मध्य प्रदेश सरकार की असंवेदनशीलता के बारे में राज एक्सप्रेस में रिपोर्ट प्रकाशित : जबलपुर से प्रकाशित होने वाले दैनिक राज एक्सप्रेस में इसके संपादक रवीन्द्र जैन की एक बाईलाइन खबर प्रकाशित हुई है. इसमें बताया गया है कि मध्य प्रदेश सरकार ने आलोक तोमर की बीमारी के लिये मुख्यमंत्री सहायता कोष से जो दो लाख रुपये की सहायता मंजूर की थी, वह राशि स्व. आलोक तोमर की पत्नी तक उस वक्त पहुंची जब आलोक इस दुनिया से ही विदा हो चुके थे.
स्व. आलोक तोमर की धर्मपत्नी ने मध्य प्रदेश सरकार द्वारा दी जाने वाली इस राशि का चेक सरकार को वापस कर दिया है. एक जांबाज और स्वाभिमानी पत्रकार की पत्नी से इसी तेवर की अपेक्षा थी. निश्चित तौर पर आलोक तोमर किसी मदद के मोहताज नहीं थे यदि उन्हें पैसों की इतनी ही चाहत होती तो वे कब के समझौतावादी रवैया अपना लेते परन्तु उनके भीतर एक ऐसे पत्रकार की आत्मा बसा करती थी जिसने न तो परिस्थितियों से समझौता करना सीखा था और न ही किसी के सामने सर झुकाना. यह बात सही है कि आज की पत्रकारिता में ऐसे लोगों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है क्योंकि जिस तरह की पत्रकारिता आजकल चल रही है उसमें व्यक्ति पत्रकार नही बल्कि एक नौकर की हैसियत से अखबारों में काम कर रहा है. आलोक जब तक जीवित रहे, उन्होंने अपने भीतर के पत्रकार की रूह को कभी मरने नही दिया.
मुझे याद है जब वे जनसत्ता में हुआ करते थे तब मध्य प्रदेश के बड़े बड़े नेता उनके सामने दुम हिलाया करते थे. उन्हें बार बार इस बात दुहाई देते थे कि वे भी उसी मध्य प्रदेश के नेता हैं जिसका प्रतिनिधित्व आलोक तोमर करते हैं. पर आज उनके किसी पद पर न रहने के बाद वे ही नेता अपने उस आलोक को भूल गये थे जिसे वे कभी मध्यप्रदेश का शेर कहा करते थे. वैसे तो आलोक तोमर ने मध्य प्रदेश सरकार से कोई आर्थिक सहायता नहीं मांगी थी पर उनके ही कुछ मित्रों ने प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को आलोक के मध्य प्रदेश का होने की जानकारी देकर उनसे मदद की अपील की थी. मुख्यमंत्री ने उन्हें मदद देने के निर्देश भी दिये परन्तु प्रदेश की बेलगाम नौकरशाही ने न तो आलोक की बीमारी की गंभीरता को समझा न ही उन्हें समय पर मदद पहुंचाने के लिये कोई प्रयास ही किये. इसका परिणाम ये निकला कि जब तक रुपयों की मदद पहुंची, तब तक वे ये दुनिया ही छोड़ चुके थे.
नेताओं के इलाज के लिये लाखों रुपये खर्च करने वाली मध्य प्रदेश सरकार की यह संवेदनहीनता धिक्कारने लायक है. सवाल दो लाख रुपयों का नही है. सवाल है अपने आप को बेहद संवेदनशीन बताने वाले प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और उनकी सरकार की संवेदनहीनता का. आलोक तो चले गये. अब ये दो लाख रुपये लेकर उनकी पत्नी करतीं भी तो क्या करतीं. सो, उन्होंने वह चेक वापस कर दिया जो इस बात को साफ करता है कि सुप्रिया रॉय ने अपने पति की शिक्षा को अपने में आत्मसात कर लिया है. ‘‘राज एक्सप्रेस’’ के रवीन्द्र जैन को इस बात के लिए बधाई कि उन्होंने यह खबर प्रकाशित कर प्रदेश की बेलगाम नौकरशाही को आइना दिखाया है.
