डरबन में 28 नवम्बर से शुरू हो रही जलवायु परिवर्तन वार्ता से पहले
विशेषज्ञ इस बात को लेकर चिंतित हैं कि यूरोजोन संकट के कारण गरीब देशों
को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए औद्योगीकृत देशों से सम्भावित अरबों
डॉलर की वित्तीय सहायता बाधित हो सकती है। 28 नवम्बर से नौ दिसम्बर तक 17
पक्षों के बीच जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र प्रारूप संकल्प
(यूएनएफसीसीसी) पर प्रस्तावित सम्मेलन में विकसित और विकासशील देशों के
बीच वित्तीय संसाधन कबाब की हड्डी बन सकते हैं।
यूरोप में वित्तीय संकट गहराने (ग्रीस से इटली तक) और अमेरिकी
अर्थव्यवस्था के संकटग्रस्त होने के कारण विकसित देशों द्वारा संकल्पित
धनराशि के जुटने की सम्भावना क्षीण लग रही है।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) के उपमहानिदेशक चंद्रभूषण ने
आईएएनएस से कहा, "धनी देशों द्वारा संकल्पित धन के प्रवाह पर निश्चित रूप
से यूरोप के वित्तीय संकट का असर होगा और यह डरबन में एक बड़ी लड़ाई बनने
जा रही है।"
चंद्रभूषण के अनुसार, पश्चिम में संकटग्रस्त आर्थिक परिदृश्य के मद्देनजर
विकासशील देशों को यह बात भूल जानी चाहिए कि कम से कम निकट भविष्य में
उन्हें कोई आर्थिक मदद मिलने वाली है।
चंद्रभूषण ने कहा, "विकसित देशों ने विकास सहायता और ऋण के रूप में दी
जाने वाली वित्तीय मदद पर जलवायु फाइनेंस का ठप्पा लगाना तो पहले से शुरू
कर दिया है, लेकिन इसके अलावा विकासशील देशों के लिए कोई नई आर्थिक
सहायता नहीं आ रही है।"
भारत के पूर्व प्रमुख वार्ताकार प्रदीप्तो घोष इस बात से सहमत हैं कि
विकसित देश विकास सम्बंधी अन्य वित्तीय मदद, जलवायु फाइनेंस के रूप में
पेश करने की प्रक्रिया में हैं।
घोष पूर्व केंद्रीय पर्यावरण सचिव हैं और फिलहाल द इनर्जी रिसर्च
इंस्टीट्यूट (टेरी) में वरिष्ठ फेलो हैं। उन्होंने आईएएनएस से कहा, "धनी
देशों से कोई नया धन नहीं आ रहा है। और वे जलवायु परिवर्तन से निपटने में
तथा उत्सर्जन रोकने में विकासशील देशों को मदद करने के लिए मौजूदा आर्थिक
संसाधानों पर नया ठप्पा लगा रहा है।"
रपटों के अनुसार, ब्रसेल्स में नौ नवम्बर को हुई बैठक के दौरान यूरोपीय
संघ के वित्त मंत्रियों ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए विकासशील
देशों हेतु लगभग 5.5 अरब डॉलर की अल्पकालिक सहायता सुनिश्चित की थी।