सरकार पर संगठन हावी
विप्लव ने फिर दिखाई अपनी ताकत वीरभद्र को झटका, लोकसभा चुनावों में टिकट भी अब संगठन के कहने पर मिलेंगे
विजयेन्दर शर्मा । कागें्रस नेत्री विप्लव ठाकुर राज्य सभा की टिकट हासिल कर एक बार फिर पार्टी आलाकमान में अपनी पैठ का एहसास कराया है। इस मामले पर घटे राजनैतिक घटनाक्रम में तय हो गया है कि पार्टी में जो कुछ भी होगा, वह संगठन ही तय करेगा न कि सरकार में बैठे लोग। सीधे तौर प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह व उनके समर्थकों को जोर का झटका धीरे से लगा है। व उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया है। दरअसल विप्लव के लिये राज्य सभा का टिकट पार्टी महासचिव राहुल गांधी के माध्यम से ही तय हुआ है। राहुल के दखल के बाद ही हिमाचल का यह टिकट तय हुआ है। हालांकि इससे पहले दिल्ली की पूर्व सी एम शीला दीक्षित का नाम आगे चल रहा था। लेकिन ऐन मौका पर विप्लव की लाटरी लग गई। पिछले दिनों से इस मामले पर जोर आजमाईश चल रही थी। पहले वीरभद्र सिंह की तरफ से हर्ष महाजन का नाम आगे किया गया , वहीं संगठन स्तर पर इसका विरोध था। पार्टी ने विप्लव के अलावा पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष सुखविन्दर सिंह का नाम था। लेकिन कहीं कोई सहमति न बनती देख प्रदेश सी एम वीरभद्र सिंह की तरफ से शीला दीक्षित के लिये लाबिंग की जाने लगी। लेकिन वीरभद्र सिंह विरोधी खेमें ने बाकायदा इस मामले को सीधे राहुल गांधी तक पहुंचाया व उन्हें नफा नुक्सान बताया। दलील दी गई कि एन लोकसभा चुनावों के मौके पर पार्टी अगर किसी बाहरी प्रत्याशी को तरजीह देती है तो इसका विपरीत प्रभाव पड़ेगा व भाजपा को बैठे बिठाये मुद्दा मिल जायेगा। यही नहीं शीला दीक्षित के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप भी एक कारण बने। बताया जाता है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविन्दर सिंह के अलावा करीब अठारह विधायकों ने इस मामले पर अपना पक्ष बाकायदा हस्ताक्षर कर आलाकमान के समक्ष रखा था कि पार्टी हिमाचल से ही वह भी निचले हिमाचल से कोई प्रत्याशी तय करे। जिससे स्पष्ट हो गया कि वीरभद्र सिंह का प्रत्याशी चुनाव में खड़ा होता भी है तो उसकी जीत आसान हनीं होगी, व क्रास वोटिंग का खतरा था। यही वजह थी कि जब पार्टी ने टिकट तय करने के लिये निति बनाई तो उसमें गांधी परिवार के साथ विप्लव की नजदिकियां काम आ गईं। प्रदेश के सी एम वीरभद्र सिंह की धुर विरोधी विप्लव पहले भी राज्य सभा की सदस्या रह चुकी हैं। उससे पहले वह देहरा उपमंडल की जसवां सीट से विधायक का चुनाव जीत चुकी हैं। लेकिन डिलिमिटेशन के बाद उनका हल्का देहरा बन गया तो उन्होंने वहां भी पिछले चुनावों में अपनी पंसद के प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतारा था। भले ही वह चुनाव हार गया, लेकिन विप्लव का दखल यहां कम नहीं हुआ है। तमाम राजनैतिक घटनाक्रम से अब तय हो गया है कि आने वाले लोकसभा चुनावों में टिकट पार्टी ही तय करेगी। न कि सरकार। जाहिर है इस सबसे हमीरपुर संसदीय चुनाव क्षेत्र से पार्टी टिकट के तलबगार राजेन्दर राणा की दावेदारी पर असर पड़ेगा। व उनकी दावेदारी कमजोर होगी। वीरभद्र सिंह उनके लिये लाबिंग कर रहे हैं।
