शिमला, 17 जुलाई ( सिद्धार्थ शर्मा) । द एनर्जी एण्ड रिसोरसिज इंस्टीच्यूट (टेरी) के महा निदेशक डा. आर.के. पचौरी ने कहा कि भारतीय आर्थिकी को विकास की समावेशी हरित वृद्धि की दिशा में आगे बढ़ाने के लिए विकल्पों के आकलन के लिए एक अध्ययन किया जाएगा।
डा. पचौरी आज यहां ग्लोबल ग्रीन ग्रोथ इंस्टीच्यूट (जीजीजीआई) तथा टेरी द्वारा हिमाचल प्रदेश पर्यावरण विज्ञान एवं तकनीक विभाग के सहयोग से हिमाचल में हरित वृद्धि एवं विकास विषय पर आयोजित कार्यशाला को सम्बोधित कर रहे थे।
डॉ. पचौरी ने कहा कि इस परियोजना के तहत प्रस्तावित गतिविधियां भारतीय संविधान की संघीय प्रकृति के अनुरूप कार्यान्वित की जाएंगी। हमारे देश में वृहद आर्थिक निर्देश एवं नीतियां राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुरूप तय की जाती हैं। उन्होंने कहा कि इस प्रयास के तहत हिमाचल तथा पंजाब राज्यों को केंद्र में रखकर राष्ट्रीय स्तर पर अपनाई जा रही नीतियों को परखा जाएगा।
उन्होंने कहा कि गणना योग्य सामान्य संतुलन-बाजार आवंटन फ्रेमवर्क (सीजीई-एमएकेएएल) के माध्यम से राष्ट्रीय नीतियां संस्तुत की जाएंगी। इस अध्ययन के तहत राज्य स्तर पर जल, फसल चक्र एवं भूमि उपयोग तथा वानिकी जैसे विषयों के साथ-साथ पर्यावरण बदलाव तकनीक आर्थिकी एवं प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में विकल्पों की जांच की जाएगी। हरित वृद्धि नीतियों के लिए राज्य स्तर की नीतियों को समझने के लिए केस स्ट्डी विकसित की जाएगी। अध्ययन में विश्लेषणात्मक क्रियाओं के साथ-साथ हितधारकों के साथ विचार-विमर्श भी किया जाएगा।
डॉ. पचौरी ने कहा कि अध्ययन के तहत पर्यावरण एवं विकास को एक धरातल पर रखने की संभावनाएं तलाशी जाएंगी। भारत के पास समूचे विश्व की 2.4 प्रतिशत भूमि है, जबकि विश्व की कुल जनसंख्या का 16 प्रतिशत भारत में है। उन्होंने कहा कि लगभग एक दशक तक भारत की आर्थिक वृद्धि दर 7 प्रतिशत से अधिक रही है। इस दर की हमें कीमत भी चुकानी पड़ी है। हालांकि इस वृद्धि दर से हमें अनेक लाभ प्राप्त हुए हैं किन्तु इसकी हानि हमारे पर्यावरण को उठानी पड़ी है। इस कारण वायु तथा जल प्रदूषण जैसे मुद्दों से हमें जुझना पड़ रहा है।
डॉ. पचौरी ने कहा कि विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार पर्यावरण क्षरण से भारत को प्रतिवर्ष 80 बिलियन अमरीकी डालर की क्षति हो रही है, जोकि हमारे सकल घरेलू उत्पाद का 5.7 प्रतिशत है। कई दशकों तक प्राकृतिक संसाधनों के अवैज्ञानिक दोहन के कारण रेगिस्तान में वृद्धि हुई है और समूचे उपद्वीप में जलस्रोतों में प्रदूषण हुआ है। इससे उन लाखों लोगों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है जो प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर है।
उन्होंने कहा कि यह स्वागत योग्य है कि हिमाचल में हरित औद्योगिक विकास को बढ़ावा दिया जा रहा है क्योंकि इस पहाड़ी राज्य में मौसम में बदलाव के प्रकिूल प्रभाव हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश में बहुतायत में वन हैं। गत वर्ष उत्तराखण्ड में हुई आपदाओं की संख्या में आने वाले समय में वृद्धि होगीं उन्होंने ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने पर बल देते हुए कहा कि हिमाचल में सौर तथा जल ऊर्जा जैसे विकल्पों का दोहन किया जाना चाहिए।