किसानों को रास नहीं आ रही गन्ने की खेती

लखनऊ, 14 नवंबर | उत्तर प्रदेश में भले ही राज्य सरकार ने गन्ने का
समर्थन मूल्य 210 रुपये से बढ़ाकर 250 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया हो,
लेकिन किसानों की मानें तो यह बढ़ोतरी उनकी लागत के हिसाब से नाकाफी है।
परम्परागत गन्ने की खेती करने वाले किसानों को लगने लगा है कि आने वाले
समय में यह खेती उनके लिए फायदे का सौदा नहीं रहेगी।बरेली के गन्ना किसान
गयासुद्दीन ने कहा, "उपज लागत में वृद्धि को देखते हुए सरकार द्वारा
समर्थन मूल्य में 40 रुपये की वृद्धि करना नाकाफी है। हम निराश हैं, हमें
उम्मीद थी कि चुनावी वर्ष में सरकार किसानों को खुश करने के लिए कम से कम
75-80 रुपये की वृद्धि तो जरूर करेगी।" उन्होंने कहा, "सरकार ने पिछले
साल के मुकाबले डीएपी खाद की बोरी के दाम में करीब पचास फीसदी की वृद्धि
कर 605 रुपये से 911 रुपये कर दिया। लेकिन गन्ना मूल्य में केवल 17-18
फीसदी की वृद्धि की।" उल्लेखनीय है कि मायावती सरकार ने गत सोमवार को
लगातार दूसरे पेराई सत्र में गन्ने के समर्थन मूल्य में प्रति क्विंटल 40
रुपये की वृद्धि की घोषणा कर दावा किया कि देश में यह सबसे ज्यादा समर्थन
मूल्य है। घोषणा के तहत 2011-12 के पेराई सत्र के लिए गन्ने की अगैती
प्रजातियों के लिए 250 रुपये, सामान्य प्रजातियों के लिए 240 रुपये तथा
अनुपयुक्त घोषित प्रजातियों के लिए 235 रुपये प्रति क्विंटल की दर से
भुगतान होगा। मेरठ के गन्ना किसान प्रीतम चौधरी ने कहा, "खाद, बीज,
सिंचाई, कीटनाशक के साथ अगर मजदूरी का खर्च जोड़ दिया जाए तो किसान की
उपज लागत प्रति क्विंटल सरकार द्वारा घोषित वर्तमान 250 रुपये से कहीं
ज्यादा आती है। हां, इतना जरूर है कि समर्थन मूल्य 300 रुपये प्रति
क्विंटल के आसपास हो तो कम से कम किसान की लागत वापस आ जाएगी। वह कर्ज
में नहीं डूबेगा।"

उन्होंने कहा, "किसानों का पूरा परिवार यहां तक कि घर की महिलाएं गóो की
बुआई से लेकर कटाई तक में हाथ बंटाती हैं, ऐसे में उनकी मजदूरी लागत बच
जाती है और यही उनका मुनाफा होता है।"

यह पूछे जाने पर कि गन्ने की खेती फायदे का सौदा साबित न होने पर किसान
इसका विकल्प क्यों नहीं तलाशते..इस पर चौधरी ने कहा कि एक तो गन्ना
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की पारम्परिक खेती है, जहां पीढ़ियों से इसकी खेती
होती आ रही है। दूसरा बड़ा कारण है कि आए दिन बिचौलियों के कारण गेहूं और
धान की फसल का उचित मूल्य न मिलने के चलते गन्ने की खेती को प्राथमिकता
दी जाती है।

उत्तर प्रदेश में इस साल करीब सात करोड़ टन गन्ने की पेराई होने का
अनुमान लगाया जा रहा है, जो पिछले साल छह करोड़ टन था। यानी राज्य की
चीनी मिलों को इस वर्ष गन्ने की खरीद के लिए 35-40 रुपये प्रति क्विंटल
ज्यादा का भुगतान करना होगा। उत्तर प्रदेश में सरकारी और निजी क्षेत्र की
करीब 130 चीनी मिलें हैं।

इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के एक पदाधिकारी ने कहा कि गन्ने का
समर्थन मूल्य बढ़ने से चीनी की उत्पादन लागत बढ़कर 32-33 रुपये प्रति
किलोग्राम हो जाएगी, जो पिछले वर्ष 27-28 रुपये प्रति किलोग्राम थी।
वर्तमान में चीनी का औसत खुदरा मूल्य 32-33 रुपये प्रति किलोग्राम है।
उत्पादन लागत बढ़ने से आने वाले दिनों में चीनी की कीमत बढ़नी स्वाभाविक
है। अगर दाम नहीं बढ़े तो चीनी उद्योग पर विपरीत असर पड़ेगा।

उधर, भारतीय किसान मजदूर संगठन के अध्यक्ष वी.एम. सिंह ने कहा, "चीनी मिल
मालिक केवल घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं। अगर उन्हें घाटा हो रहा है तो फिर
कैसे वह हर साल एक के बाद एक नई चीनी मिल स्थापित कर रहे हैं।"

सिंह ने कहा, "किसान से 250 रुपये में एक क्विंटल गन्ना खरीदने के बाद
मिल मालिकों को उसमें करीब 300 रुपये की कीमत की दस किलोग्राम चीनी मिलने
के अलावा शीरा, अल्कोहल और खोई में उतनी ही रकम और मिलती है।"

गन्ने के जायज मूल्य के लिए किसान सरकार पर दबाव बनाने के लिए व्यापक
आंदोलन क्यों नहीं करते..इस पर सिंह ने किसान नेताओं में एकजुटता न होने
की बात कही।

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