की रिपोर्ट आने के बाद इशरत और मुठभेड़ में जान गंवाने वाले अन्य युवाओं
के परिजनों ने राहत की सांस ली है, जिसमें मुठभेड़ को फर्जी बताया गया
है। उन्होंने रिपोर्ट पर खुशी जताई और न्यायालय को धन्यवाद दिया। मुठभेड़
की जांच के लिए एसआईटी का गठन सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर किया गया था।
एसआईटी की रिपोर्ट को जीत करार देते हुए इशरत के परिजनों ने कहा कि इससे
आतंकवादी होने का वह दाग धुल गया है, जो पुलिस ने उन पर लगाया था। उसके
चाचा रौफ लाला ने न्यायालय के बाहर संवाददाताओं से बातचीत में कहा, "वह
जब तक जिंदा रही, निर्दोष थी। वह तब भी निर्दोष थी जब उसका शव हमारे पास
लाया गया था। यह हमारी जीत है।"
उसकी मां शमीमा कौसर ने इसके लिए न्यायालय को धन्यवाद दिया और कहा कि
न्याय तब तक अधूरा है जब तक कि दोषियों को सजा नहीं मिल जाती। रुं धे गले
से कौसर ने कहा, "उन्हें फांसी दी जानी चाहिए। उन्होंने हमारी जिंदगी
बर्बाद कर दी। उन्होंने हमारी निर्दोष बेटी को मार डाला।"
वहीं, मुठभेड़ में जान गंवाने वाले प्राणेष कुमार पिल्लई उर्फ जावेद शेख
के पिता गोपीनाथ पिल्लई ने केरल के अलापुझा में कहा कि अब उन्हें कोई
आतंकवादी का पिता कहकर नहीं बुला सकता। उन्होंने कहा, "पिछले करीब सात
साल से मैं इस मुद्दे पर लड़ाई लड़ रहा था। मैं कई बार गुजरात गया और
बताया कि मेरा बेटा आतंकवादी नहीं था। अब मैं खुश हूं कि सच्चाई सामने आ
गई।" मुस्लिम महिला से शादी करने के लिए प्राणेष ने इस्लाम कबूल कर लिया
था और अपना नाम बदलकर जावेद रख लिया था।
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और वकीलों ने भी एसआईटी की रिपोर्ट का स्वागत
किया है। इशरत के परिवार को आतंकवादी के रूप में बदनाम करने के लिए
उन्होंने पुलिस तथा मीडिया से इस मामले में सार्वजनिक तौर पर माफी मांगने
को कहा।
पुलिस ने मुम्बई की इशरत (19) और तीन अन्य अमजद अली, जिशान जौहर को 15
जून, 2004 को अहमदाबाद में मुठभेड़ में मार गिराने का दावा करते हुए कहा
था कि वे लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी थे और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र
मोदी को मारने आए थे। लेकिन एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट में मुठभेड़ को फर्जी
करार दिया और यह भी कहा कि उक्त चारों की हत्या 15 जून, 2004 से पहले ही
कर दी गई थी।