हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश को हर्बल राज्य बनाने के लिए प्रभावी कदम उठाए जा रहे हैं। इसी दिशा में दो वर्ष पूर्व शुरू किए गए महत्वाकांक्षी ‘जन-जन संजीवनी वन’ अभियान नामक औषधीय पौधरोपण कार्यक्रम के अंतर्गत प्रदेश के प्रत्य्ोक ग्रामीण व शहरी परिवारों को 5000 पौध वितरण केन्द्रों के माध्यम से औषधीय प्रजाति के 15 लाख से अधिक पौधे वितरित किए गए। इसी श्रृंख्1ला में एक अन्य औषधीय पौधरोपण कार्यक्रम, ‘अपना वन-अपना धन’ आरम्भ किया गया, जिसके माध्यम से साॅंझा वन प्रबन्धन समितियों को सम्मिलित कर, प्रदेश में वृहद स्तर पर औषधीय पौधरोपण किया जा रहा है।
‘साॅंझा वन-संजीवनी वन’ योजना के अन्तर्गत, राजगढ़ वन मण्डल की खैरी, डिम्बर तथा मटनाली वन पौधशालाओं में ऐलोवेरा (क्वारपाठा), आॅंवला तथा बहेड़ा आदि औषधीय प्रजाति के पौधे तैयार किए गए।
राजगढ़ वन मण्डल के अधिकारियों और कर्मचारियों ने यहाॅं स्थापित फारेस्ट डवलैपमैंट एजैंसी समितियों (एफ0डी0ए0) को सम्मिलित कर औषधीय प्रजाति के विस्तार व इनसे प्राप्त होने वाले लाभों के विषय को लेकर व्यापक जागरूकता अभियान चलाया। जिससे प्रेरित होकर वर्ष 2009 में तीन पौध रोपणियों के माध्यम से लगभग 15 हैक्टेयर क्षेत्र में औषधीय पौधरोपण किया गया, जिसमें एलोवेरा के लगभग 11000, आॅंवला के 4200 तथा बहेड़ा के 400 पौधे सफलता पूर्वक रोपित किए गए। इस समय एलोवेरा के इन पौधों में लगभग 20 क्विंटल पत्तियाॅं, विपणन हेतु तैयार हैं। इन्हें पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार को भेजने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गई है। यहँा इन पत्तियों के रस एवं अन्य भागों के उपयोग से अनेक प्रकार की जीवनोपयोगी दवाइयँा तथा प्राकृतिक सौंदर्य प्रसाधन तैयार किए जाते हैं।
राजगढ़ वन मण्डल के अग्रिम पंक्ति के वन कर्मियों द्वारा किसानों को, विशेषकर, बन्दर प्रभावित क्षेत्रों में औषधीय प्रजाति ‘एलोवेरा’ के पौधरोपण हेतु प्रेरित व तकनीकी जानकारी दी जा रही है, जिसके लिए नैनाटिक्कर व बागथन क्षेत्रों के किसान आगे आए हैं। ऐसा पाया गया है कि बन्दर, एलोवेरा को खाद्य के रूप में पसंद नही करते। इस जानकारी के प्रचार-प्रसार से बन्दर प्रभावित क्षेत्रों में किसानों ने राहत की सांस ली है और वे औषधीय खेती को अपनाने के लिए आगे आ रहे हैं।
राजगढ़ वन मण्डल के राजगढ़ व सराहाॅं वन परिक्षेत्रों की पौधशालाओं में, इस समय, ऐलोवेरा के लगभग 18 हजार पौधे, पौधरोपण हेतु तैयार हैं, जिन्हें ‘साॅंझा वन-संजीवनी वन’ तथा ‘अपना वन-अपना धन’ पौधरोपण कार्यक्रमों के तहत, वन समितियों तथा लोगों को, उनकी बेकार व बंजर पड़ी निजी भूमि में पौधरोपण हेतु, आबन्टित किया जाएगा।
