वीरभद्र सिंह रियासत के ही नहीं, बल्कि सियासत के भी ताउम्र राजा रहे
धर्मशाला, 11 जुलाई (विजयेन्दर शर्मा)। हिमाचल प्रदेश की राजनिति के कददावर नेता वीरभद्र सिंह रियासत के ही नहीं, बल्कि सियासत के भी ताउम्र राजा रहे । उन्होंने हमेशा अपनी शर्तों पर राजनीति की। लगभग साठ साल के राजनीतिक जीवन में उन्होंने कांग्रेस से चोली-दामन का साथ रखा। कांग्रेस हाईकमान की हां में हां मिलाने के बजाय उन्होंने अपनी बात मनवाने का हमेशा दम दिखाया।
तो सियासी विरोधियों के हर पैंतरे का वह हमलावर जवाब देते रहे। सियासी चालों में वह विवादों में उलझे जरूर, मगर अपनी रणनीतिक कुशलता से हमेशा अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे। देवभूमि के दिग्गज नेता वीरभद्र सिंह को लोग यूं ही राजा नहीं कहते।
आजादी के संधिकाल में तेरह साल की उम्र में राजगद्दी पर बैठे वीरभद्र ने आगे लोकतांत्रिक राजनीतिक का राजा भी बनना था। रियायतों के अस्तित्व ने लोकतंत्र का जामा पहना तो वर्ष 1962 में महज 28 साल की उम्र में सांसद बनकर उन्होंने लोकतांत्रिक राजनीति में पांव जमा लिए। नेहरू के बाद इंदिरा गांधी की उम्मीदों के हिमालयी सूर्य बने वीरभद्र 1983 में मुख्यमंत्री बने तो इसके बाद तो वह आंधी की तरह चले। 22 साल तक वह सीएम रहे। उनके राज सिंहासन पर कई बाधाएं मंडराईं। पर वह अपने रण कौशल से सबको धराशायी करते रहे या अपना बनाते रहे। जिससे वह कांग्रेस की राजनीति के वटवृक्ष बन गए, जिसकी छाया में नए हिमाचल का निर्माण हुआ।
नेहरू, इंदिरा के साथ काम कर चुके वीरभद्र का सोनिया और राहुल गांधी भी अदब करते। उनकी उपेक्षा करने की कोशिशें हुईं, पर उनकी उंगली का इशारा हाईकमान को भी मानना पड़ा। करीब साठ साल की उम्र में ऐसा बहुत कम समय रहा, जब वह मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, केंद्रीय राज्य मंत्री, सांसद या विधायक न रहे हों। वह हमेशा किसी न किसी पद पर रहे।
वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले वीरभद्र सिंह ने केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा देकर हिमाचल की राजनीति में फिर कदम रखा तो पार्टी में उनके खिलाफ बगावत होने लगी। हाईकमान ने भी अनदेखी शुरू की तो वीरभद्र समर्थक विधायकों ने दिल्ली जाकर हाईकमान को इस्तीफे थमा दिए थे तो बैकफुट पर आकर वीरभद्र की माननी पड़ी। उनके हिसाब से टिकटों का बंटवारा हुआ और उन्हें ही कैंपेन कमेटी का प्रमुख बनाया गया।
वीरभद्र में गरीबों और असहायों के लिए करुणा कई बार देखने को मिली। यह 2014 के आसपास की बात है। चंबा की एक औरत शिमला में उनके पास गईं और चंबा जाने के लिए किराया न होने की बात करने लगी। वीरभद्र सिंह इस महिला को दूसरे दिन अपने साथ हेलीकॉप्टर में बैठाकर चंबा ले गए। उनका चंबा का कार्यक्रम था। वीरभद्र सिंह के घर एक मामले में सीबीआई ने रेड की तो उनकी बेटी अपराजिता सिंह की शादी थी। वीरभद्र सिंह ने सीबीआई की टीम को चाबी पकड़वा दी और कहा कि वे खाना खाकर ही जाएं।
