नये साल के आगाज का संदेश देते ढोलरू गायक

नये साल के आगाज का संदेश देते ढोलरू गायक
  धर्मशाला, 17 मार्च विजयेन्दर शर्मा  ।  हिमाचल में चैत्र माह शुरू होते ही ढोलरू वाले घर-घर घूम कर लोकगीत सुनाते है।  इन दिनों ढोलरू गायन करने वाले घर घर जाकर नये साल के आगाज का संदेश दे रहे हैं। जिससे  घर घर में  मंगलमुखी गायकों के इस गायन की गूंज सुनाई दे रही है।  हिंदू पंचांग में फाल्गुन और चैत्र को वसंत ऋतु के महीने माना जाता है। फाल्गुन पुराने साल का आखिरी और चैत्र नए साल का पहला महीना होता है। इस दौरान ही प्रकृति के प्रति कृतज्ञता दर्शाते हुए ढोलरू गाया जाता है। चैत्र मास के साथ ही प्रदेश में ढोलरू का गायन किया जाता है।
एक खास समुदाय के  लोग पीढ़ी दर पीढ़ी यह परंपरा निभाते चले आ रहे हैं।  अपने गायन से  यह घार घर जाकर अपना संदेश देते हैं। बदले में इन्हें अनाज व कुछ रुपये देते हैं।   दरअसल चैत्र मास में गाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। ढोलरू गायकों के मंगल गायन के साथ नव संवत्सर का प्रारंभ होता है।  पहाड़ी जीवन शैली में चैत्र माह का नाम अपनी जुबान पर नहीं लाया जाता। यह लोग नाम सुनायेंगे, उसके बाद ही नाम लिया जा सकता है। त्योहारों उत्सवों पर गायन वादन, कोई शोर शराबा नहीं, सादगी और थोड़े संकोच के साथ, ढोलरू गायन की कला समाज के उस तबके ने साधी थी जिसके पास किसी तरह की सत्ता नहीं थी, वह द्वार द्वार जाकर आगत का स्वागत करता है।  भविष्य का स्वागत गान । ढोलरू गाने वाला कितने संकोच के साथ हमारे लिए भविष्य का गायन कर रहा होता है।  ढोलरू के प्रचलित बोल भी विनम्रता और कृतज्ञता से भरे हैं।  दुनिया बनाने वाले का नाम पहले लो.. दुनिया दिखाने वाले माता पिता का नाम पहले लो.. दीन दुनिया का ज्ञान देने वाले गुरु का नाम पहले लो.. उसके बाद बाकी नाम लो. नए वर्ष के महीनों की बही तो उसके बाद खुलेगी।  
BIJENDER SHARMA

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