिया और जमीन अपने नाम लिखवा ली।
थोड़े दिन के पश्चात जमीन के दाम बढ़ गए तो प्रभु चावला ने रघु राय से कहा कि आप अपना पैसा वापस ले लें और जमीन वापस कर दें। इस पर रघु राय ने कहा- मैंने तो जमीन आपसे खरीदी है, मैं तो जमीन आपको नहीं लौटाऊंगा। फिर आपस में कहा-सुनी हुई। परन्तु रघु राय ने प्लाट वापस करने से स्i"ट इनकार कर दिया। सवाल यह उठता है कि इन लोगों के पास फार्म हाउस खरीदने, बिल्डिंगें बनाने के लिए इतना-इतना धन कहां से आ रहा है।
पत्रकारिता की यह बगुले भगत क्या-क्या धंधे कर रहे हैं। बड़े समाचार पत्रों के नाम पर ब्लैकमेलिंग, धोखाधड़ी करके संपत्तिा अर्जित कर रहे हैं। कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि प्रभु चावला ने पेट्रोलियम मिनिस्ट्री से पेट्रोल पम्प भी अपने और रिश्तेदारों के नाम पर अलाट कराये हैं। 1991 में चन्द्रशेखर जब देश के प्रधानमंत्री थे तब शायद बंगलौर या नागपुर से प्रधानमंत्री के वायु सेना के विमान में कहीं से चढ़े थे। उसी प्लेन में हरियाणा के मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला भी प्रधानमंत्री के साथ सफर कर रहे थे।
जैसे ही चौटाला प्रधानमंत्री के पास से उठकर अधिकारियों और पत्रकारों की ओर आए तो प्रभु चावला ने अखबार से अपना मुंह ढंक लिया। पता नहीं ओम प्रकाश चौटाला की निगाह प्रभु चावला पर पड़ी की नहीं। चौटाला तो आगे निकल गए। मैं भी उसी वायुयान में मौजूद था। मैंने प्रभु चावला से उनके द्वारा अखबार द्वारा अपना मुंह ढंकने के बारे में पूछा, तो उनका उत्तर था- त्यागी जी जरा अभी शांत रहो, इसके चले जाने दो। आपको पता है महम कांड के बाद इसने हमारे इंडिया टुडे के फरीदाबाद की प्रेस पर क्या करवाया था। अभी थोड़े देर शांत रहें। इस चौटाला का कुछ पता नहीं चलता, कहीं भी प्लेन रुकवाकर मुझे प्लेन से उतरवा देगा। मेरे लिए आज दिल्ली पहुंचना जरूरी है।
चौटाला लौट आए। उन्होंने मुझसे दूर से ही राजी खुशी का हाल पूछा और फिर प्रधानमंत्री के पास जाकर बैठ गए। उनके जाने पर प्रभु चावला ने मुंह से अखबार हटा लिया। चावला जी ने संतोष की सांस ली। तो इस प्रकार, इंडिया टुडे और आज तक जैसे चौनल का प्रधान संपादक कहलाने वाला प्रभु चावला कैसे अखबार में मुंह छिपा लिया था।