लेखक चैतन्य भट्ट जबलपुर के वरिष्ठ पत्रकार हैं. कई अखबारों के संपादक रह चुके हैं. भट्टजी से संपर्क 09424959520 या फिर chaitanyajabalpur@gmail.com के जरिए किया जा सकता है.
स्व. आलोक तोमर की धर्मपत्नी ने मध्य प्रदेश सरकार द्वारा दी जाने वाली इस राशि का चेक सरकार को वापस कर दिया है. एक जांबाज और स्वाभिमानी पत्रकार की पत्नी से इसी तेवर की अपेक्षा थी. निश्चित तौर पर आलोक तोमर किसी मदद के मोहताज नहीं थे यदि उन्हें पैसों की इतनी ही चाहत होती तो वे कब के समझौतावादी रवैया अपना लेते परन्तु उनके भीतर एक ऐसे पत्रकार की आत्मा बसा करती थी जिसने न तो परिस्थितियों से समझौता करना सीखा था और न ही किसी के सामने सर झुकाना. यह बात सही है कि आज की पत्रकारिता में ऐसे लोगों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है क्योंकि जिस तरह की पत्रकारिता आजकल चल रही है उसमें व्यक्ति पत्रकार नही बल्कि एक नौकर की हैसियत से अखबारों में काम कर रहा है. आलोक जब तक जीवित रहे, उन्होंने अपने भीतर के पत्रकार की रूह को कभी मरने नही दिया.
मुझे याद है जब वे जनसत्ता में हुआ करते थे तब मध्य प्रदेश के बड़े बड़े नेता उनके सामने दुम हिलाया करते थे. उन्हें बार बार इस बात दुहाई देते थे कि वे भी उसी मध्य प्रदेश के नेता हैं जिसका प्रतिनिधित्व आलोक तोमर करते हैं. पर आज उनके किसी पद पर न रहने के बाद वे ही नेता अपने उस आलोक को भूल गये थे जिसे वे कभी मध्यप्रदेश का शेर कहा करते थे. वैसे तो आलोक तोमर ने मध्य प्रदेश सरकार से कोई आर्थिक सहायता नहीं मांगी थी पर उनके ही कुछ मित्रों ने प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को आलोक के मध्य प्रदेश का होने की जानकारी देकर उनसे मदद की अपील की थी. मुख्यमंत्री ने उन्हें मदद देने के निर्देश भी दिये परन्तु प्रदेश की बेलगाम नौकरशाही ने न तो आलोक की बीमारी की गंभीरता को समझा न ही उन्हें समय पर मदद पहुंचाने के लिये कोई प्रयास ही किये. इसका परिणाम ये निकला कि जब तक रुपयों की मदद पहुंची, तब तक वे ये दुनिया ही छोड़ चुके थे.
नेताओं के इलाज के लिये लाखों रुपये खर्च करने वाली मध्य प्रदेश सरकार की यह संवेदनहीनता धिक्कारने लायक है. सवाल दो लाख रुपयों का नही है. सवाल है अपने आप को बेहद संवेदनशीन बताने वाले प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और उनकी सरकार की संवेदनहीनता का. आलोक तो चले गये. अब ये दो लाख रुपये लेकर उनकी पत्नी करतीं भी तो क्या करतीं. सो, उन्होंने वह चेक वापस कर दिया जो इस बात को साफ करता है कि सुप्रिया रॉय ने अपने पति की शिक्षा को अपने में आत्मसात कर लिया है. ‘‘राज एक्सप्रेस’’ के रवीन्द्र जैन को इस बात के लिए बधाई कि उन्होंने यह खबर प्रकाशित कर प्रदेश की बेलगाम नौकरशाही को आइना दिखाया है.
लेखक चैतन्य भट्ट जबलपुर के वरिष्ठ पत्रकार हैं. कई अखबारों के संपादक रह चुके हैं. भट्टजी से संपर्क 09424959520 या फिर chaitanyajabalpur@gmail.com के जरिए किया जा सकता है.