नई दिल्ली, | तलाक के बाद 'बेवफा' पत्नी को भी गुजारा भत्ता देना होगा।
पूर्व पति उसे इस आधार पर गुजारा भत्ता देने से इंकार नहीं कर सकता कि
तलाक से पहले उसके 'पर पुरुष' से सम्बंध रहे हैं। अतिरिक्त सत्र
न्यायाधीश टी. आर. नवल ने ऐसे ही एक मामले में मजिस्ट्रेट के फैसले को
बरकरार रखते हुए कहा, "तलाकशुदा पत्नी किसी और के साथ रहती है, इससे पति
को कोई फायदा नहीं होगा।"अदालत दिल्ली पुलिस के कर्मचारी और उसकी
तलाकशुदा पत्नी की ओर से गुजरा भत्ता पर दायर पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई
कर रही थी। दिल्ली पुलिस के कर्मचारी लक्ष्मी नारायण ने 2008 के
मजिस्ट्रेट के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसे अपनी पूर्व पत्नी को
4,000 रुपये प्रतिमाह गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया गया था। दोनों की
शादी 2004 में हुई थी। बाद में उनका तलाक हो गया। नारायण ने दूसरी शादी
कर ली और अदालत में पूर्व पत्नी को गुजारा भत्ता नहीं देने का अनुरोध
किया। तलाकशुदा पत्नी ने उसकी याचिका का विरोध किया और गुजारा भत्ता जारी
रखने की मांग की।उसने कहा, "वह (पूर्व पति) साधन सम्पन्न व्यक्ति है और
10,000 रुपये प्रतिमाह वेतन से तथा 50,000 रुपये प्रतिमाह अन्य स्रोतों
से कमाता है, जबकि मैं अशिक्षित व बेरोजगार होने की वजह से अपना खर्च
उठाने में अक्षम हूं। मैं अदालत से मेरे पूर्व पति को गुजारा भत्ता के
रूप में प्रतिमाह 15,000 रुपये देने और मुकदमे के खर्च के लिए 5,500
रुपये देने के लिए निर्देश देने का अनुरोध करती हूं।"अदालत ने दोनों
याचिकाओं का निपटान करते हुए कहा कि इस मामले में मेट्रोपोलिटन
मजिस्ट्रेट का आदेश 'निष्पक्ष' व 'उचित' है।
नारायण ने अपनी याचिका में कहा था कि उसके पास आय के सीमित संसाधन हैं और
उस पर उसकी मां, पत्नी तथा दो बच्चों की जिम्मेदारी है। इस पर अदालत ने
कहा कि मजिस्ट्रेट ने इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए ही गुजारे भत्ते
की राशि निर्धारित की थी।
पूर्व पति उसे इस आधार पर गुजारा भत्ता देने से इंकार नहीं कर सकता कि
तलाक से पहले उसके 'पर पुरुष' से सम्बंध रहे हैं। अतिरिक्त सत्र
न्यायाधीश टी. आर. नवल ने ऐसे ही एक मामले में मजिस्ट्रेट के फैसले को
बरकरार रखते हुए कहा, "तलाकशुदा पत्नी किसी और के साथ रहती है, इससे पति
को कोई फायदा नहीं होगा।"अदालत दिल्ली पुलिस के कर्मचारी और उसकी
तलाकशुदा पत्नी की ओर से गुजरा भत्ता पर दायर पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई
कर रही थी। दिल्ली पुलिस के कर्मचारी लक्ष्मी नारायण ने 2008 के
मजिस्ट्रेट के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसे अपनी पूर्व पत्नी को
4,000 रुपये प्रतिमाह गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया गया था। दोनों की
शादी 2004 में हुई थी। बाद में उनका तलाक हो गया। नारायण ने दूसरी शादी
कर ली और अदालत में पूर्व पत्नी को गुजारा भत्ता नहीं देने का अनुरोध
किया। तलाकशुदा पत्नी ने उसकी याचिका का विरोध किया और गुजारा भत्ता जारी
रखने की मांग की।उसने कहा, "वह (पूर्व पति) साधन सम्पन्न व्यक्ति है और
10,000 रुपये प्रतिमाह वेतन से तथा 50,000 रुपये प्रतिमाह अन्य स्रोतों
से कमाता है, जबकि मैं अशिक्षित व बेरोजगार होने की वजह से अपना खर्च
उठाने में अक्षम हूं। मैं अदालत से मेरे पूर्व पति को गुजारा भत्ता के
रूप में प्रतिमाह 15,000 रुपये देने और मुकदमे के खर्च के लिए 5,500
रुपये देने के लिए निर्देश देने का अनुरोध करती हूं।"अदालत ने दोनों
याचिकाओं का निपटान करते हुए कहा कि इस मामले में मेट्रोपोलिटन
मजिस्ट्रेट का आदेश 'निष्पक्ष' व 'उचित' है।
नारायण ने अपनी याचिका में कहा था कि उसके पास आय के सीमित संसाधन हैं और
उस पर उसकी मां, पत्नी तथा दो बच्चों की जिम्मेदारी है। इस पर अदालत ने
कहा कि मजिस्ट्रेट ने इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए ही गुजारे भत्ते
की राशि निर्धारित की थी।