स्थानीय निकाय संस्थाओं में मुहल्लों में स्ट्रीट लाइट वितरण व्यवस्था में खामियां सामने आई हैं।सूचना के अनुसार जिस कम्पनी ने इन स्ट्रीट लाइटों के रख-रखाव का ठेका ले रखा है,उसने इस काम को आगे ठेके पर किसी और कम्पनी को दे रखा है।यानी कम्पनी ने काम आगे सबलेट कर रखा है।जो कि नियमों के विरुद्ध है।
कम्पनी ठेका ले कर उसे आगे किसी दूसरी कम्पनी को नियमानुसार सबलेट नहीं कर सकती।अक्सर देखने में आ रहा है कि स्ट्रीट लाइटें 15-20 दिनों तक खराब पड़ी रहती हैं लेकिन कम्पनियां महीने के हिसाब से पूरे पैसे सरकार से बसूलती हैं।बिना प्रशासनिक संरक्षण के इस तरह का गोलमाल सम्भव नहीं है।सरकार ने मांग की कि अबतक स्थानीय निकायों में जिन कम्पनियों को यह कार्य दिया गया है उनका ब्यौरा और सबलेट पर काम कर रही कम्पनियों का ब्यौरा जनता के सामने रखा जाए।
यही नहीं अबतक प्रति माह इन कम्पनियों को रख रखाव के नाम पर कितना धन दिया जाता है इसका भी ब्यौरा सार्वजनिक किया जाए। जब हफ्ता-15/15 दिन स्ट्रीट लाइट नहीं होती है तो फिर इन कम्पनियों को प्रति माह का भुगतान क्यों किया जाता है।जितने दिन स्ट्रीट लाइट न आई हो,उतने दिनों का पैसा क्यों नहीं काटा जाता।
इस कार्य में किसी बड़े गोलमाल की आशंका पैदा हो रही है।सरकार पारदर्शिता का परिचय देते हुए प्रदेश में स्थित नगर परिषदों में किए जा रहे इन कार्यों का पूरा ब्यौरा जनता के सामने रखे। जिस तरह से इस कार्य को बर्तमान में किया जा रहा है उसमें भारी खामियां और सरकारी सम्पत्ति को चूना लगाने की संभावनाएं नज़र आ रही हैं।