हर्बल खेती के नाम पर किसान गुमराह न हों-सब्सिडी के सपने दिखा कर लूटा जा रहा किसानों को-दीपक शर्मा
धर्मशाला, 16 जुलाई (विजयेन्दर शर्मा) । प्रदेश में हर्बल खेती के नाम पर सब्सिडी माफिया हावी है।किसानों को एलोवेरा,स्टीविस,तुलसी आदि की खेती के लिए बड़े बड़े सपने दिखाए जा रहे हैं और सब्सिडी के नाम पर महंगे दामों पर पौधे बेचने का सिलसिला चल रहा है।हमारी किसानों को सलाह है कि बिना सोचे समझे धन खर्च न करें।सब्सिडी के प्रलोभन में न आएं।यह विचार प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता दीपक शर्मा ने आज व्यक्त किए।दीपक शर्मा जो कि खुद पिछले 20 सालों से प्रगतिशील किसान के रूप में खेती कर रहे हैं,ने बताया कि सरकार मात्र किसानों को सब्जबाग दिखा रही है।धरातल पर किसान को आमदन के नाम पर सिर्फ घाटा ही मिलता है।उन्होंने कहा कि एलोवेरा,तुलसी आदि की खेती भी किसान के लिए घाटे का ही सौदा है।इन पौधों पर सब्सिडी के नाम पर महंगे दामों में पौधे दिए जाते हैं।लेकिन जब इसकी बिक्री की बात आती है तो लागत से आधी कीमत ही मिल पाती है।उन्होंने कहा कि अगर हम एलोवेरा की ही बात करें तो पांच रुपए में मिलने वाला पौधा पच्चीस रुपए में दिया जा रहा है।इस पौधे में पांच किलो एलोबेरा पैदा होने में तीन साल लग जाते हैं लेकिन बाज़ार में पहले तो इसकी खरीदारी ही नहीं है और अगर है भी तो छः-सात रुपए किलो के हिसाब से बिक्री है।यानी तीन साल बाद मेहनत करने के बावजूद 30-35 रुपए ही प्राप्त होते हैं।यह सब गोरखधंधा मात्र सब्सिडी के धन को लूटने के लिए और किसानों को लूटने के लिए किया जा रहा है।जबकि इसको खरीदने वाली कम्पनियां इसका जूस 200 से 600 रुपए प्रति लीटर बेचती हैं।उन्होंने कहा कि जिस तरह आलू की खेती से किसान को औने पौने दाम मिलते हैं और चिप्स महंगे दामों पर बिकता है यही हाल हर्बल खेती का है।उन्होंने कहा कि आजकल सब्सिडी के चक्कर में बहुत से व्यापारी किसानों को सपने बेच रहे हैं।सरकार की नीति व्यवहारिक नहीं है।दीपक शर्मा ने कहा कि जबतक उत्पाद को बाज़ार में बेचने की व्यवस्था सरकार नहीं करती है और बिक्री हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित नहीं करती है तबतक हर्बल खेती के नाम पर खर्च किए जा रहे धन की बर्बादी ही साबित होगी।उन्होंने कहा कि आवश्यकता इस बात की है कि किसानों को धरातल पर व्यवहारिक खेती करने और बेचने की व्यवस्था सरकार सुनिश्चित बनाए।किसान की लागत का मूल्यांकन करके उसके उत्पाद की बिक्री का मूल्य निर्धारित करे।दीपक शर्मा ने कहा कि आजकल बरसात के दिनों में अनाधिकृत रूप से फलदार पौधों,हर्बल पौधों को बेचने का धंधा जोरों पर है।यह बन्द होना चाहिए इससे किसान के साथ धोखा होता है।सरकार अधिकृत एजेंसियों के माध्यम से ही किसानों को बीज या पौधे दे और साथ कि इन उत्पादों के बिक्री मूल्य भी निर्धारित करे।जिससे कि फसल पैदा होने पर किसान न्यूनतम निर्धारित मूल्य पर अपना उत्पाद बेच सके।दीपक शर्मा ने किसानों से आह्वान किया कि वह किसी भी प्रलोभन में आने से बचें और लागत-बिक्री आदि का मूक्यांकन करके ही कोई भी उत्पाद खरीदें।
