औषधीय पौधों की खेती से किसानों को लावारिस पशु और जंगली जानवरों से मिलेगा छुटकारा
धर्मशाला, 04 जनवरी: (विजयेन्दर शर्मा) । पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में खेती बाड़ी करने वाले किसानों के लिये लावारिस पशु और बंदरों के अलावा जंगली जानवर बडी समस्या रहे हैं। उनकी फसलें उजडती रही हैं। जिससे मायूस होकर तो कई किसान किसानी छोडने का मन बना चुके हैं। लेकिन अब मायूस किसानों के लिये राहत भरी खबर सामने आ रही है। अब यह किसान अपनी जमीन पर देसी जड़ी-बूटियां उगा कर नई मिसाल कायम कर रहें हैं। इससे जहां किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है, वहीं जानवरों के नुक्सान से भी इन्हें राहत मिली है।
प्रदेश में अब किसान अपने खेतों में जड़ी-बूटियां उगा रहे हैं। देसी जड़ी-बूटियां लगाने को नेशनल आयुष मिशन के तहत आयुर्वेद विभाग सब्सिडी दे रहा है। किसान विभाग के माध्यम से देसी जड़ी-बूटियों की बिजाई के लिए आवेदन कर सकते हैं। विभाग सफेद मूसली, कुटकी, अतीश, अश्वगंधा, सर्पगंधा और तुलसी की खेती के लिए सब्सिडी दे रहा है।
नेशनल मेडिसिनल प्लांट बोर्ड जोगेंद्रनगर के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. अरुण चंदन बताते हैं कि यह तमाम जड़ी-बूटियां जटिल बीमारियों का निदान करती हैं। दुनिया भर में आर्युवैद कि ओर लोगों का रूझान बढा है। जिससे जड़ी बूटी उगाने की योजना सामने आई है। लोग अब इन्हें अपने घर के पास ही उगा सकेंगे। उन्होंने बताया कि इसके लिये किसानों को सबसिडी दी जा रही है। जिससे उन्हें अपने बंजर खेतों में विकल्प के तौर पर फसल उगाने का लाभ मिल रहा है। उन्होंने कहा कि यह प्रयोग कामयाब रहा हैं जिससे उन्हें रोजगार भी मिला रहा है। खासकर कोरोना महामारी के दौर में जहां कई लोग बेरोजगार होकर अपने घर में निराश होकर बैठे थे, उन्हें अपनी रोजी रोटी चलाने का साधन मिल गया है। उन्होंने माना कि आरंभिक चरण में किसानों को कुछ दिक्कतों का सामना करना पड रहा है। लेकिन उनका भी निदान करने की ओर सरकार प्रयास कर रही है। तुलसी का पौधा प्राचीन समय से ही हर घर के लगया जाता रहा है। तुलसी का पौधा जितना पूजनीय है उससे कई ज्यादा उसके औषधीय गुण होते है। तुलसी की खेती अब व्यावसायिक रूप में होने लगी है। तुलसी के पत्ते तेल और बीज को बेचा जाता है। तुलसी काम पानी और काम लागत में ज्यादा फ़ायदा देने वाली औषधीय फसल है।
हिमाचल के चंबा, शिमला, कुल्लू और मंडी में अतीश की खेतीबाड़ी की जा रही है। जबकि सफेद मूसली, कुटकी, अश्वगंधा, सर्पगंधा और तुलसी की हर जिले में खेती हो रही है। देसी जड़ी बूटियां दो से तीन साल में तैयार हो जाएंगी। इसके बाद आयुर्वेद विभाग आयुर्वेदिक फार्मेसी के माध्यम से किसानों-बागवानों से जड़ी बूटियों की खरीदारी करेगा। हिमाचल में इससे किसानों-बागवानों की आर्थिकी सुदृढ़ होगी।
धर्मशाला, 04 जनवरी: (विजयेन्दर शर्मा) । पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में खेती बाड़ी करने वाले किसानों के लिये लावारिस पशु और बंदरों के अलावा जंगली जानवर बडी समस्या रहे हैं। उनकी फसलें उजडती रही हैं। जिससे मायूस होकर तो कई किसान किसानी छोडने का मन बना चुके हैं। लेकिन अब मायूस किसानों के लिये राहत भरी खबर सामने आ रही है। अब यह किसान अपनी जमीन पर देसी जड़ी-बूटियां उगा कर नई मिसाल कायम कर रहें हैं। इससे जहां किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है, वहीं जानवरों के नुक्सान से भी इन्हें राहत मिली है।
प्रदेश में अब किसान अपने खेतों में जड़ी-बूटियां उगा रहे हैं। देसी जड़ी-बूटियां लगाने को नेशनल आयुष मिशन के तहत आयुर्वेद विभाग सब्सिडी दे रहा है। किसान विभाग के माध्यम से देसी जड़ी-बूटियों की बिजाई के लिए आवेदन कर सकते हैं। विभाग सफेद मूसली, कुटकी, अतीश, अश्वगंधा, सर्पगंधा और तुलसी की खेती के लिए सब्सिडी दे रहा है।
नेशनल मेडिसिनल प्लांट बोर्ड जोगेंद्रनगर के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. अरुण चंदन बताते हैं कि यह तमाम जड़ी-बूटियां जटिल बीमारियों का निदान करती हैं। दुनिया भर में आर्युवैद कि ओर लोगों का रूझान बढा है। जिससे जड़ी बूटी उगाने की योजना सामने आई है। लोग अब इन्हें अपने घर के पास ही उगा सकेंगे। उन्होंने बताया कि इसके लिये किसानों को सबसिडी दी जा रही है। जिससे उन्हें अपने बंजर खेतों में विकल्प के तौर पर फसल उगाने का लाभ मिल रहा है। उन्होंने कहा कि यह प्रयोग कामयाब रहा हैं जिससे उन्हें रोजगार भी मिला रहा है। खासकर कोरोना महामारी के दौर में जहां कई लोग बेरोजगार होकर अपने घर में निराश होकर बैठे थे, उन्हें अपनी रोजी रोटी चलाने का साधन मिल गया है। उन्होंने माना कि आरंभिक चरण में किसानों को कुछ दिक्कतों का सामना करना पड रहा है। लेकिन उनका भी निदान करने की ओर सरकार प्रयास कर रही है। तुलसी का पौधा प्राचीन समय से ही हर घर के लगया जाता रहा है। तुलसी का पौधा जितना पूजनीय है उससे कई ज्यादा उसके औषधीय गुण होते है। तुलसी की खेती अब व्यावसायिक रूप में होने लगी है। तुलसी के पत्ते तेल और बीज को बेचा जाता है। तुलसी काम पानी और काम लागत में ज्यादा फ़ायदा देने वाली औषधीय फसल है।
हिमाचल के चंबा, शिमला, कुल्लू और मंडी में अतीश की खेतीबाड़ी की जा रही है। जबकि सफेद मूसली, कुटकी, अश्वगंधा, सर्पगंधा और तुलसी की हर जिले में खेती हो रही है। देसी जड़ी बूटियां दो से तीन साल में तैयार हो जाएंगी। इसके बाद आयुर्वेद विभाग आयुर्वेदिक फार्मेसी के माध्यम से किसानों-बागवानों से जड़ी बूटियों की खरीदारी करेगा। हिमाचल में इससे किसानों-बागवानों की आर्थिकी सुदृढ़ होगी।