सुरेश धरूर
एक जाने-माने और लोकप्रिय नेता के पुत्र उनकी मृत्यु के बाद उनका स्थान ग्रहण करना चाह रहे हैं। पिता का स्थान पाने के लिए उन्होंने एक माहौल भी तैयार किया मगर ऐसा न हो सका। राजनीति में मौकापरस्ती और जायदाद के मुद्ïदे उठे और एक वरिष्ठ नेता की नियुक्ति कर दी गयी। मामला अभी सुलझा नहीं है तथा ‘युवराज’ को ताजपोशी का इंतजार है, मगर अब ताज पहनाने वाला कोई नहीं है। उद्योगपति वाईएस जगन मोहन रेड्डी (37) अपने पिता एवं पूर्व मुख्यमंत्री स्व. वाय एस राजशेखर रेड्डी के निधन के बाद राजनीति में उतरे। अशांत और विद्रोही तेवर लिये जगन काफी जल्दी में लगते हैं मगर उनकी आकांक्षाओं और इच्छाओं की पूर्ति करने वाला कोई नहीं। कांग्रेस के लिये वह एक ऐसा ‘जिद्दी बच्चा’ है जो राजनीतिक परिवार में पला-बढ़ा तथा रायला सीमा क्षेत्र, जहां वफादारी और दुश्मनी पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है, से पहली बार सांसद चुना गया।
धारीदारी कमीज तथा पतलून में जगन पक्का राजनीतिक तो नहीं लगते मगर कहते हैं— ‘क्या महत्वाकांक्षी होना पाप है, क्या आप अगर मेरी जगह होते तो क्या आप अपने पिता के अच्छे कर्मों को स्वयं आगे नहीं बढ़ाना चाहेंगे? मुख्यमंत्री पद के प्रश्न पर उनकी यह प्रतिक्रिया रही।
पिता की मृत्यु से पूर्व आंध्र प्रदेश के बाहर जगन को अधिक लोग नहीं जानते थे, मगर पिछले वर्ष 3 सितंबर को हैदराबाद में पिता के शव के हैदराबाद पहुंचने पर टीवी चैनलों में शोक में डूबे बेटे को सभी जगह मशहूर कर दिया।
मुख्यमंत्री पद पर उसे आसीन करने की भावुक मुहिम ने उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में पहुंचा दिया। तब तक वह एक व्यवसायी थे जिन पर पिता का हाथ था। कभी-कभार वह पिता के राजनीति प्रचार में भी हाथ बंटा देते थे। उन्होंने विद्युत, इंफ्रास्ट्रक्चर, सीमेंट तथा मीडिया सेक्टर में खासा नाम कमाया, परंतु साथ-साथ विवाद भी पनपे। जगन को विरोधी दलों के आरोप का सामना करना पड़ा। विरोधी दलों का कहना था कि उनके व्यापार में अनियमितताएं हैं। ओस्मानिया विवि से प्रबंधन विषय में स्नातक जगन को वचन का पक्का माना जाता है। कांग्रेस महासचिव ए रामबाबू, जो अब निलंबित हैं का कहना है कि लोग उनमें वाईएसआर को देखते हैं। परंतु जगन को मुख्यमंत्री पद पर बिठाने की मुहिम इतनी तेज हुई कि पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं को शर्मिंदगी झेलनी पड़ी। कांग्रेस सांसद वी हनुमंत राव जो वाईएनआर के आलोचक माने जाते हैं, का कहना था कि उन्हें धैर्य रखना चाहिए तथा मेहनत कर पार्टी में आगे बढऩा चाहिए।
यहां तक कि सोनिया गांधी ने जब उन्हें रोसाया से मिलकर कार्य करने को कहा तो वह ऐसा नहीं कर पाया। जगन का कहना है कि मेरे पिता द्वारा किसानों को नि:शुल्क बिजली तथा गरीबों को चावल का कोटा बढ़ाने का वादा किया गया था मगर वह अभी तक पूरा नहीं हुआ। मैं इन वादों को पूरा करने के लिये सरकार पर दबाव बनाऊंगा। युवा सांसद हाईकमान से भिडऩे के मूड में हैं। उन्हें ‘ओइप्पु यात्रा’ (सांत्वना यात्रा) को न निकाले जाने के निर्देश के बाद भी उन्होंने वह निर्देश नहीं माने।
