स्वास्थ्य मंत्री डाॅ. राजीव बिन्दल ने आज कहा कि किसी क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति के सम्बन्ध में लिंगानुपात एक महत्वपूर्ण सूचकांक है। उन्होंने कहा कि लिंगानुपात मंे बढ़ौतरी लोगों में सामाजिक जागरुकता को दर्शाती है, जिससे समाज में महिला सशक्तिकरण को बल मिलता है। घटता लिंगानुपात सामाजिक असंतुलन उत्पन्न करता है और इससे आधुनिक समाज के पिछड़ेपन का अहसास भी होता है। उन्होंने कहा कि हमारे देश में लिंग भेद-भाव का सबसे बुरा उदाहरण कन्या भ्रूण हत्या है।
दुर्भाग्यवश कन्या भ्रूण हत्या केवल अनपढ़ और गरीब व्यक्तियों द्वारा ही नहीं की जाती। इस घृणित कार्य में पढ़े-लिखे और संभ्रांत लोग भी शामिल हैं। यह दुःखद है कि हमारे देश के विकसित क्षेत्रों और शहरों से कन्या भ्रूण हत्या के अधिक मामले सामने आ रहे हैं। समाज को इस सम्बन्ध में जागरुक बनाना आवश्यक हो गया है कि कन्या शिशु परिवार एवं समाज के लिए ईश्वर का एक उपहार है।
लोगों को यह समझना होगा कि लिंगानुपात के असंतुलन से विवाह योग्य लड़कियों की कमी हो जाएगी, जिसका व्यापक असर सामाजिक ताने-बाने पर पड़ेगा। हालांकि शिक्षित वर्ग अब छोटे परिवार की अवधारणा को अपना रहे हैं किन्तु फिर भी उनमें लड़कों की चाह बरकरार है। इन परिवारों के लिए आधुनिक चिकित्सा तकनीक सुलभ है और इसके सहारे वे गर्भपात करवाकर मनचाहे लिंग का चुनाव कर रहे हैं।
हिमाचल प्रदेश स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग ने 1993 से लेकर अब तक 17 वर्षों के जन्म के समय लिंगानुपात के आंकड़े नागरिक पंजीकरण प्रणाली के तहत एकत्र किए हैं। जन्म के समय लिंगानुपात वर्ष 1993 में 898, 1994 में 876, 1995 में 983, 1996 में 879, 1997 में 858, 1998 में 849, 1999 में 784, 2000 में 857, 2001 में 856, 2002 में 866, 2003 में 877, 2004 में 872, 2005 में 866, 2006 में 885, 2007 में 903, 2008 में 904 और 2009 में 922 था।
स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि इन आंकड़ों से यह पता चलता है कि राज्य में जन्म के समय लिंगानुपात में सुधार हो रहा है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के सतत् प्रयासों से हिमाचल प्रदेश में जन्म के समय लिंगानुपात में लगातार वृद्धि हो रही है और नागरिक पंजीकरण प्रणाली के अनुसार वर्ष 2009 में प्रति एक हजार लड़कों पर 922 लड़कियां थीं, जबकि 1993 में यह दर 898 थी।
उन्होंने कहा कि राज्य में मुख्यमंत्री द्वारा 15 जुलाई, 2010 को शिमला से ‘बेटी है अनमोल’ नामक जागरुकता अभियान आरंभ किया गया था, जोकि देश में अपनी तरह का पहला अभियान था। उन्होंने कहा कि इस अभियान को जिला कांगड़ा के धर्मशाला से भी कन्या पूजन के साथ स्वास्थ्य मंत्री द्वारा आरंभ किया गया था।
उन्होंने कहा कि इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने सामाजिक कार्यकर्ताओं, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, स्वयंसेवी संस्थाओं और अन्य को शपथ भी दिलाई थी। उन्होंने कहा कि पंचायत सदस्यों, स्वंयसेवी संस्थाओं और अन्य को उन्होंने स्वंय 1000 पत्र लिखे थे, जिनमें सहयोग का आग्रह किया गया था। कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए 25 जुलाई 2010 को एक दिवसीय अंतरराज्यीय सम्मेलन भी आयोजित किया गया था, जिसमें हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड और हरियाणा के साथ केन्द्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ ने भी भाग लिया था।
उन्होंने कहा कि जागरुकता अभियान के दौरान शिविर, रैली, 75 पारंपरिक मीडिया शो और रोड शो, चित्रकला प्रतियोगिता और वाद-विवाद प्रतियोगिताएं आयोजित की गयी थीं। 50 हजार लोगों ने शपथपत्र पर हस्ताक्षर किए थे। उन्होंने कहा कि पीएनडीटी अधिनियम के तहत अल्ट्रासाउंड करने वाली क्लीनिकों का नियमित निरीक्षण किया जा रहा है और इस अधिनियम के बारे में चिकित्सा अधिकारियों को जागरुक बनाने के लिए नियमित तौर पर सम्मेलन एवं कार्यशालाएं आयोजित की जा रही हैं।
