किसी पुरुष द्वारा विवाहित महिला से यौन संबंध बनाना अनैतिक भले हो पर इसे अपराध नहीं माना जाएगा


सुप्रीम कोर्ट ने डेढ़ सौ साल से भी ज्यादा पुराने अडल्टरी लॉ को रद्द करके सार्थक कदम उठाया है। ब्रिटिश काल में बने कई कानून ऐसे हैं, जो आज भी चले आ रहे हैं पर उनका आज की तारीख में कोई औचित्य नहीं रह गया है। वक्त का तकाजा है कि उनसे जल्द से जल्द पीछा छुड़ा लिया जाए। पांच सदस्यों की संविधान पीठ ने बेवफाई को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया। मतलब यह कि किसी पुरुष द्वारा विवाहित महिला से यौन संबंध बनाना अनैतिक भले हो पर इसे अपराध नहीं माना जाएगा, अदालत में इस पर कोई मुकदमा नहीं दर्ज किया जा सकेगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को महिला अधिकारों के खिलाफ बताते हुए आईपीसी की धारा 497 को असंवैधानिक घोषित कर दिया। कोर्ट ने कहा कि पति अपनी पत्नी का मालिक नहीं है। उसने कहा कि नि:संदेह यह तलाक का आधार हो सकता है लेकिन यह कानून महिला की चाहत और उसकी सेक्सुअल चॉइस का असम्मान करता है और इस तरह उसके जीने के अधिकार पर असर डालता है।

पुरुष हमेशा फुसलाने वाला और महिला हमेशा पीड़िता हो, ऐसा अब नहीं रह गया है। यदि बेवफाई की वजह से एक जीवनसाथी खुदकुशी कर लेता है और यह बात अदालत में साबित हो जाए, तो आत्महत्या के लिए उकसाने का मुकदमा चलेगा। जाहिर है, इस फैसले के पीछे व्यक्तिगत स्वतंत्रता की भावना का सम्मान है। दो वयस्क व्यक्ति आपसी सहमति से कुछ भी करें तो कम से कम कानून की नजर में यह अपराध नहीं है।

हां, अगर इसमें जोर-जबर्दस्ती या किसी को सताने की बात शामिल हो तो इसमें दूसरी धाराओं के तहत केस चल सकता है। इसमें कोई दो मत नहीं कि सामाजिक विकास के साथ नैतिकता और स्त्री-पुरुष संबंध को लेकर समाज के विचार भी बदलते रहते हैं। चीन, जापान और ब्राजील जैसे देशों में भी इस तरह का कानून हाल-हाल तक था, लेकिन उन्होंने भी इससे पीछा छुड़ा लिया। ऐसे में हमारे लिए इसे ढोते रहने का कोई अर्थ नहीं था। पिछले कुछ समय से हमारा समाज भी स्त्री-पुरुष संबंध को लेकर काफी उदार हुआ है।

हमारे यहां व्यक्ति की स्वतंत्रता और स्त्री की गरिमा के लिए काफी जगह बनी है। अब यह सोच जोर पकड़ रही है कि किसी स्त्री को नैतिकता या परंपरा की दुहाई देकर अनचाहे संबंधों में जकड़े नहीं रखा जा सकता। वह विवाहित होने के बावजूद किसी और से प्रेम कर सकती है। अगर वह ऐसा करती है तो इसे आसमान टूट जाने की तरह नहीं देखा जाना चाहिए। इसकी कुछ भी वजह हो सकती है। संभव है, उसे अपने पति से अपेक्षित प्रेम न मिल पा रहा हो। ऐसे में पति उसकी सहमति से उससे अलग हो सकता है। लेकिन वह अपनी पत्नी के प्रेमी को बेवजह कानून के शिकंजे में नहीं फंसा सकता। दरअसल, अदालत का संदेश है कि संबंधों की जवाबदेही व्यक्तियों पर आए और समाज उनकी जटिलता को आत्मसात करे। इसे कानून का सिरदर्द न बनाया जाए।
BIJENDER SHARMA

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