पेहड़वीं के अमरनाथ के हाथों की धुली दाल खाई तो बिलासपुरी धाम के हो जाओगे दीवाने
- जगत प्रकाश नड्डा समेत पूर्व मुख्यमंत्री भी चख चुके हैं इनके हाथों का स्वाद
- अपनी आमदनी के साथ साथ क्षेत्र के 20 लोगों को दिया है रोजगार
बिलासपुर ( विजयेन्दर शर्मा) ।
'बिलासपुरी धाम"" मुंह में पानी लाने के लिए सिर्फ यह शब्द ही काफी है। जिला बिलासपुर में शादी विवाह या अन्य मांगलिक कार्यक्रमों में परोसा जाने वाला यह भोजन बिलासपुरी धाम के नाम से जाना जाता है। इसी बिलासपुरी धाम के लिए जिला बिलासपुर के घुमारवीं उपमंडल के गांव पेहड़वी के अमरनाथ भारद्वाज पिछले 25 सालों से चर्चा में बने हुए हैं। अमरनाथ सिर्फ बिलासपुरी धाम ही नहीं बल्कि बिलासपुर की मशहूर धुली दाल के स्वाद के लिए भी विख्यात हैं।
मुख्यमंत्री चख चुके इनके हाथों का स्वाद :
प्रदेश के कई पूर्व मुख्यमंत्रियों, नेताओं से लेकर वर्तमान मुख्यमंत्री तक अमरनाथ भारद्वाज द्वारा बनाई गई बिलासपुरी धाम तथा धुली दाल का स्वाद चख चुके हैं। फिर चाहे वह बरमाना में बनाई गई धाम में पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीरभद्र सिंह हो या फिर हाल ही में घुमारवीं में आयोजित भारतीय जनता पार्टी का कार्यक्रम, अब हर जगह अमरनाथ भारद्वाज द्वारा बनाई गई धूली दाल का स्वाद लोगों को रास आ रहा है।
जगत प्रकाश नड्डा के सुपुत्र की शादी में परोस चुके हैं धाम :
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के सुपुत्र के विवाह समारोह की धाम की जिम्मेवारी भी अमरनाथ भारद्वाज के कंधों पर ही थी। वहां पर भी देश प्रदेश के सभी बड़े राजनेताओं को अपने हाथ की बनाई बिलासपुरी धाम और धुली दाल बनाकर खिला चुके हैं। अमरनाथ भारद्वाज सिर्फ धुली दाल ही नहीं बल्कि उड़द की दाल, मूंग की दाल, ओहरी वाली चने की दाल, आलू राजमा, सफेद चने के अलावा कढ़ी पकोड़ा बनाने में भी माहिर है। इसके अलावा उनके हाथों का बनाया कुचालु (बेजू) का पलदा खाने के लिए भी लोग दूर-दूर से आते हैं।
धुली दाल बनाने की विधि :
धुली दाल को रात भर भिगोने रखा जाता है। उसके बाद सुबह इसे साफ पानी में धोकर के इसका छिलका उतार दिया जाता है। धुली दाल सिर्फ बटलोही में ही बनाई जा सकती है। धुली दाल को सिर्फ डालडा या देसी घी में बनाया जाता है, किसी अन्य प्रकार के तेल में धुली दाल नहीं बनाई जाती। सबसे पहले घी को बटलोही में डालकर गर्म किया जाता है, जिसके बाद उसे थोड़ा ठंडा करके उसमें हींग, सोंफ तथा लौंग का तड़का लगाया जाता है। घी नॉर्मल होने पर इसमें दाल डाल कर कुछ देर तक धीमी आंच पर भूना जाता है, जिसके बाद इसमें हल्दी तथा नमक डालकर फिर डेढ़ घंटे तक भूना जाएगा। तत्पश्चात इसमें मीठी सौंफ, दाल चीनी, काली मिर्च, गर्म मसाला, बड़ी इलायची डालकर दाल से डेढ़ गुना पानी डालकर धीमी आंच पर तब तक पकाया जाता है, जब तक यह गाढ़ी हो कर तैयार ना हो जाये।
