विवाह के नाम से मान्यता दे कर विवाह की संस्था को बदनाम करने की क्या आवष्यकता -शांता कुमार

विवाह के नाम से मान्यता दे कर विवाह की संस्था को बदनाम करने की क्या आवष्यकता -शांता कुमार
पालमपुर  (विजयेन्दर शर्मा ) ।  हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री शांता कुमार ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय में समलैंगिक विवाह के सम्बन्ध में चल रही बहस एक रोचक और अत्यन्त चिन्ताजनक मोड़ पर पहुंच गई है।  यदि सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिक विवाह को मान्यता दे दी तो लाखों वर्षो से बने हुए भारत के धार्मिक और आध्यात्मिक चितन को बहुत बड़ा धक्का लगेगा।
उन्होंने कहा मुख्य न्यायधीश श्री चन्द्रचूड जी ने एक टिप्पणी करते हुए कहा कि पुरुष और नारी का सम्बंध केवल शारीरिक ही नही है। सम्बन्धों में परस्पर भावनात्मक प्रेम भी हो सकता है। एक पुरुष दूसरे पुरुष से केवल शरीर ही नही भावनाओं से भी जुड़ सकता है।  केन्द्र सरकार की ओर से समलैंगिक विवाह के विरूद्ध दलीलें की जा रही है। मुख्य न्यायाधीश की इस टिप्पणी पर केन्द्र सरकार की ओर से तर्क दिया जाना चाहिए कि यदि पुरुष का पुरुष से और महिला का महिला से भावनात्मक सम्बंध है तो वे जीवन भर इक्ठठा रहे।  एक जन्म नहीं कई जन्म इकट्ठा रहे। परन्तु विवाह के नाम से मान्यता दे कर विवाह की संस्था को बदनाम करने की क्या आवष्यकता है। लाखों सालों से पूरी दुनिया में विवाह का मतलब एक पुरूष और नारी का परस्पर रह कर सन्तान उत्पन्न करना हैं  सदियों से चली आ रही पूरी दुनिया की विवाह की संस्था जिसे भारत में एक धार्मिक रूप दिया गया था को अब बर्वाद करने की आवष्यकता नही है।
उन्होंने कहा कि भौतिकवाद व नये के नशे में मस्त जो समलैंगिक खुले आम जलूस निकालते हैं उन्हें विवाह को कानूनी मान्यता मिलने पर एक पुरुष द्वारा दूसरे पुरुष से विवाह के लिये बारात ले जाने से कौन रोकेगा। तब क्या बेहुदा नजारा बनेगा।
शांता कुमार ने कहा मुझे हैरानी है कि देश के सभी बुद्धिजीवी इस प्रशन पर गम्भीरता से अपने विचार व्यक्त नही कर रहे। बहुत से विद्वानों की ओर से इस प्रशन पर सर्वोच्च न्यायालय तक अपनी बात पहुंचानी चाहिए।


BIJENDER SHARMA

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