मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को भैरव जयंती मनाई जाती है

हिंदू धर्म में भैरव जी की विशिष्टता प्राचीन समय से कायम है। देश के प्राय: सभी क्षेत्रों में श्री भैरव की पूजा होती है। भैरव देवीतीर्थ में हैं, तो शिवधाम में भी हैं। भैरव बड़े-बड़े राजप्रासादों, चौक-चौराहे व नगर प्रवेश द्वार पर हैं। वहीं हरेक गांव-टोले में विराजमान सप्तमातृका देवी स्थान में भी भैरव की पूजा पिंडी रूप में अवश्य होती है। भगवान शिव के क्रोधावतार, देवी के पहरुआ, कालों के काल महाकाल भैरव की लोकप्रियता शैव, शाक्त व वैष्णव, तीनों संप्रदायों में समान रूप से है। ऐसे तो भैरव की आराधना रोज होती है, पर वर्ष में एक बार मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को भैरव जयंती मनाई जाती है। कष्ट से मुक्ति और संकट के निदान में भैरव साधना तुरंत फलदायी है।

उत्तर में अमरनाथ के बाबा अमर भैरव, दक्षिण में कन्याकुमारी के भूत काल भैरव, पूरब में ब्रह्मपुत्र नद के उमानाथ भैरव और पश्चिम में अम्बा जी के सिद्ध भैरव से भारत रक्षित है। हमारे देश में भैरव विभिन्न नामों से पूजे जाते हैं। श्री भैरव जी के प्रधान रूपों की संख्या आठ है और इनके कुल 64 रूपांश हैं। देश में महाकाल तीर्थ उज्जैन का भैरव गढ़, राजरप्पा की भैरवी नदी, गिरनार का भैरव पर्वत, ओंकारेश्वर का भैरव घाट, देवघर का भैरव बाजार, त्रिकूट पर्वत की भैरव घाटी और रामेश्वरम में समुद्री क्षेत्र में भैरव तीर्थ, भैरव उपासना के प्रसिद्ध स्थलों में शामिल हैं। अष्टमी तिथि को भैरव का प्रादुर्भाव होने के कारण आठ अंक भैरव को प्रिय है। इनके अष्ट प्रधान पीठ हैं, तो आठ उप पीठ भी हैं।

BIJENDER SHARMA

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