यात्रा उन परिवारों से मुलाकात के उद्देश्य से है जिनके सदस्य बाईएसआर के मृत्यु का समाचार सुनकर आपात से मर गये या आत्महत्या कर ली।
जगन खेमे ने दावा किया कि 460 से अधिक लोग या तो दुख में मारे गए या फिर उन्होंने आत्महत्या कर ली। हालांकि ये भी आरोप लगे कि यह रिपोर्ट ‘जाली’ है। ओसमानिया विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर एवं लेखक कांचा इल्लैया ने कहा कि ये रिपोर्टें ‘महिमामंडित अभियान’ का एक हिस्सा है।
यह विद्रोही नेता अपने पिता की पहली पुण्यतिथि पर 3 सितंबर से अपनी यात्रा का तीसरा चरण शुरू करने जा रहा है। वे कहते हैं, ‘मैं अपनी यात्रा कैसे रोक दूं? अपने पिता की मौत पर दुर्घटनास्थल से ही मैंने वादा किया था कि इस मौत के बाद जितने लोगों ने अपने प्रियजन खोये हैं, उन सबके परिवारों तक मैं पहुंचूंगा।
जैसे-जैसे दिल्ली से अनुशासनात्मक कार्रवाई के संकेत मिल रहे हैं, जगन खुद को पार्टी में अकेला महसूस कर रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि वे विधायक, जो कुछ माह पहले उन्हें वाईएसआर का उत्तराधिकारी घोषित करने के अभियान में सबसे आगे थे, वे ही उनका विरोध कर रहे हैं।
निजामाबाद से कांग्रेसी सांसद मधु याशकी गौड़ कहते हैं कि जगन ने लक्ष्मण रेखा लांघ दी है और उन्हें कार्रवाई का सामना करना चाहिए। कोई भी व्यक्ति पार्टी से ऊपर नहीं है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस युवा सांसद के समक्ष विकल्प बहुत सीमित हैं। उसे या तो हाईकमान के सामने घुटने टेक देने चाहिए और धैर्यपूर्वक अपनी बारी की प्रतीक्षा करनी चाहिए या फिर परिवार के सम्मान को ध्यान में रखते हुए पार्टी छोड़ देनी चाहिए। क्या वह कांग्रेस में शरद पवार की तरह की कार्रवाई करेंगे? वरिष्ठï राजनीतिक विशेषज्ञ ए. श्रीनिवास राव कहते हैं कि जगन अपने पिता की सुनहरी छवि को भुनाना चाहते हैं। व्यक्तिगत तौर पर वे खुद को प्रमाणित नहीं कर पाये हैं और पार्टी से बाहर होकर वे सिर्फ शून्य हैं।
जगन के नेतृत्व का विरोध करने के निर्णय के पीछे दो कारण स्पष्ट रूप से दिखायी देते हैं। पहला कि वे जानते हैं कि सोनिया के वफादार रोसैया की जगह वह कभी भी मुख्यमंत्री नहीं बन सकते। दूसरा, विधायक भी यह जानते हैं कि 2014 को होने वाले चुनावों तक सहानुभूति लहर का असर कम हो जायेगा।
तेलंगाना राज्य का मुद्दा भी जगन के हाथ में कभी भी नहीं रहा। क्योंकि वह एकीकृत आंध्रप्रदेश के पक्के समर्थक हैं, अत: वे पार्टी के भीतर अथवा बाहर तेलंगाना समर्थकों के लिए अवांछित बन गये हैं। अपनी पार्टी के शीर्ष नेताओं से उनके खटास भरे संबंध और इसी बीच भाजपा के जी. जनार्धन रेड्डी के साथ निकटता भी विवाद को जन्म दे रही है। यूं भी जनार्धन रेड्डी वाईएसआर परिवार के निकटतम दोस्तों में हैं और यह भी आरोप है कि जगन की उनकी खानों में बेनामी हिस्सेदारी है। यूं भी वाईएसआर की मौत के बाद रेड्डी भाइयों ने जगन को मुख्यमंत्री बनाने के अभियान में भी साथ दिया था।
हालांकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि कितने विधायक एवं सांसद उनका समर्थन करेंगे। इस युवा, विद्रोही नेता का राजनीतिक भविष्य अब 10, जनपथ के शब्दों पर टिका है।
