चंबा का अन्तर्राष्ट्रीय मिंजर मेला
चंबा , 25 जुलाई (विजयेन्दर शर्मा)। सावन के दस्तक देते ही हिमाचल प्रदेश विशेषकर चम्बा और सीमावर्ती पंजाब और जम्मू-कश्मीर राज्यों के लोग चम्बा में हर वर्ष हर्षोल्लास से मनाए जाने वाले अन्तरराष्ट्रीय मिंजर मेले का बेसब्री से इंतजार करते हैं। चम्बा में प्राचीनकाल से ही मिंजर मेला उमंग और हर्षोल्लास से मनाया जाता है। शुरूआती दौर में इस परम्परागत मेले को मक्की की फसल के साथ जोड़ कर देखा जाता था क्योंकि चम्बा जनपद के लोग मक्की की बेहतर फसल के लिए पूजा अर्चना करते हैं।
परन्तु बदलते समय के साथ ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक रंग में सराबोर इस मेले को अन्तर्राष्ट्रीय दर्जा प्राप्त हुआ । इस मेले की उत्पत्ति को लेकर कई लोक मान्यताएं प्रचलित हैं। बहुत से लोगों का मनाना है कि यह त्योहार वरूण देवता के सम्मान में मनाया जाता है। एक मान्यता के अनुसार 10वीं शताब्दी में रावी नदी चम्बा नगर में बहती थी तथा उसके दाएं छोर पर चम्पावती मंदिर एवं बाएं छोर पर हरिराय मंदिर स्थित था। उसी समय चम्पावती मंदिर में एक संत रहे जो हर सुबह नदी पार कर हरिराय मंदिर में पूजा अर्चना किया करते थे।
चम्बा के राजा और नगर वासियों ने संत से हरिराय मंदिर के दर्शनार्थ कोई उपाय तलाशने का निवेदन किया। तब संत ने राजा और प्रजा को चम्पावती मंदिर में एकत्रित होने के लिए कहा तथा बनारस के ब्राह्मणों की सहायता से एक यज्ञ का आयोजन किया जो सात दिन तक चला। ब्राह्मणों ने सात विभिन्न रंगों की एक रस्सी बनाई, जिससे मिंजर का नाम दिया गया, जब यज्ञ सम्पूर्ण हुआ तो रावी नदी ने अपना पथ बदल लिया और हरिराय मंदिर के दर्शन संभव हुए। एक अन्य मान्यता के अनुसार जब चम्बा के राजा साहिल बर्मन ने कंागड़ा के राजा को पराजित किया तो उनका नलोहरा पुल पर लोगों द्वारा मक्की की मिंजर के साथ भव्य स्वागत किया गया और तदोपरांत मिंजर मेले का उद्भव हुआ।
मिंजर मेला जुलाई माह के अंतिम रविवार से शुरू होकर एक सप्ताह तक चम्बा के ऐतिहासिक एवं हरे-भरे चौगान मैदान में पारम्परिक ढंग से मनाया जाता है। इस दौरान लक्ष्मी नारायण मंदिर में पूजा-अर्चना की जाती है एवं कुंजरी-मल्हार गाए जाते हैं। स्थानीय लोगों के लिए मिंजर अच्छी फसल की कामना का प्रतीक है। इस अवसर पर दोस्तों एवं रिश्तेदारों में आपस में मिंजर भेंट किए जाते हैं।
मिंजर विसर्जन इस त्योहार की अति महत्वपूर्ण रस्म है, जिससे पहले रघुनाथ मंदिर जो कि चम्बा के राजा के अखण्ड चण्डी महल में स्थित है, से एक भव्य शोभा यात्रा निकाली जाती है। रघुवीर एवं अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियों की सुसज्जित पालकियों को पारम्परिक रीति-रिवाज के साथ महल से विसर्जन स्थल तक लाया जाता है, जिसमें पारम्परिक वेशभूषा में हजारों की संख्या में श्रद्धालु एवं लोग शामिल होते हैं। उत्सव के मुख्य अतिथि सुसज्जित मंच से मंत्रोच्चारण के बीच मिंजर, एक रुपया, नारियल, दूब और फूल को नदी में प्रवाह कर इन्हें वर्षा देवता को अर्पित करते हैं। इस समारोह के साथ मिंजर मेला समाप्त हो जाता है तथा देवी-देवताओं की प्रतिमाएं एवं शाही ध्वज को वापस अखण्ड चण्डी महल में लाया जाता है।
प्रदेश तथा अन्य राज्यों से बड़ी संख्या में आए कलाकारों द्वारा प्रस्तुत सांस्कृतिक कार्यक्रम तथा खेल प्रतियोगिताएं इस उत्सव के मुख्य आकर्षण होते हैं। इस अवसर पर प्रदेश सरकार के विभिन्न विभागों, बोर्डों तथा निगमों द्वारा विकासात्मक प्रदर्शनियां भी लगाई जाती है, जिसके माध्यम से प्रदेश सरकार की विविध विकासात्मक गतिविधियों की जानकारी दी जाती है। सप्ताह भर चलने वाले इस अन्तर्राष्ट्रीय मेले में प्रदेश तथा बाहरी राज्यों से रंग-बिरंगी परिधानों में सुसज्जित बड़ी संख्या में श्रद्धालु एवं लोग मेले की शोभा को और भी चार चांद लगाते हैं।
कोविड की वर्तमान स्थिति को देखते हुए मिंजर मेले की पारंपरिक रस्मों का कोविड प्रोटोकॉल के तहत संकेतिक रूप से ही निर्वहन किया जा रहा है ।