धर्मशाला, 16 जुलाई (विजयेन्दर शर्मा) । प्रदेश में हर्बल खेती के नाम पर सब्सिडी माफिया हावी है।किसानों को एलोवेरा,स्टीविस,तुलसी आदि की खेती के लिए बड़े बड़े सपने दिखाए जा रहे हैं और सब्सिडी के नाम पर महंगे दामों पर पौधे बेचने का सिलसिला चल रहा है।हमारी किसानों को सलाह है कि बिना सोचे समझे धन खर्च न करें।सब्सिडी के प्रलोभन में न आएं।यह विचार प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता दीपक शर्मा ने आज व्यक्त किए।दीपक शर्मा जो कि खुद पिछले 20 सालों से प्रगतिशील किसान के रूप में खेती कर रहे हैं,ने बताया कि सरकार मात्र किसानों को सब्जबाग दिखा रही है।धरातल पर किसान को आमदन के नाम पर सिर्फ घाटा ही मिलता है।उन्होंने कहा कि एलोवेरा,तुलसी आदि की खेती भी किसान के लिए घाटे का ही सौदा है।इन पौधों पर सब्सिडी के नाम पर महंगे दामों में पौधे दिए जाते हैं।लेकिन जब इसकी बिक्री की बात आती है तो लागत से आधी कीमत ही मिल पाती है।उन्होंने कहा कि अगर हम एलोवेरा की ही बात करें तो पांच रुपए में मिलने वाला पौधा पच्चीस रुपए में दिया जा रहा है।इस पौधे में पांच किलो एलोबेरा पैदा होने में तीन साल लग जाते हैं लेकिन बाज़ार में पहले तो इसकी खरीदारी ही नहीं है और अगर है भी तो छः-सात रुपए किलो के हिसाब से बिक्री है।यानी तीन साल बाद मेहनत करने के बावजूद 30-35 रुपए ही प्राप्त होते हैं।यह सब गोरखधंधा मात्र सब्सिडी के धन को लूटने के लिए और किसानों को लूटने के लिए किया जा रहा है।जबकि इसको खरीदने वाली कम्पनियां इसका जूस 200 से 600 रुपए प्रति लीटर बेचती हैं।उन्होंने कहा कि जिस तरह आलू की खेती से किसान को औने पौने दाम मिलते हैं और चिप्स महंगे दामों पर बिकता है यही हाल हर्बल खेती का है।उन्होंने कहा कि आजकल सब्सिडी के चक्कर में बहुत से व्यापारी किसानों को सपने बेच रहे हैं।सरकार की नीति व्यवहारिक नहीं है।दीपक शर्मा ने कहा कि जबतक उत्पाद को बाज़ार में बेचने की व्यवस्था सरकार नहीं करती है और बिक्री हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित नहीं करती है तबतक हर्बल खेती के नाम पर खर्च किए जा रहे धन की बर्बादी ही साबित होगी।उन्होंने कहा कि आवश्यकता इस बात की है कि किसानों को धरातल पर व्यवहारिक खेती करने और बेचने की व्यवस्था सरकार सुनिश्चित बनाए।किसान की लागत का मूल्यांकन करके उसके उत्पाद की बिक्री का मूल्य निर्धारित करे।दीपक शर्मा ने कहा कि आजकल बरसात के दिनों में अनाधिकृत रूप से फलदार पौधों,हर्बल पौधों को बेचने का धंधा जोरों पर है।यह बन्द होना चाहिए इससे किसान के साथ धोखा होता है।सरकार अधिकृत एजेंसियों के माध्यम से ही किसानों को बीज या पौधे दे और साथ कि इन उत्पादों के बिक्री मूल्य भी निर्धारित करे।जिससे कि फसल पैदा होने पर किसान न्यूनतम निर्धारित मूल्य पर अपना उत्पाद बेच सके।दीपक शर्मा ने किसानों से आह्वान किया कि वह किसी भी प्रलोभन में आने से बचें और लागत-बिक्री आदि का मूक्यांकन करके ही कोई भी उत्पाद खरीदें।
Bijender Sharma*, Press Correspondent Bohan Dehra Road JAWALAMUKHI-176031, Kangra HP(INDIA)*
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