विप्लव ने फिर दिखाई अपनी ताकत वीरभद्र को झटका, लोकसभा चुनावों में टिकट भी अब संगठन के कहने पर मिलेंगे
विजयेन्दर शर्मा । कागें्रस नेत्री विप्लव ठाकुर राज्य सभा की टिकट हासिल कर एक बार फिर पार्टी आलाकमान में अपनी पैठ का एहसास कराया है। इस मामले पर घटे राजनैतिक घटनाक्रम में तय हो गया है कि पार्टी में जो कुछ भी होगा, वह संगठन ही तय करेगा न कि सरकार में बैठे लोग। सीधे तौर प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह व उनके समर्थकों को जोर का झटका धीरे से लगा है। व उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया है। दरअसल विप्लव के लिये राज्य सभा का टिकट पार्टी महासचिव राहुल गांधी के माध्यम से ही तय हुआ है। राहुल के दखल के बाद ही हिमाचल का यह टिकट तय हुआ है। हालांकि इससे पहले दिल्ली की पूर्व सी एम शीला दीक्षित का नाम आगे चल रहा था। लेकिन ऐन मौका पर विप्लव की लाटरी लग गई। पिछले दिनों से इस मामले पर जोर आजमाईश चल रही थी। पहले वीरभद्र सिंह की तरफ से हर्ष महाजन का नाम आगे किया गया , वहीं संगठन स्तर पर इसका विरोध था। पार्टी ने विप्लव के अलावा पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष सुखविन्दर सिंह का नाम था। लेकिन कहीं कोई सहमति न बनती देख प्रदेश सी एम वीरभद्र सिंह की तरफ से शीला दीक्षित के लिये लाबिंग की जाने लगी। लेकिन वीरभद्र सिंह विरोधी खेमें ने बाकायदा इस मामले को सीधे राहुल गांधी तक पहुंचाया व उन्हें नफा नुक्सान बताया। दलील दी गई कि एन लोकसभा चुनावों के मौके पर पार्टी अगर किसी बाहरी प्रत्याशी को तरजीह देती है तो इसका विपरीत प्रभाव पड़ेगा व भाजपा को बैठे बिठाये मुद्दा मिल जायेगा। यही नहीं शीला दीक्षित के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप भी एक कारण बने। बताया जाता है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविन्दर सिंह के अलावा करीब अठारह विधायकों ने इस मामले पर अपना पक्ष बाकायदा हस्ताक्षर कर आलाकमान के समक्ष रखा था कि पार्टी हिमाचल से ही वह भी निचले हिमाचल से कोई प्रत्याशी तय करे। जिससे स्पष्ट हो गया कि वीरभद्र सिंह का प्रत्याशी चुनाव में खड़ा होता भी है तो उसकी जीत आसान हनीं होगी, व क्रास वोटिंग का खतरा था। यही वजह थी कि जब पार्टी ने टिकट तय करने के लिये निति बनाई तो उसमें गांधी परिवार के साथ विप्लव की नजदिकियां काम आ गईं। प्रदेश के सी एम वीरभद्र सिंह की धुर विरोधी विप्लव पहले भी राज्य सभा की सदस्या रह चुकी हैं। उससे पहले वह देहरा उपमंडल की जसवां सीट से विधायक का चुनाव जीत चुकी हैं। लेकिन डिलिमिटेशन के बाद उनका हल्का देहरा बन गया तो उन्होंने वहां भी पिछले चुनावों में अपनी पंसद के प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतारा था। भले ही वह चुनाव हार गया, लेकिन विप्लव का दखल यहां कम नहीं हुआ है। तमाम राजनैतिक घटनाक्रम से अब तय हो गया है कि आने वाले लोकसभा चुनावों में टिकट पार्टी ही तय करेगी। न कि सरकार। जाहिर है इस सबसे हमीरपुर संसदीय चुनाव क्षेत्र से पार्टी टिकट के तलबगार राजेन्दर राणा की दावेदारी पर असर पड़ेगा। व उनकी दावेदारी कमजोर होगी। वीरभद्र सिंह उनके लिये लाबिंग कर रहे हैं।