शिमला--- प्रदेश में हो रहे पंचायत व स्थानीय निकायों के चुनाव में सरकारी भूमि पर कब्जा जमाने वालों के परिजन भी मैदान में नहीं उतर पाएंगे। इसमें अवैध कब्जाधारी के अन्य सदस्यों के अलावा उसकी अविवाहित बेटी और दत्ताक पुत्र-पुत्री भी शामिल हैं। प्रदेश में सरकारी भूमि पर अतिक्रमण करने वालों की तादाद यूं तो दो लाख से भी ज्यादा है, लेकिन लिखित तौर पर सरकार के पास जो इकरारनामे आए हैं उनकी संख्या एक लाख 67 हजार 339 है। यह वही इकरारनामे हैं जो भाजपा सरकार के ही पूर्व कार्यकाल में उस दौरान राजस्व विभाग के पास आए, जब सरकार ने सरकारी भूमि पर अवैध कब्जों को नियमित करने की बात कही। प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से लोगों ने इस प्रलोभन में, कि उनके यह कब्जे नियमित हो जाएंगे, लिखित इकरारनामे के तौर पर संबधित पटवार सर्कल के माध्यम से उपायुक्तों को भिजवा दिए।
विडंबना यह कि एक दशक से भी ज्यादा का समय गुजरने के बाद आज तक न तो यह कब्जे नियमित ही हो पाए हैं और न ही किसी सरकार ने अवैध कब्जाधारकों के खिलाफ कोई कार्रवाई अमल में लाई है। यही नहीं अतिक्रमण के खिलाफ उच्च उच्च न्यायालय के निर्देशों के बावजूद प्रदेश में अवैध कब्जों का आंकड़ा लगातार बढ़ता ही जा रहा है। अतिक्रमण करने वालों में अधिकांश प्रभावशाली वर्ग ही शामिल है। सूत्रों ने बताया कि सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा करने वाला कोई भी परिवार प्रदेश में पंचायती राज संस्थाओं, शहरी स्थानीय निकायों, विधानसभा व लोकसभा चुनाव लड़ने योग्य नहीं है। इस प्रकार यदि अवैध कब्जों को लेकर प्रदेश में सख्ती बरती जाती है तो कोई भी अतिक्रमणधारक पंचायत व निकाय के चुनाव नहीं लड़ पाएगा। राज्य चुनाव आयोग के अधिकारिक सूत्रों का कहना है कि सरकारी भूमि पर अतिक्रमण करने वाला कोई भी व्यक्ति व उसके परिवार का सदस्य उक्त चुनाव में अपना नामांकन पत्र दाखिल करता है तो वह रद माना जाएगा। और यदि वह चुनाव लड़ता भी है तो बाद में उसका चुनाव भी अवैध हो सकता है।
उधर गैर-सरकारी सूत्रों की मानें तो प्रदेश में सरकारी व निजी भूमि पर अतिक्रमण करने वालों का आंकड़ा इससे भी कहीं ज्यादा है। गौर रहे कि सरकार ने हाल ही में लोक निर्माण एवं राजस्व मंत्री ठाकुर गुलाब सिंह की अगुवाई में मंत्रिमंडलीय उपसमिति का भी गठन किया है, जो अतिक्रमण के मामलों को नियमित करने को लेकर अध्ययन कर रिपोर्ट सरकार को सौंपे
विडंबना यह कि एक दशक से भी ज्यादा का समय गुजरने के बाद आज तक न तो यह कब्जे नियमित ही हो पाए हैं और न ही किसी सरकार ने अवैध कब्जाधारकों के खिलाफ कोई कार्रवाई अमल में लाई है। यही नहीं अतिक्रमण के खिलाफ उच्च उच्च न्यायालय के निर्देशों के बावजूद प्रदेश में अवैध कब्जों का आंकड़ा लगातार बढ़ता ही जा रहा है। अतिक्रमण करने वालों में अधिकांश प्रभावशाली वर्ग ही शामिल है। सूत्रों ने बताया कि सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा करने वाला कोई भी परिवार प्रदेश में पंचायती राज संस्थाओं, शहरी स्थानीय निकायों, विधानसभा व लोकसभा चुनाव लड़ने योग्य नहीं है। इस प्रकार यदि अवैध कब्जों को लेकर प्रदेश में सख्ती बरती जाती है तो कोई भी अतिक्रमणधारक पंचायत व निकाय के चुनाव नहीं लड़ पाएगा। राज्य चुनाव आयोग के अधिकारिक सूत्रों का कहना है कि सरकारी भूमि पर अतिक्रमण करने वाला कोई भी व्यक्ति व उसके परिवार का सदस्य उक्त चुनाव में अपना नामांकन पत्र दाखिल करता है तो वह रद माना जाएगा। और यदि वह चुनाव लड़ता भी है तो बाद में उसका चुनाव भी अवैध हो सकता है।
उधर गैर-सरकारी सूत्रों की मानें तो प्रदेश में सरकारी व निजी भूमि पर अतिक्रमण करने वालों का आंकड़ा इससे भी कहीं ज्यादा है। गौर रहे कि सरकार ने हाल ही में लोक निर्माण एवं राजस्व मंत्री ठाकुर गुलाब सिंह की अगुवाई में मंत्रिमंडलीय उपसमिति का भी गठन किया है, जो अतिक्रमण के मामलों को नियमित करने को लेकर अध्ययन कर रिपोर्ट सरकार को सौंपे