- जगत प्रकाश नड्डा समेत पूर्व मुख्यमंत्री भी चख चुके हैं इनके हाथों का स्वाद
- अपनी आमदनी के साथ साथ क्षेत्र के 20 लोगों को दिया है रोजगार
बिलासपुर ( विजयेन्दर शर्मा) ।
'बिलासपुरी धाम"" मुंह में पानी लाने के लिए सिर्फ यह शब्द ही काफी है। जिला बिलासपुर में शादी विवाह या अन्य मांगलिक कार्यक्रमों में परोसा जाने वाला यह भोजन बिलासपुरी धाम के नाम से जाना जाता है। इसी बिलासपुरी धाम के लिए जिला बिलासपुर के घुमारवीं उपमंडल के गांव पेहड़वी के अमरनाथ भारद्वाज पिछले 25 सालों से चर्चा में बने हुए हैं। अमरनाथ सिर्फ बिलासपुरी धाम ही नहीं बल्कि बिलासपुर की मशहूर धुली दाल के स्वाद के लिए भी विख्यात हैं।
मुख्यमंत्री चख चुके इनके हाथों का स्वाद :
प्रदेश के कई पूर्व मुख्यमंत्रियों, नेताओं से लेकर वर्तमान मुख्यमंत्री तक अमरनाथ भारद्वाज द्वारा बनाई गई बिलासपुरी धाम तथा धुली दाल का स्वाद चख चुके हैं। फिर चाहे वह बरमाना में बनाई गई धाम में पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीरभद्र सिंह हो या फिर हाल ही में घुमारवीं में आयोजित भारतीय जनता पार्टी का कार्यक्रम, अब हर जगह अमरनाथ भारद्वाज द्वारा बनाई गई धूली दाल का स्वाद लोगों को रास आ रहा है।
जगत प्रकाश नड्डा के सुपुत्र की शादी में परोस चुके हैं धाम :
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के सुपुत्र के विवाह समारोह की धाम की जिम्मेवारी भी अमरनाथ भारद्वाज के कंधों पर ही थी। वहां पर भी देश प्रदेश के सभी बड़े राजनेताओं को अपने हाथ की बनाई बिलासपुरी धाम और धुली दाल बनाकर खिला चुके हैं। अमरनाथ भारद्वाज सिर्फ धुली दाल ही नहीं बल्कि उड़द की दाल, मूंग की दाल, ओहरी वाली चने की दाल, आलू राजमा, सफेद चने के अलावा कढ़ी पकोड़ा बनाने में भी माहिर है। इसके अलावा उनके हाथों का बनाया कुचालु (बेजू) का पलदा खाने के लिए भी लोग दूर-दूर से आते हैं।
धुली दाल बनाने की विधि :
धुली दाल को रात भर भिगोने रखा जाता है। उसके बाद सुबह इसे साफ पानी में धोकर के इसका छिलका उतार दिया जाता है। धुली दाल सिर्फ बटलोही में ही बनाई जा सकती है। धुली दाल को सिर्फ डालडा या देसी घी में बनाया जाता है, किसी अन्य प्रकार के तेल में धुली दाल नहीं बनाई जाती। सबसे पहले घी को बटलोही में डालकर गर्म किया जाता है, जिसके बाद उसे थोड़ा ठंडा करके उसमें हींग, सोंफ तथा लौंग का तड़का लगाया जाता है। घी नॉर्मल होने पर इसमें दाल डाल कर कुछ देर तक धीमी आंच पर भूना जाता है, जिसके बाद इसमें हल्दी तथा नमक डालकर फिर डेढ़ घंटे तक भूना जाएगा। तत्पश्चात इसमें मीठी सौंफ, दाल चीनी, काली मिर्च, गर्म मसाला, बड़ी इलायची डालकर दाल से डेढ़ गुना पानी डालकर धीमी आंच पर तब तक पकाया जाता है, जब तक यह गाढ़ी हो कर तैयार ना हो जाये।