एक जाने-माने और लोकप्रिय नेता के पुत्र उनकी मृत्यु के बाद उनका स्थान ग्रहण करना चाह रहे हैं। पिता का स्थान पाने के लिए उन्होंने एक माहौल भी तैयार किया मगर ऐसा न हो सका। राजनीति में मौकापरस्ती और जायदाद के मुद्ïदे उठे और एक वरिष्ठ नेता की नियुक्ति कर दी गयी। मामला अभी सुलझा नहीं है तथा ‘युवराज’ को ताजपोशी का इंतजार है, मगर अब ताज पहनाने वाला कोई नहीं है। उद्योगपति वाईएस जगन मोहन रेड्डी (37) अपने पिता एवं पूर्व मुख्यमंत्री स्व. वाय एस राजशेखर रेड्डी के निधन के बाद राजनीति में उतरे। अशांत और विद्रोही तेवर लिये जगन काफी जल्दी में लगते हैं मगर उनकी आकांक्षाओं और इच्छाओं की पूर्ति करने वाला कोई नहीं। कांग्रेस के लिये वह एक ऐसा ‘जिद्दी बच्चा’ है जो राजनीतिक परिवार में पला-बढ़ा तथा रायला सीमा क्षेत्र, जहां वफादारी और दुश्मनी पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है, से पहली बार सांसद चुना गया।
धारीदारी कमीज तथा पतलून में जगन पक्का राजनीतिक तो नहीं लगते मगर कहते हैं— ‘क्या महत्वाकांक्षी होना पाप है, क्या आप अगर मेरी जगह होते तो क्या आप अपने पिता के अच्छे कर्मों को स्वयं आगे नहीं बढ़ाना चाहेंगे? मुख्यमंत्री पद के प्रश्न पर उनकी यह प्रतिक्रिया रही।
पिता की मृत्यु से पूर्व आंध्र प्रदेश के बाहर जगन को अधिक लोग नहीं जानते थे, मगर पिछले वर्ष 3 सितंबर को हैदराबाद में पिता के शव के हैदराबाद पहुंचने पर टीवी चैनलों में शोक में डूबे बेटे को सभी जगह मशहूर कर दिया।
मुख्यमंत्री पद पर उसे आसीन करने की भावुक मुहिम ने उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में पहुंचा दिया। तब तक वह एक व्यवसायी थे जिन पर पिता का हाथ था। कभी-कभार वह पिता के राजनीति प्रचार में भी हाथ बंटा देते थे। उन्होंने विद्युत, इंफ्रास्ट्रक्चर, सीमेंट तथा मीडिया सेक्टर में खासा नाम कमाया, परंतु साथ-साथ विवाद भी पनपे। जगन को विरोधी दलों के आरोप का सामना करना पड़ा। विरोधी दलों का कहना था कि उनके व्यापार में अनियमितताएं हैं। ओस्मानिया विवि से प्रबंधन विषय में स्नातक जगन को वचन का पक्का माना जाता है। कांग्रेस महासचिव ए रामबाबू, जो अब निलंबित हैं का कहना है कि लोग उनमें वाईएसआर को देखते हैं। परंतु जगन को मुख्यमंत्री पद पर बिठाने की मुहिम इतनी तेज हुई कि पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं को शर्मिंदगी झेलनी पड़ी। कांग्रेस सांसद वी हनुमंत राव जो वाईएनआर के आलोचक माने जाते हैं, का कहना था कि उन्हें धैर्य रखना चाहिए तथा मेहनत कर पार्टी में आगे बढऩा चाहिए।
यहां तक कि सोनिया गांधी ने जब उन्हें रोसाया से मिलकर कार्य करने को कहा तो वह ऐसा नहीं कर पाया। जगन का कहना है कि मेरे पिता द्वारा किसानों को नि:शुल्क बिजली तथा गरीबों को चावल का कोटा बढ़ाने का वादा किया गया था मगर वह अभी तक पूरा नहीं हुआ। मैं इन वादों को पूरा करने के लिये सरकार पर दबाव बनाऊंगा। युवा सांसद हाईकमान से भिडऩे के मूड में हैं। उन्हें ‘ओइप्पु यात्रा’ (सांत्वना यात्रा) को न निकाले जाने के निर्देश के बाद भी उन्होंने वह निर्देश नहीं माने।