चंबा , 25 जुलाई (विजयेन्दर शर्मा)। सावन के दस्तक देते ही हिमाचल प्रदेश विशेषकर चम्बा और सीमावर्ती पंजाब और जम्मू-कश्मीर राज्यों के लोग चम्बा में हर वर्ष हर्षोल्लास से मनाए जाने वाले अन्तरराष्ट्रीय मिंजर मेले का बेसब्री से इंतजार करते हैं। चम्बा में प्राचीनकाल से ही मिंजर मेला उमंग और हर्षोल्लास से मनाया जाता है। शुरूआती दौर में इस परम्परागत मेले को मक्की की फसल के साथ जोड़ कर देखा जाता था क्योंकि चम्बा जनपद के लोग मक्की की बेहतर फसल के लिए पूजा अर्चना करते हैं।
परन्तु बदलते समय के साथ ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक रंग में सराबोर इस मेले को अन्तर्राष्ट्रीय दर्जा प्राप्त हुआ । इस मेले की उत्पत्ति को लेकर कई लोक मान्यताएं प्रचलित हैं। बहुत से लोगों का मनाना है कि यह त्योहार वरूण देवता के सम्मान में मनाया जाता है। एक मान्यता के अनुसार 10वीं शताब्दी में रावी नदी चम्बा नगर में बहती थी तथा उसके दाएं छोर पर चम्पावती मंदिर एवं बाएं छोर पर हरिराय मंदिर स्थित था। उसी समय चम्पावती मंदिर में एक संत रहे जो हर सुबह नदी पार कर हरिराय मंदिर में पूजा अर्चना किया करते थे।
चम्बा के राजा और नगर वासियों ने संत से हरिराय मंदिर के दर्शनार्थ कोई उपाय तलाशने का निवेदन किया। तब संत ने राजा और प्रजा को चम्पावती मंदिर में एकत्रित होने के लिए कहा तथा बनारस के ब्राह्मणों की सहायता से एक यज्ञ का आयोजन किया जो सात दिन तक चला। ब्राह्मणों ने सात विभिन्न रंगों की एक रस्सी बनाई, जिससे मिंजर का नाम दिया गया, जब यज्ञ सम्पूर्ण हुआ तो रावी नदी ने अपना पथ बदल लिया और हरिराय मंदिर के दर्शन संभव हुए। एक अन्य मान्यता के अनुसार जब चम्बा के राजा साहिल बर्मन ने कंागड़ा के राजा को पराजित किया तो उनका नलोहरा पुल पर लोगों द्वारा मक्की की मिंजर के साथ भव्य स्वागत किया गया और तदोपरांत मिंजर मेले का उद्भव हुआ।
मिंजर मेला जुलाई माह के अंतिम रविवार से शुरू होकर एक सप्ताह तक चम्बा के ऐतिहासिक एवं हरे-भरे चौगान मैदान में पारम्परिक ढंग से मनाया जाता है। इस दौरान लक्ष्मी नारायण मंदिर में पूजा-अर्चना की जाती है एवं कुंजरी-मल्हार गाए जाते हैं। स्थानीय लोगों के लिए मिंजर अच्छी फसल की कामना का प्रतीक है। इस अवसर पर दोस्तों एवं रिश्तेदारों में आपस में मिंजर भेंट किए जाते हैं।
मिंजर विसर्जन इस त्योहार की अति महत्वपूर्ण रस्म है, जिससे पहले रघुनाथ मंदिर जो कि चम्बा के राजा के अखण्ड चण्डी महल में स्थित है, से एक भव्य शोभा यात्रा निकाली जाती है। रघुवीर एवं अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियों की सुसज्जित पालकियों को पारम्परिक रीति-रिवाज के साथ महल से विसर्जन स्थल तक लाया जाता है, जिसमें पारम्परिक वेशभूषा में हजारों की संख्या में श्रद्धालु एवं लोग शामिल होते हैं। उत्सव के मुख्य अतिथि सुसज्जित मंच से मंत्रोच्चारण के बीच मिंजर, एक रुपया, नारियल, दूब और फूल को नदी में प्रवाह कर इन्हें वर्षा देवता को अर्पित करते हैं। इस समारोह के साथ मिंजर मेला समाप्त हो जाता है तथा देवी-देवताओं की प्रतिमाएं एवं शाही ध्वज को वापस अखण्ड चण्डी महल में लाया जाता है।
प्रदेश तथा अन्य राज्यों से बड़ी संख्या में आए कलाकारों द्वारा प्रस्तुत सांस्कृतिक कार्यक्रम तथा खेल प्रतियोगिताएं इस उत्सव के मुख्य आकर्षण होते हैं। इस अवसर पर प्रदेश सरकार के विभिन्न विभागों, बोर्डों तथा निगमों द्वारा विकासात्मक प्रदर्शनियां भी लगाई जाती है, जिसके माध्यम से प्रदेश सरकार की विविध विकासात्मक गतिविधियों की जानकारी दी जाती है। सप्ताह भर चलने वाले इस अन्तर्राष्ट्रीय मेले में प्रदेश तथा बाहरी राज्यों से रंग-बिरंगी परिधानों में सुसज्जित बड़ी संख्या में श्रद्धालु एवं लोग मेले की शोभा को और भी चार चांद लगाते हैं।
कोविड की वर्तमान स्थिति को देखते हुए मिंजर मेले की पारंपरिक रस्मों का कोविड प्रोटोकॉल के तहत संकेतिक रूप से ही निर्वहन किया जा रहा है ।