डाॅ. बिंदल ने कहा कि राज्य सरकार ने बीपीएल परिवारों के लिए ‘बेटी है अनमोल’ योजना आरंभ करने का निर्णय लिया। योजना के तहत प्रत्येक बीपीएल परिवार ने दो लड़कियों तक के लिए राज्य सरकार द्वारा प्रत्येक लड़की के नाम डाकघर में 5100 रुपये जमा करवाए जाते हैं। व्यस्क होने पर इस राशि को ब्याज सहित लड़कियों को दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि वर्तमान में बीपीएल परिवारों की लड़कियों को दसवीं कक्षा तक छात्रवृत्ति प्रदान की जा रही है। अब उन्हें 12वीं कक्षा तक छात्रवृत्ति के रूप में 1500 रुपये दिए जाएंगे। उन्होंने कहा कि अभियान के बाद राज्य पर्यटन विभाग ने इसी नाम से एक विशेष पैकेज भी दिया। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी बालिका सुरक्षा योजना के तहत एक अथवा दो कन्याओं के बाद नसबंदी करवाने वाले दम्पतियों को क्रमशः 25 हजार व 20 हजार रुपये दिए जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि बीपीएल परिवारों की संभावित माताओं को घर में प्रसव करवाने पर 500 रुपये, संस्थान में प्रसूति करवाने पर 600 रुपये और ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित संस्थानों में प्रसूति करवाने पर 700 रुपये नकद सहायता के रूप में दिए जाएंगे। बीपीएल तथा एपीएल परिवारों की महिलाओं को प्रसूति के लिए स्वास्थ्य संस्थान आने-जाने के लिए 6 रुपये प्रति किलोमीटर की दर से टैक्सी का किराया दिया जाएगा। सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में सभी महिलाओं को निःशुल्क प्रसूति सुविधा प्रदान की गयी है और सामान्य प्रसूति के लिए अस्पताल में दाखिल होने से 48 घंटे पहले तथा सिजेरियन के लिए एक सप्ताह पहले तक का सारा खर्च रोगी कल्याण समितियां उठाएंगी। उन्होंने कहा कि यदि गर्भवती महिलाओं को किसी अन्य अस्पताल भेजा जाता
है तो परिवहन का सारा खर्च भी रोगी कल्याण समितियां वहन करेंगी। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत मातृत्व के सारे लाभ और निःशुल्क प्रसूति सुविधा प्रदान की जा रही है।
डाॅ. बिन्दल ने कहा कि 11 से 18 वर्ष की सभी लड़कियों को स्वास्थ्य कार्ड प्रदान किए जाएंग, जिसमें उनका स्वास्थ्य संबंधी पूरा विवरण होगा। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत अनाथ अथवा शारीरिक एवं मानसिक रूप से अपंग अभिभावकों और तलाकशुदा महिलाओं की लड़कियों के विवाह के लिए वित्तीय सहायता के रूप में 11001 रुपये प्रदान किए जा रहे हैं। यह वित्तीय सहायता 15 हजार रुपये से कम वार्षिक आय वाले अभिभावकों को दी जा रही है। विधवा पुनर्विवाह योजना के तहत 25 हजार रुपये प्रदान किए जा रहे हैं। 50 वर्ष से कम अनाथ, असहाय और तलाकशुदा एवं एकल महिलाओं के लिए नारी सेवा सदन स्थापित किए गए हैं, जहां उन्हें निःशुल्क भोजन, शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है और प्रशिक्षण के उपरांत पुनर्वास के लिए 10 हजार रुपये तथा विवाह के लिए 11001 रुपये प्रदान किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि जिन महिलाओं की वार्षिक आय 7500 रुपये से कम है, को स्वरोजगार के लिए 2500 रुपये की सहायता दी जा रही है। हिमाचल प्रदेश महिला आयोग का गठन महिलाओं की समस्याओं के निराकरण के लिए किया गया है।
उन्होंने कहा कि मदर टेरेसा असहाय मातृ संबल योजना के तहत 18000 रुपये से कम वार्षिक आय वाली अनाथ महिलाओं और 18 वर्ष तक के बच्चों को प्रतिवर्ष 2000 रुपये वित्तीय सहायता के रूप में दिए जा रहे हैं। 11 से 18 वर्ष तक की लड़कियों को किशोरी शक्ति योजना के तहत पौष्टिक भोजन, स्वास्थ्य शिक्षा, स्वच्छता, परिवार कल्याण और दक्षता शिक्षा के बारे में जानकारी दी जा रही है। बालिका समृद्धि योजना के तहत बीपीएल परिवारों की लड़कियों के लिए डाकघर में 500 रुपये जमा करवाए जा रहे हैं। 6 से 18 वर्ष की लड़कियों को स्कूल जाने पर वार्षिक छात्रवृत्तियां प्रदान की जा रही हैं।