बन्दर समस्या से निजात पाने की प्रक्रिया में किसानों द्वारा ऐलोवेरा लगाने व अपनाने का यह प्रयोग, यदि सफल होता है, तो इसका विस्तार, प्रदेश के इसी प्रकार के अन्य क्षेत्रों में भी किया जाएगा। इससे जहाॅं एक ओर औषधीय पौधरोपण व हरित आवरण को बढ़ावा मिलेगा, वहीं लोगों की अपघटित होती जमीन में सुधार के साथ-साथ, उन्हें आय का एक अतिरिक्त साधन भी प्राप्त होगा।
‘साॅंझा वन-संजीवनी वन’ योजना के अन्तर्गत, राजगढ़ वन मण्डल की खैरी, डिम्बर तथा मटनाली वन पौधशालाओं में ऐलोवेरा (क्वारपाठा), आॅंवला तथा बहेड़ा आदि औषधीय प्रजाति के पौधे तैयार किए गए।
राजगढ़ वन मण्डल के अधिकारियों और कर्मचारियों ने यहाॅं स्थापित फारेस्ट डवलैपमैंट एजैंसी समितियों (एफ0डी0ए0) को सम्मिलित कर औषधीय प्रजाति के विस्तार व इनसे प्राप्त होने वाले लाभों के विषय को लेकर व्यापक जागरूकता अभियान चलाया। जिससे प्रेरित होकर वर्ष 2009 में तीन पौध रोपणियों के माध्यम से लगभग 15 हैक्टेयर क्षेत्र में औषधीय पौधरोपण किया गया, जिसमें एलोवेरा के लगभग 11000, आॅंवला के 4200 तथा बहेड़ा के 400 पौधे सफलता पूर्वक रोपित किए गए। इस समय एलोवेरा के इन पौधों में लगभग 20 क्विंटल पत्तियाॅं, विपणन हेतु तैयार हैं। इन्हें पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार को भेजने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गई है। यहँा इन पत्तियों के रस एवं अन्य भागों के उपयोग से अनेक प्रकार की जीवनोपयोगी दवाइयँा तथा प्राकृतिक सौंदर्य प्रसाधन तैयार किए जाते हैं।
राजगढ़ वन मण्डल के अग्रिम पंक्ति के वन कर्मियों द्वारा किसानों को, विशेषकर, बन्दर प्रभावित क्षेत्रों में औषधीय प्रजाति ‘एलोवेरा’ के पौधरोपण हेतु प्रेरित व तकनीकी जानकारी दी जा रही है, जिसके लिए नैनाटिक्कर व बागथन क्षेत्रों के किसान आगे आए हैं। ऐसा पाया गया है कि बन्दर, एलोवेरा को खाद्य के रूप में पसंद नही करते। इस जानकारी के प्रचार-प्रसार से बन्दर प्रभावित क्षेत्रों में किसानों ने राहत की सांस ली है और वे औषधीय खेती को अपनाने के लिए आगे आ रहे हैं।
राजगढ़ वन मण्डल के राजगढ़ व सराहाॅं वन परिक्षेत्रों की पौधशालाओं में, इस समय, ऐलोवेरा के लगभग 18 हजार पौधे, पौधरोपण हेतु तैयार हैं, जिन्हें ‘साॅंझा वन-संजीवनी वन’ तथा ‘अपना वन-अपना धन’ पौधरोपण कार्यक्रमों के तहत, वन समितियों तथा लोगों को, उनकी बेकार व बंजर पड़ी निजी भूमि में पौधरोपण हेतु, आबन्टित किया जाएगा।
बन्दर समस्या से निजात पाने की प्रक्रिया में किसानों द्वारा ऐलोवेरा लगाने व अपनाने का यह प्रयोग, यदि सफल होता है, तो इसका विस्तार, प्रदेश के इसी प्रकार के अन्य क्षेत्रों में भी किया जाएगा। इससे जहाॅं एक ओर औषधीय पौधरोपण व हरित आवरण को बढ़ावा मिलेगा, वहीं लोगों की अपघटित होती जमीन में सुधार के साथ-साथ, उन्हें आय का एक अतिरिक्त साधन भी प्राप्त होगा।