धोखाधड़ी करने के आरोप में तीन वर्ष की कठोर कारावास

प्रदेश हाईकोर्ट ने आबकारी व कराधान विभाग के एक निरीक्षक को फर्जी रसीदें छपवाकर विभाग के साथ धोखाधड़ी करने के आरोप में तीन वर्ष की कठोर कारावास की सजा
सुनाते हुए सत्र न्यायाधीश बिलासपुर के फैसले को पलटते हुए न्यायिक दंडाधिकारी बिलासपुर के फैसले पर मुहर लगा दी है। न्यायाधीश आरबी मिश्रा व न्यायाधीश वीके शर्मा की खंडपीठ ने फैसला पलटते हुए कहा है कि भ्रष्टाचार के ऐसे संगीन मामलों में सरकार से अभियोजन पक्ष को मामला चलाने की स्वीकृति लेनी आवश्यक नहीं। सत्र न्यायाधीश बिलासपुर ने आठ मई 2002 के अपने फैसले में न्यायिक मजिस्ट्रेट के 16 दिसंबर 1996 के फैसले को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि अभियोजन पक्ष ने सरकार से अभियुक्त पर मुकदमा चलाने की स्वीकृति नहीं ली थी।अभियोजन पक्ष के मुताबिक अभियुक्त बलदेव सिंह स्वारघाट बैरियर पर निरीक्षक पद पर नियुक्त था। वह जाली रसीदें छपवाकर बाहर से आने वाले वाहनों से पैसे ऐंठता था। गोलथाई में पंजाब की दो बसों को चेक करते हुए यह रसीदें आबकारी व कराधान अधिकारी के हाथ लगी। जांच करने पर रसीदें फर्जी पाई गई और पुलिस में भादंसं की धारा 420, 467, 468, 471 के तहत मामला दर्ज हुआ। न्यायिक दंडाधिकारी बिलासपुर की अदालत में इस मामले की सुनवाई हुई अभियोजन पक्ष ने 12 गवाहों को पेश किया और आरोपी को 16 दिसंबर 1996 को तीन वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई। उसकी अपील सत्र न्यायालय में की, जिसे स्वीकार करते हुए यह फैसला रद कर दिया था। सरकार द्वारा हाईकोर्ट में अपील दायर करने के पश्चात उच्च न्यायालय ने सत्र न्यायाधीश के फैसले को रद कर दिया।
BIJENDER SHARMA

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