धर्मशाला, 11 जुलाई (विजयेन्दर शर्मा)। हिमाचल प्रदेश की राजनिति के कददावर नेता वीरभद्र सिंह रियासत के ही नहीं, बल्कि सियासत के भी ताउम्र राजा रहे । उन्होंने हमेशा अपनी शर्तों पर राजनीति की। लगभग साठ साल के राजनीतिक जीवन में उन्होंने कांग्रेस से चोली-दामन का साथ रखा। कांग्रेस हाईकमान की हां में हां मिलाने के बजाय उन्होंने अपनी बात मनवाने का हमेशा दम दिखाया।
तो सियासी विरोधियों के हर पैंतरे का वह हमलावर जवाब देते रहे। सियासी चालों में वह विवादों में उलझे जरूर, मगर अपनी रणनीतिक कुशलता से हमेशा अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे। देवभूमि के दिग्गज नेता वीरभद्र सिंह को लोग यूं ही राजा नहीं कहते।
आजादी के संधिकाल में तेरह साल की उम्र में राजगद्दी पर बैठे वीरभद्र ने आगे लोकतांत्रिक राजनीतिक का राजा भी बनना था। रियायतों के अस्तित्व ने लोकतंत्र का जामा पहना तो वर्ष 1962 में महज 28 साल की उम्र में सांसद बनकर उन्होंने लोकतांत्रिक राजनीति में पांव जमा लिए। नेहरू के बाद इंदिरा गांधी की उम्मीदों के हिमालयी सूर्य बने वीरभद्र 1983 में मुख्यमंत्री बने तो इसके बाद तो वह आंधी की तरह चले। 22 साल तक वह सीएम रहे। उनके राज सिंहासन पर कई बाधाएं मंडराईं। पर वह अपने रण कौशल से सबको धराशायी करते रहे या अपना बनाते रहे। जिससे वह कांग्रेस की राजनीति के वटवृक्ष बन गए, जिसकी छाया में नए हिमाचल का निर्माण हुआ।
नेहरू, इंदिरा के साथ काम कर चुके वीरभद्र का सोनिया और राहुल गांधी भी अदब करते। उनकी उपेक्षा करने की कोशिशें हुईं, पर उनकी उंगली का इशारा हाईकमान को भी मानना पड़ा। करीब साठ साल की उम्र में ऐसा बहुत कम समय रहा, जब वह मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, केंद्रीय राज्य मंत्री, सांसद या विधायक न रहे हों। वह हमेशा किसी न किसी पद पर रहे।
वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले वीरभद्र सिंह ने केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा देकर हिमाचल की राजनीति में फिर कदम रखा तो पार्टी में उनके खिलाफ बगावत होने लगी। हाईकमान ने भी अनदेखी शुरू की तो वीरभद्र समर्थक विधायकों ने दिल्ली जाकर हाईकमान को इस्तीफे थमा दिए थे तो बैकफुट पर आकर वीरभद्र की माननी पड़ी। उनके हिसाब से टिकटों का बंटवारा हुआ और उन्हें ही कैंपेन कमेटी का प्रमुख बनाया गया।
वीरभद्र में गरीबों और असहायों के लिए करुणा कई बार देखने को मिली। यह 2014 के आसपास की बात है। चंबा की एक औरत शिमला में उनके पास गईं और चंबा जाने के लिए किराया न होने की बात करने लगी। वीरभद्र सिंह इस महिला को दूसरे दिन अपने साथ हेलीकॉप्टर में बैठाकर चंबा ले गए। उनका चंबा का कार्यक्रम था। वीरभद्र सिंह के घर एक मामले में सीबीआई ने रेड की तो उनकी बेटी अपराजिता सिंह की शादी थी। वीरभद्र सिंह ने सीबीआई की टीम को चाबी पकड़वा दी और कहा कि वे खाना खाकर ही जाएं।