दुर्भाग्यवश कन्या भ्रूण हत्या केवल अनपढ़ और गरीब व्यक्तियों द्वारा ही नहीं की जाती। इस घृणित कार्य में पढ़े-लिखे और संभ्रांत लोग भी शामिल हैं। यह दुःखद है कि हमारे देश के विकसित क्षेत्रों और शहरों से कन्या भ्रूण हत्या के अधिक मामले सामने आ रहे हैं। समाज को इस सम्बन्ध में जागरुक बनाना आवश्यक हो गया है कि कन्या शिशु परिवार एवं समाज के लिए ईश्वर का एक उपहार है।
लोगों को यह समझना होगा कि लिंगानुपात के असंतुलन से विवाह योग्य लड़कियों की कमी हो जाएगी, जिसका व्यापक असर सामाजिक ताने-बाने पर पड़ेगा। हालांकि शिक्षित वर्ग अब छोटे परिवार की अवधारणा को अपना रहे हैं किन्तु फिर भी उनमें लड़कों की चाह बरकरार है। इन परिवारों के लिए आधुनिक चिकित्सा तकनीक सुलभ है और इसके सहारे वे गर्भपात करवाकर मनचाहे लिंग का चुनाव कर रहे हैं।
हिमाचल प्रदेश स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग ने 1993 से लेकर अब तक 17 वर्षों के जन्म के समय लिंगानुपात के आंकड़े नागरिक पंजीकरण प्रणाली के तहत एकत्र किए हैं। जन्म के समय लिंगानुपात वर्ष 1993 में 898, 1994 में 876, 1995 में 983, 1996 में 879, 1997 में 858, 1998 में 849, 1999 में 784, 2000 में 857, 2001 में 856, 2002 में 866, 2003 में 877, 2004 में 872, 2005 में 866, 2006 में 885, 2007 में 903, 2008 में 904 और 2009 में 922 था।
स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि इन आंकड़ों से यह पता चलता है कि राज्य में जन्म के समय लिंगानुपात में सुधार हो रहा है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के सतत् प्रयासों से हिमाचल प्रदेश में जन्म के समय लिंगानुपात में लगातार वृद्धि हो रही है और नागरिक पंजीकरण प्रणाली के अनुसार वर्ष 2009 में प्रति एक हजार लड़कों पर 922 लड़कियां थीं, जबकि 1993 में यह दर 898 थी।
उन्होंने कहा कि राज्य में मुख्यमंत्री द्वारा 15 जुलाई, 2010 को शिमला से ‘बेटी है अनमोल’ नामक जागरुकता अभियान आरंभ किया गया था, जोकि देश में अपनी तरह का पहला अभियान था। उन्होंने कहा कि इस अभियान को जिला कांगड़ा के धर्मशाला से भी कन्या पूजन के साथ स्वास्थ्य मंत्री द्वारा आरंभ किया गया था।
उन्होंने कहा कि इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने सामाजिक कार्यकर्ताओं, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, स्वयंसेवी संस्थाओं और अन्य को शपथ भी दिलाई थी। उन्होंने कहा कि पंचायत सदस्यों, स्वंयसेवी संस्थाओं और अन्य को उन्होंने स्वंय 1000 पत्र लिखे थे, जिनमें सहयोग का आग्रह किया गया था। कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए 25 जुलाई 2010 को एक दिवसीय अंतरराज्यीय सम्मेलन भी आयोजित किया गया था, जिसमें हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड और हरियाणा के साथ केन्द्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ ने भी भाग लिया था।
उन्होंने कहा कि जागरुकता अभियान के दौरान शिविर, रैली, 75 पारंपरिक मीडिया शो और रोड शो, चित्रकला प्रतियोगिता और वाद-विवाद प्रतियोगिताएं आयोजित की गयी थीं। 50 हजार लोगों ने शपथपत्र पर हस्ताक्षर किए थे। उन्होंने कहा कि पीएनडीटी अधिनियम के तहत अल्ट्रासाउंड करने वाली क्लीनिकों का नियमित निरीक्षण किया जा रहा है और इस अधिनियम के बारे में चिकित्सा अधिकारियों को जागरुक बनाने के लिए नियमित तौर पर सम्मेलन एवं कार्यशालाएं आयोजित की जा रही हैं।