यात्रा उन परिवारों से मुलाकात के उद्देश्य से है जिनके सदस्य बाईएसआर के मृत्यु का समाचार सुनकर आपात से मर गये या आत्महत्या कर ली।
जगन खेमे ने दावा किया कि 460 से अधिक लोग या तो दुख में मारे गए या फिर उन्होंने आत्महत्या कर ली। हालांकि ये भी आरोप लगे कि यह रिपोर्ट ‘जाली’ है। ओसमानिया विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर एवं लेखक कांचा इल्लैया ने कहा कि ये रिपोर्टें ‘महिमामंडित अभियान’ का एक हिस्सा है।
यह विद्रोही नेता अपने पिता की पहली पुण्यतिथि पर 3 सितंबर से अपनी यात्रा का तीसरा चरण शुरू करने जा रहा है। वे कहते हैं, ‘मैं अपनी यात्रा कैसे रोक दूं? अपने पिता की मौत पर दुर्घटनास्थल से ही मैंने वादा किया था कि इस मौत के बाद जितने लोगों ने अपने प्रियजन खोये हैं, उन सबके परिवारों तक मैं पहुंचूंगा।
जैसे-जैसे दिल्ली से अनुशासनात्मक कार्रवाई के संकेत मिल रहे हैं, जगन खुद को पार्टी में अकेला महसूस कर रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि वे विधायक, जो कुछ माह पहले उन्हें वाईएसआर का उत्तराधिकारी घोषित करने के अभियान में सबसे आगे थे, वे ही उनका विरोध कर रहे हैं।
निजामाबाद से कांग्रेसी सांसद मधु याशकी गौड़ कहते हैं कि जगन ने लक्ष्मण रेखा लांघ दी है और उन्हें कार्रवाई का सामना करना चाहिए। कोई भी व्यक्ति पार्टी से ऊपर नहीं है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस युवा सांसद के समक्ष विकल्प बहुत सीमित हैं। उसे या तो हाईकमान के सामने घुटने टेक देने चाहिए और धैर्यपूर्वक अपनी बारी की प्रतीक्षा करनी चाहिए या फिर परिवार के सम्मान को ध्यान में रखते हुए पार्टी छोड़ देनी चाहिए। क्या वह कांग्रेस में शरद पवार की तरह की कार्रवाई करेंगे? वरिष्ठï राजनीतिक विशेषज्ञ ए. श्रीनिवास राव कहते हैं कि जगन अपने पिता की सुनहरी छवि को भुनाना चाहते हैं। व्यक्तिगत तौर पर वे खुद को प्रमाणित नहीं कर पाये हैं और पार्टी से बाहर होकर वे सिर्फ शून्य हैं।
जगन के नेतृत्व का विरोध करने के निर्णय के पीछे दो कारण स्पष्ट रूप से दिखायी देते हैं। पहला कि वे जानते हैं कि सोनिया के वफादार रोसैया की जगह वह कभी भी मुख्यमंत्री नहीं बन सकते। दूसरा, विधायक भी यह जानते हैं कि 2014 को होने वाले चुनावों तक सहानुभूति लहर का असर कम हो जायेगा।
तेलंगाना राज्य का मुद्दा भी जगन के हाथ में कभी भी नहीं रहा। क्योंकि वह एकीकृत आंध्रप्रदेश के पक्के समर्थक हैं, अत: वे पार्टी के भीतर अथवा बाहर तेलंगाना समर्थकों के लिए अवांछित बन गये हैं। अपनी पार्टी के शीर्ष नेताओं से उनके खटास भरे संबंध और इसी बीच भाजपा के जी. जनार्धन रेड्डी के साथ निकटता भी विवाद को जन्म दे रही है। यूं भी जनार्धन रेड्डी वाईएसआर परिवार के निकटतम दोस्तों में हैं और यह भी आरोप है कि जगन की उनकी खानों में बेनामी हिस्सेदारी है। यूं भी वाईएसआर की मौत के बाद रेड्डी भाइयों ने जगन को मुख्यमंत्री बनाने के अभियान में भी साथ दिया था।
हालांकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि कितने विधायक एवं सांसद उनका समर्थन करेंगे। इस युवा, विद्रोही नेता का राजनीतिक भविष्य अब 10, जनपथ के शब्दों पर टिका है।