कालीनाथ कालेश्वर महादेव मंदिर सरकारी उदासीनता एवं प्रशासनिक लापरवाही के चलते बदहाल


कालीनाथ कालेश्वर महादेव मंदिर सरकारी उदासीनता एवं प्रशासनिक लापरवाही के चलते बदहाल
ज्वालामुखी    , 20  जुलाई ( विजयेन्दर शर्मा ) । करीब 450 साल पुराना ऐतिहासिक व पुरातात्विक महत्व का कालीनाथ कालेश्वर महादेव मंदिर इन दिनों सरकारी उदासीनता एवं प्रशासनिक लापरवाही के चलते बदहाल है। देशभर से श्रद्धालु यहां दर्शनों को आते हैं। मंदिर भले ही प्रदेश सरकार के नियंत्रण में है। लेकिन चढावे की आमदनी का कही कोई हिसाब किताब नहीं रखा जा रहा है।
जिला कांगड़ा के देहरा परागपुर व ज्वालामुखी के बीच ब्यास नदी के किनारे इस मंदिर में भगवान भोलेनाथ विराजमान हैं। ऐसी मान्यता है कि पांडवों ने भी यहां तपस्या की थी। इसी वजह से यह मंदिर देश दुनिया के श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है।   हिमाचल हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका की सुनवाई में चार अक्तूबर 2018 के निर्णय के बाद यहां शिवलिंग पर जल चढ़ाने पर रोक लगी। और राज्य सरकार ने हिमाचल हाईकोर्ट के आदेशों के तहत मंदिर की मल्कियती 120 कनाल भूमि को अपने कब्जे में लिया। लेकिन करीब चार साल बाद भी राज्य सरकार इस मंदिर की दशा व दिशा सुधारने में नाकाम रही है। हाईकोर्ट के आदेशों के बावजूद अभी तक यहां मंदिर अधिकारी तैनात नहीं हो पाया है। इस समय तहसीलदार रक्कड के पास मंदिर के रखरखाव का जिम्मा है। हालांकि अदालत के आदेशों के तहत यहां दो पुजारी, दो वाचमैन और दो सफाई कर्मचारी तैनात किये जाने थे। जिनमें मंदिर की सफाई के लिये एक पार्ट टाईम कर्मी की भी तैनाती होनी थी।
हैरानी का विषय है कि साथ लगते एक साधुओं के मठ के साधुओं ने यहां अपना कब्जा जमा लिया है। व यहां आने चढावे पर इनकी नजर रहती है। स्थानीय समाज सेवी जगवीर सिंह जग्गी, केवल कृष्ण और हेमंत राणा ने बताया कि मंदिर की करोडों की संपत्ति पर माफिया की नजर है।  राजस्व विभाग की मिलिभगत के साथ कुछ लोगों ने मंदिर की बेशकीमती  जमीन  अपने नाम कर ली है। यह जमीन कैसे दूसरे को हस्तांतरित हो गई।  इसका जवाब कोई नहीं देना चाहता। हालांकि मंदिर की जमीन किसी को भी न तो बेची जा सकती है। न ही पट्टे पर दी जा सकती है।
इस बीच , मंदिर के पौराणिक महत्व को देखते हुये भारतीय पुरातत्व विभाग इसे अपने आधीन लेने जा रहा है। देश भर में 19 मंदिरों का अधिग्रहण हो रहा है। उनमें कालेशवर भी प्रमुख है।  केन्द्र सरकार के इस ताजा निर्णय की लोग सराहना कर रहे हैं। इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज  इन्टेक के हिमाचल चैप्टर की अध्यक्षा मालविका पठानिया ने बताया कि कालेशवर महा रूद्र मंदिर के रूप् में प्रसिद्ध है। यह मंदिर 450 साल पुराना है। और यहां शिलिंग के रूप में विराजमान भगवान भोले नाथ शिवलिंग पाताल में धंसता जा रहा है।  उन्होंने कहा कि यह प्रसन्नता का विषय है कि सदियों पुराने इस मंदिर के संरक्षण के लिये केन्द्र सरकार आगे आई है।
इस बीच, कांगडा के जिलाधीश निपुण जिंदल ने कहा कि मंदिर के महत्व को देखते हुये जिला प्रशासन पहले ही सजग है। मंदिर की जमीनों के कब्जे भी छुडाये जा रहे हैं।
 प्रसिद्ध उज्जैन के महाकाल मंदिर के समान हिमाचल प्रदेश के  देहरा सब डिविजन के कालेश्वर में कालीनाथ कालेश्वर  महादेव मंदिर में भगवान शिव विराजमान हैं। उज्जैन में जहां शिप्रा नदी है,तो यहां मंदिर के साथ ब्यास नदी बह रही है।
उज्जैन के महाकाल मंदिर के बाद हिमाचल प्रदेश में कालेश्वर मंदिर एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसके गर्भगृह में ज्योतिर्लिंग स्थापित है। यहां भगवान शिव एक अद्भुत लिंग रूप में विराजमान हैं यहां शिवलिंग जलहरी से नीचे स्थित हैं। ऐसी मान्यता है कि धरती से पाताल  लोक में उस दिन यह शिवलिंग पूरी तरह समा जाएगा जिस दिन दुनिया में पापी अपनी हदों से गुजर जाएंगे। इसी मंदिर में पाताल जाने का एक गुप्त रास्ता भी है। जहां से पाताल होकर कैलाश पर्वत पहुंच कर ऋषि मुनि शिव तपस्या करने जाते थे।

BIJENDER SHARMA

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