डाॅ. बिंदल ने कहा कि राज्य सरकार ने बीपीएल परिवारों के लिए ‘बेटी है अनमोल’ योजना आरंभ करने का निर्णय लिया। योजना के तहत प्रत्येक बीपीएल परिवार ने दो लड़कियों तक के लिए राज्य सरकार द्वारा प्रत्येक लड़की के नाम डाकघर में 5100 रुपये जमा करवाए जाते हैं। व्यस्क होने पर इस राशि को ब्याज सहित लड़कियों को दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि वर्तमान में बीपीएल परिवारों की लड़कियों को दसवीं कक्षा तक छात्रवृत्ति प्रदान की जा रही है। अब उन्हें 12वीं कक्षा तक छात्रवृत्ति के रूप में 1500 रुपये दिए जाएंगे। उन्होंने कहा कि अभियान के बाद राज्य पर्यटन विभाग ने इसी नाम से एक विशेष पैकेज भी दिया। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी बालिका सुरक्षा योजना के तहत एक अथवा दो कन्याओं के बाद नसबंदी करवाने वाले दम्पतियों को क्रमशः 25 हजार व 20 हजार रुपये दिए जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि बीपीएल परिवारों की संभावित माताओं को घर में प्रसव करवाने पर 500 रुपये, संस्थान में प्रसूति करवाने पर 600 रुपये और ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित संस्थानों में प्रसूति करवाने पर 700 रुपये नकद सहायता के रूप में दिए जाएंगे। बीपीएल तथा एपीएल परिवारों की महिलाओं को प्रसूति के लिए स्वास्थ्य संस्थान आने-जाने के लिए 6 रुपये प्रति किलोमीटर की दर से टैक्सी का किराया दिया जाएगा। सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में सभी महिलाओं को निःशुल्क प्रसूति सुविधा प्रदान की गयी है और सामान्य प्रसूति के लिए अस्पताल में दाखिल होने से 48 घंटे पहले तथा सिजेरियन के लिए एक सप्ताह पहले तक का सारा खर्च रोगी कल्याण समितियां उठाएंगी। उन्होंने कहा कि यदि गर्भवती महिलाओं को किसी अन्य अस्पताल भेजा जाता
है तो परिवहन का सारा खर्च भी रोगी कल्याण समितियां वहन करेंगी। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत मातृत्व के सारे लाभ और निःशुल्क प्रसूति सुविधा प्रदान की जा रही है।
डाॅ. बिन्दल ने कहा कि 11 से 18 वर्ष की सभी लड़कियों को स्वास्थ्य कार्ड प्रदान किए जाएंग, जिसमें उनका स्वास्थ्य संबंधी पूरा विवरण होगा। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत अनाथ अथवा शारीरिक एवं मानसिक रूप से अपंग अभिभावकों और तलाकशुदा महिलाओं की लड़कियों के विवाह के लिए वित्तीय सहायता के रूप में 11001 रुपये प्रदान किए जा रहे हैं। यह वित्तीय सहायता 15 हजार रुपये से कम वार्षिक आय वाले अभिभावकों को दी जा रही है। विधवा पुनर्विवाह योजना के तहत 25 हजार रुपये प्रदान किए जा रहे हैं। 50 वर्ष से कम अनाथ, असहाय और तलाकशुदा एवं एकल महिलाओं के लिए नारी सेवा सदन स्थापित किए गए हैं, जहां उन्हें निःशुल्क भोजन, शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है और प्रशिक्षण के उपरांत पुनर्वास के लिए 10 हजार रुपये तथा विवाह के लिए 11001 रुपये प्रदान किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि जिन महिलाओं की वार्षिक आय 7500 रुपये से कम है, को स्वरोजगार के लिए 2500 रुपये की सहायता दी जा रही है। हिमाचल प्रदेश महिला आयोग का गठन महिलाओं की समस्याओं के निराकरण के लिए किया गया है।
उन्होंने कहा कि मदर टेरेसा असहाय मातृ संबल योजना के तहत 18000 रुपये से कम वार्षिक आय वाली अनाथ महिलाओं और 18 वर्ष तक के बच्चों को प्रतिवर्ष 2000 रुपये वित्तीय सहायता के रूप में दिए जा रहे हैं। 11 से 18 वर्ष तक की लड़कियों को किशोरी शक्ति योजना के तहत पौष्टिक भोजन, स्वास्थ्य शिक्षा, स्वच्छता, परिवार कल्याण और दक्षता शिक्षा के बारे में जानकारी दी जा रही है। बालिका समृद्धि योजना के तहत बीपीएल परिवारों की लड़कियों के लिए डाकघर में 500 रुपये जमा करवाए जा रहे हैं। 6 से 18 वर्ष की लड़कियों को स्कूल जाने पर वार्षिक छात्रवृत्तियां प्रदान की जा रही हैं।