अन्ना में देख रहे अपना 'अक्स

संजय सिंहकल्पना कीजिए कि अन्ना हजारे की जगह पर कोई और आम या नामचीन चेहरा भ्रष्टाचार के खिलाफ आमरण अनशन पर बैठता तो क्या इसी तरह जनसैलाब उमड़ता! शायद नहीं। यह अतिश्योक्ति नहीं है। दरअसल, इस गांधीवादी व्यक्ति की साधारण जीवन पद्धति, ईमानदार, संघर्षशील और बेदाग छवि ही है, जो अपनी तरफ जनसैलाब खींच रही है और पूरे देश में चेतना का बिगुल फूंक रही है।

मुखौटे लगाए कतिपय रहनुमाओं के रोज- रोज के झूठे वादों से आजिज आम लोग अन्ना के चेहरे में अपना 'अक्स' देख रहे हैं। जन्तर-मन्तर के जनसैलाब में मुझे एक 'मां' मिली। उम्र और जीवन संघर्ष की मार से उपजी अनगिनत लकीरों में भावशून्य हो चुके चेहरे के साथ वह कुछ और बुजुर्ग महिलाओं के साथ अन्ना को देखने भर आई थी। वह उस शख्स को देखने आई थी, जिससे उसे जीवन के इस पड़ाव में आकर कुछ उम्मीदें बंध गई हैं।

वह देश के उन हजारों-लाखों चेहरों में से एक है, जिसे अपने बाद और उसके बाद की पीढ़ी की फिक्र है। मुझे रूसी क्रान्ति के दौर में संघर्ष से उपजे महान लेखक मैक्सिम गोर्की की उस संघर्षशील 'मां' की याद आ गई, जिसको केंद्र बिन्दु में रखकर गोर्की ने अपनी महान रचना 'मां' की रचना की थी। अन्ना के अनशन स्थल पर किशोर छात्र-छात्राओं की उमड़ी भीड़ भी आह्लादित करने वाली है। इंटरनेट, फास्ट फूड और एसएमएस युग की यह नौजवान पीढ़ी जिनके जीवन का मंत्र 'खाओ-पियो और मौज करो है..जो कल की चिंता नहीं करती, उनका अचानक मुखरित हो उठना.

यह सब दरअसल अचानक नहीं है। यह उन रहनुमाओं के लिए चेतावनी है. जो यह मान बैठे हैं कि नई पीढ़ी ने भ्रष्टाचार को अपने जीवन का अंग मान उसे अंगीकार कर लिया है। दरअसल, बहुत ही शिद्दत से यह पीढ़ी आब्जर्व कर रही है..और देख रही है। .नई पीढ़ी ने दिखा दिया कि मौका मिलने पर या ईमानदार नेतृत्व मिलने पर सारी सुख- सुविधाओं को दरकिनार कर वह क्रान्ति भी कर सकती है। पूर्वोत्‍तर भारत के सुदूर सिक्किम से दिल्ली में पढ़ाई करने आई एक किशोरी जोइथा दास जो जंतर-मंतर पर अन्ना के नाम का नारा बुलन्द कर रही थी, से जब हमनें पूछा कि क्या अन्ना की जगह पर दूसरा कोई अनशन करता तो यह जनसैलाब उमड़ता? और क्या वह खुद वहां आती?

उसने बहुत ही बेरहमी से देश के राजनेताओं के प्रति जिन शब्दों का प्रयोग किया उसे यहां नहीं लिखा जा सकता। उसने कहा कि अन्ना की ईमानदारी, साधारण जीवन शैली और ईमानदार संघर्ष ही है जो लोगों को उनसे जोड़ रही है। लोग उनमें महात्मा गांधी की छवि देख रहे हैं। युवा पीढ़ी इंटरनेट पर अन्ना हजारे का इतिहास खंगाल रही है। यह अन्ना की 'क्रेडिबिलिटी' है। क्रेडिबिलिटी शब्द जो आज के इस बाजारवादी युग में बेमानी हो चुका है और अपनी प्रासंगिकता खो चुका है। यह शब्द अगर किसी अन्ना हजारे नाम के साथ जुड़ता है तो यह एक दिन या किसी एक साल में किए गए किसी कार्य का पारितोषिक भर नहीं है। यही उनकी पूंजी है..जो त्याग, बलिदान और ईमानदार संघर्ष से ही प्राप्त हुई है। यह उनकी ईमानदार, संघर्षशील और बेदाग छवि ही है जो खींच रही है जनसैलाब

लेखक संजय सिंह राष्‍ट्रीय सहारा से जुड़े हुए हैं. उनका यह लेख राष्‍ट्रीय सहारा में प्रकाशित हो चुका है वहीं से साभार लिया गया है




BIJENDER SHARMA

हि‍माचल प्रदेश का समाचार पोर्टल

एक टिप्पणी भेजें

Thanks For Your Visit

और नया पुराने